कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह। आज की यह कहानी एक ऐसी ही शख़्सियत को समर्पित है जिन्होंने इस कथन को चरितार्थ करते हुए शून्य से शुरुआत कर सफलता के शिखर तक का सफर अपने दम पर तय किया। इस शख़्स ने ढाई दसक के कठिन मेहनत और दृढ़ इच्छा-शक्ति की बदौलत कई बड़े ब्रांडों को टक्कर देते हुए एक प्रसिद्ध ब्रांड बनाया और उसे करोड़ों घरों तक पहुँचाया।
चार हजार करोड़ रुपए का विशाल साम्राज्य खड़ा करने वाले इस ‘सेल्फ मेड पर्सन’ को आज ‘डिटर्जेन्ट किंग’ के नाम से जाना जाता है।

आज हम बात कर रहे हैं देश के डिटर्जेन्ट उद्योग में क्रांति लाने वाले कानपुर के दो भाइयों की। साल 1988 में मुरलीधर अपने भाई बिमल ज्ञानचंदानी के साथ मिलकर देश के डिटर्जेन्ट उद्योग में घुसने का फैसला किया। हालांकि उस दौर में भी कुछ डिटर्जेन्ट कंपनियां जैसे निरमा और सर्फ मार्केट में अपनी पैठ जमा चुका था। लेकिन फिर भी अपनी दमदार रणनीति की बदौलत इन भाइयों ने ‘घड़ी साबुन’की नींव रखी।
दरअसल इस मार्केट में घुसने से पहले मुरलीधर ने निरमा की सफलता को बेहद बारीकी से अध्ययन किया। 1970 के दसक में निरमा ने सस्ते डिटर्जेन्ट के रूप में प्रचार की आक्रामक रणनीति बनाई थी, जो बेहद कारगर साबित हुए था। इस एक रणनीति की बदौलत निरमा का 20 साल तक डिटर्जेन्ट उद्योग पर बोलबाला था। मुरलीधर ने निरमा के ही इस रणनीति को अपनाते हुए उसे ही मात दे दी।
सफलता पाने के लिए सिर्फ पैसा की ही नहीं बल्कि मजबूत रणनीति की भी जरुरत होती है। अगर रणनीति मजबूत हो तो युद्ध में अपने से बलवान को भी आसानी से परास्त किया जा सकता है। हिन्दुस्तान लीवर और प्रोक्टर एंड गैम्बल जैसे मल्टीनेशनल समूह के सामने घड़ी कुछ नहीं था। कायदे से देखें तो देश की कुल डिटर्जेन्ट मांग का 16 फीसदी सिर्फ उत्तर प्रदेश से आता है, इसलिए खामोशी के साथ घड़ी ने सबसे पहले इसी राज्य के लोगों का विश्वास जीता। उत्तर प्रदेश में मिली सफलता के बाद घड़ी ने अपनी प्रसिद्ध स्लोगन “पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें” के जरिए मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी जंग जीत ली।
शुरूआती सफलता के बाद घड़ी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2012 में घड़ी ने अपनी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी व्हील को शिकस्त दी। आज आरएसपीअल ग्रुप के बैनर तले घड़ी डिटर्जेन्ट के अलावा नमस्ते इंडिया, डिशवाश केक, वीनस बाथ सोप, हायजीन केयर सेनेटरी नैपकिन समेत देश की कई अन्य नामी प्रोडक्ट्स का उत्पादन होता है। इतना ही नहीं देश की प्रसिद्ध फुटवियर ब्रांड रेड चीफ भी इसी ग्रुप के अंदर आती है।

देश के पॉवर एंड एनर्जी सेक्टर में घुसते हुए कंपनी ने साल 2011 में अपना पहला विंड एनर्जी प्लांट गुजरात में खोला और फिर कर्नाटक में। आज 26 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। भारत में घड़ी के आज 21 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट और 4000 से ज्यादा वितरक हैं।
साल 2016 के फोब्स के अमीर लोगों की सूची में मुरली बाबू अपने भाई बिमल ज्ञानचंदानी के साथ 92वें नंबर पर काबिज थे। उनकी कुल नेटवर्थ 1.20 अरब डॉलर ( करीब 83 अरब रुपए) है। इसमें 66 करोड़ डॉलर मुरलीधर के 54 करोड़ डालर बिमल ज्ञानचंदानी के हैं। कंपनी का सालाना टर्नओवर 4900 करोड़ रूपये के आस-पास है। मुरलीबाबू के बेटे मनोज ज्ञानचंदानी प्रोडक्ट, दूसरे बेटे राहुल और बिमल ज्ञानचंदानी के बेटे रोहित ऑपरेशंस और मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालते हैं।
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