जैसा की हम सब जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह एक ऐसा देश है जहाँ लगभग 70% लोग किसान हैं। हम इस बात को भी अच्छे से समझते हैं कि जब हमारा देश आज़ाद हुआ, उसके बाद से लगातार तमाम प्रकार की सरकारी नीतियों से लेकर कानूनों में किसानों के अधिकारों, उनके मुद्दों एवं उनकी परेशानियों की बात प्रमुखता से की जाती रही है। यह कहना गलत बिलकुल नहीं होगा कि किसान हमारे देश की वह रीढ़ हैं जिसके ऊपर हम सभी के जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं टिकी हैं। यह भी सच है कि समय के साथ भले ही खेती करने के तरीके बदले हों, लेकिन हम सभी की किसानों पर निर्भरता आज भी बरकरार है।
देश में जहां पहले सिर्फ पारंपरिक खेती हुआ करती थी, वहीं अब समय के साथ-साथ देश के किसान भी आधुनिक होते जा रहे हैं और खेती में कई नए–नए प्रयोग कर रहे हैं। इन प्रयोगों की खास बात यह होती है कि ये बेहद कम दामों में संभव हो पाते हैं और हर किसान इन्हें तयशुदा तरीकों की मदद से अंजाम दे सकता है। जरुरत होती है तो बस कुछ हटकर सोचने की। ऐसे ही एक किसान का प्रयोग अभी हाल ही में काफी सफल रहा है, जिन्होंने जंगली पौधों में टमाटर और बैंगन उगा कर दिखा दिया। उनके इस प्रयोग के कई फायदे सामने आ रहे हैं और विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले समय में यह बेहद क्रांतिकारी साबित हो सकता है। मिश्रीलाल राजपूत नाम के ये किसान भोपाल शहर के खजूरीकला गाँव के रहने वाले हैं। आइये इनकी तकनीक के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं।
ग्राफ्टिंग तकनीक का इस्तेमाल करके उगाई जंगली पौधों से आम सब्जियां
अक्सर हम जब भी जंगली पौधों को देखते हैं, हम उनसे दूर भागने लगते हैं, उनसे डरते हैं। और इसीलिए उनमें छुपी खूबियों को हम प्रायः देख नहीं पाते। लेकिन मिश्रीलाल एक ऐसे किसान बनकर उभरे हैं जिन्होंने इन्हीं जंगली पौधों में टमाटर, बैंगन जैसी सब्जियां उगा डालीं। उन्हें ऐसा करने में जिस तकनीक का इस्तेमाल किया उसे ‘ग्राफ्टिंग तकनीक‘ कहते हैं। इस तकनीक की खास बात यह है कि इस पद्धति में जैविक खाद का प्रमुखता से इस्तेमाल होता है, जिसके कारण इसके पौधे, आम पौधों की अपेक्षा में रोग मुक्त रहते हैं। एक और अच्छी बात जो इस तकनीक में मौजूद होती है वह यह है कि इस तकनीक से उगाई गई सब्जी हर तरह के मौसम की मार भी आसानी से झेल सकती है।
विपरीत परिस्थितियों में भी सब्जियां रहती है स्वस्थ
जैसा कि हमने बताया कि इस तकनीक से उगाई गई सब्जियां हर परिस्थितियों को झेल लेती हैं, फिर भले ही कम पानी हो या अन्य विपरीत परिस्थितियां, इन पौधों पर इसका ज्यादा असर नहीं होता। केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नबीबाग, भोपाल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक रमन राव बताते हैं कि मिश्रीलाल द्वारा किया गया यह प्रयोग बहुत जल्द ही सब्जी उत्पादन में क्रांति लाने वाला है। इस तकनीक से तैयार पौधों की जड़ जंगली पौधे की रहती है। इसलिए वह कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी तेजी से बढ़ते हैं। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अन्य आम पौधों के मुकाबले अधिक होती है। खास बात यह है कि इस तकनीक से कम लागत में अधिक पैदावार का लाभ हासिल किया जा सकता है और एक साथ कई वैराईटी भी पैदा की जा सकती हैं।
ग्राफ्टिंग तकनीक की प्रक्रिया ऐसे होती है पूरी
मिश्रीलाल बताते हैं कि इन पौधों की जड़ जंगली प्रजाति के पौधे की तरह है, जिस पर ग्राफ्टिंग तकनीक से टमाटर का पौधा लगाया गया है। यही प्रयोग मिर्च के पौधों के साथ भी किया गया है। मिश्रीलाल बताते हैं कि एक ट्रे में जंगली पौधा और दूसरे में टमाटर, आदि का पौधा लगाया जाता है। जब जंगली पौधा करीब 6 इंच तक लंबा हो जाता है, और टमाटर का पौधा 15 दिन का हो जाता है, तभी ग्राफ्टिंग का सबसे सही समय होता है। जंगली पौधे की जड़ के ऊपरी तने में कट लगाकर संबंधित सब्जी के पौधे को ग्राफ्ट कर दिया जाता है। इस दौरान करीब 15 दिन तक पौधे को छांव में ही रहने दिया जाता है। इसके बाद वह खुले खेत में रोपने के लिए तैयार हो जाता है। इसमें मदर प्लांट जंगली होता है, जबकि तने में सब्जी का पौधा ग्राफ्ट कर दिया जाता है।
एक पौधे में कई वैरायटी लगाने की है आजादी, मृदा जनित बीमारियों रहती हैं दूर

मिश्रीलाल राजपूत ने यह प्रयोग कृषि वैज्ञानिकों के सानिध्य में रहकर किया, जिसके अंत में वो इस तकनीक को प्रयोग में लाने में सफल रहे। इस तकनीक के जरिये एक ही पौधे में कई वैरायटी की सब्जियां भी लगायी जा सकती हैं। मिश्रीलाल बताते हैं कि एक जंगली पौधे में कई स्थानों पर ग्राफ्टिंग करके एक ही पौधे से सब्जी के कई वैरायटी की पैदावार करना संभव है। इस तरह की तकनीक की सबसे खास बात यह है कि यह कई तरह की बीमारियों को दूर भगाने में भी कारगर है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली के वेजीटेबल सेक्शन हेड भोपाल सिंह बताते हैं कि पूरे देश में मृदा जनित बीमारियों का प्रकोप फैला है, जिससे सब्जियों की फसल काफी प्रभावित होती है। ऐसे में ‘ग्राफ्टिंग टेक्नोलॉजी’ मददगार साबित होती है। किसान मिश्रीलाल ने इन्हीं के संस्थान में यह तकनीक सीख कर प्रदेश में इसकी शुरूआत की, जो आज पूरे देश में एक सफल प्रयोग बन कर सामने आ रहा है।
मिश्रीलाल के इस प्रयोग के लिए हम उन्हें सलाम करते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि इस तकनीक का प्रयोग करते हुए भविष्य में कृषि के क्षेत्र में क्रांति आएगी और हम सबको समान रूप से फायदा पहुंचाएगी। मिश्रीलाल की जीजिविषा से यह प्रेरणा जरूर ली जा सकती है कि भले ही आप कोई भी कार्य क्यों न करते हों, उसे करने में लगातार संशोधन के जरिये नवीनीकरण एवं आधुनिकता की ओर हमे अवश्य बढ़ते जाना चाहिए, इससे न केवल आपका कार्य आपके लिए सुगम होता है बल्कि औरों को भी फायदा पहुँचता है।
कृषि के क्षेत्र में जहाँ लगातार वैज्ञानिकों द्वारा तमाम प्रयोग किये जा रहे हैं, वहीं एक किसान का आगे आकर इसमें योगदान देना एक बेहद उत्तम कार्य है। हम उन्हें इस नेक कार्य के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें देते हैं।
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