इस किसान ने ढूंढी एक अनोखी तरकीब, बिना जुताई खेती कर पिछले 30 वर्षों से कमा रहे हैं सालाना 50 लाख

भारत कृषि प्रधान देश है और करीब 70 फीसदी ग्रामीण जनसँख्या कृषि कार्य से ही अपना पालन पोषण करती है। लेकिन इस देश की विडंबना है कि हर साल अन्नदाता क़र्ज़ तले दबकर अपनी जान देने को मजबूर है। ऐसे में मध्य प्रदेश के किसान राजू टाइटस जैसे कुछ लोग उम्मीद की रौशनी बनकर मिसाल पेश कर रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राजू अपनी खेती से पचास से साठ लाख रूपए सालाना कमाते हैं। राजू की खेती की तकनीक की बात करें तो वो अपनी 12 एकड़ की ज़मीन पर पिछले 30 वर्षो में ना ही कभी हल चलाया और ना ही कभी मिट्टी के प्राकृतिक समीकरण से खिलवाड़ किया। राजू अपने खेतों के लिए काफी सजग रहते हैं और अपने खेतों में ना तो वो बाज़ार का खाद इस्तेमाल करते है और ना ही कोई कीट नाशक।

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के छोटे से गाँव खोजनपुर निवासी 71 वर्षीय राजू टाइटस ने पिछले 30 सालों से अपने खेतों में जुताई नहीं करी, बल्कि वो सीड बॉल्स बनाकर खेतों में बुआई करते है। अपनी खेती करने की तकनीक के बारे में राजू बताते हैं कि,”खेत जोतने से मिट्टी के उपजाऊ तत्व ख़त्म हो जाते है जिसमे काफी लाभकारी बैक्टीरिया मौजूद होते है इसलिए मैं सीड बॉल्स बो कर बिना जुताई के खेती करता हूँ।” कीटनाशक और रासायनिक खाद के इस्तेमाल को लेकर उनका मानना है कि,”बाज़ार की रासायनिक खाद और कीटनाशक मिट्टी को ज़हर बना देती है हालांकि इनके इस्तेमाल से खेती के असल खर्च में ज़रूर कमी आती है लेकिन फसल की गुणवत्ता घट जाती है इसलिए मेरे खेतों में ये पूर्णतः प्रतिबंधित है। राजू के अनुसार धरती को उपजाऊ बनाए रखने के लिए सुबबूल के पेड़ लगाने चाहिए जिससे ज़मीन को यूरिया और नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है।

ऑर्गेनिक खेती के लिए लोगों को प्रेरित करने वाले राजू को इस तकनीक के बारे में जापान के ख्याति प्राप्त कृषि वैज्ञानिक एवं कुदरती खेती के पिता मस्नोबू फुकुओकाजी की लिखी एक किताब से मिली। इस किताब को जब उन्होंने पढ़ना शुरू किया तो बिना जुताई के खेती करने के तरीके ने इनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। राजू के लिए यह तकनीक बेहद आश्चर्यजनक थी। उन्होंने पूरी किताब पढ़ने के बाद इसपर काफी रिसर्च किया और फिर खेती की इस पद्धति को अपनाया। इस पद्धति को अपनाने के बाद उन्हें इसके फायदे दिखने शुरू हो गये और तबसे वो इसी पद्धति से खेती कर रहे और अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।

होशंगाबाद ज़िले से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजू का ‘टाइटस फार्म’ आज काफी मशहूर हो चुका है। राजू अपने फार्म में सुबबूल के पेड़ अत्यधिक मात्रा में लगाए हुए हैं। उनका मानना है कि सुबबूल एक ऐसा वृक्ष है, जिससे मिट्टी को पर्याप्त उर्वरकता मिलती रहती है। पिछले 3 दशक से अप्राकृतिक खेती से दूर राजू इस बात में विश्वास रखते हैं कि यदि मनुष्य प्रकृति के हिसाब से बिना उससे छेड़-छाड़ किये खेती करें तो उसे कभी कोई असुविधा नहीं होगी, खेत जोतने से मिट्टी के कई उपजाऊ तत्व तो हम ख़त्म करते ही करते हैं, साथ ही झाड़ियां काटकर हम असंख्य कीड़े-मकोड़े और जीव-जन्तओं की हत्या भी कर देते है। पेड़ों के साथ झाड़ियाँ और झाड़ियों के साथ घास और अनेक वनस्पतियां रहती हैं जो एक-दूसरे की पूरक होती हैं, अगर हम जुताई नहीं करते हैं तो हमारे खेत वनस्पतियों से भर जाते हैं।

खेत खलिहान में रहने वाले कीड़े-मकौड़े ज़मीन पर रहकर मिट्टी को उपजाऊ बनाने का काम करते हैं,वो धरती को भुरभुरा कर देते है जिससे खेती करना सुगम हो जाता है, इनके मिट्टी में निवास करने से खाद और पानी का भी प्रसार होता रहता है।

सीड बॉल बनाना बेहद आसान काम है, खेतों की मिट्टी, पहाड़ों से बहकर आई मिट्टी, नदी- नाले की मिट्टी या फिर बर्तन बनाने वाली मिट्टी का इस्तेमाल कर कोई भी आसानी से सीड बॉल्स बना सकता है। इस मिटटी में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है और यह एक दम सटीक खाद है। इस मिट्टी में अन्य कोई खाद मिलाने की ज़रूरत नहीं होती और इसमें अनगिनत लाभकारी बैक्टीरिया होते हैं जो मिट्टी को उर्वरता प्रदान करते है।

सीड बॉल्स बनाने के लिए गीली मिट्टी में बीज भर के उसकी गोलियां बना ली जाती है। बीज के आकार के हिसाब से बॉल्स छोटी-बड़ी हो सकती है। इन बॉल्स को धूप में सुखाया जाता है और बारिश होने पर खेतो में फेक दिया जाता। इन बॉल्स को तैयार करने का अपना अनुभव साझा करते हुए राजू कहते हैं कि “गर्मियों की छुट्टी में आस-पास के बच्चे फार्म में आ जाते हैं और खेल-खेल में ढेर सारी बॉल्स बना देते। यह बॉल्स साल भर तक ख़राब नहीं होती और बीज की गुणवत्ता भी बनी रहती है। इन बॉल्स को बारिश से पहले खेत में बिखेर दिया जाता है, चिड़ियाँ और चूहों से भी यह अछूती रहती है।

इन बीज से जो फसल होती है उसमें ज्यादा जान होती है और वह कीड़े रहित भी होती। राजू इस तरह की बुआई करके एक एकड़ में लगभग 20 क्विंटल की उपज करते हैं जिससे उन्हें हर साल चार से पांच लाख की वार्षिक आय होती है। अब देश भर से किसान ‘टाइटस फार्म’ में खेती की इस पद्धति को सीखने आते हैं।

30 साल पहले राजू टाइटस ने कुछ नया करने को सोचा था और आज उनकी गिनती देश के सफल किसानों में होती है। राजू की सफलता पर गौर करें तो हमें यह सीखने को मिलता है कि हर व्यक्ति के भीतर अपने क्षेत्र से संबंधित विषयों में नई-नई जानकारियाँ इकठ्ठा करने की ललक होनी चाहिए, तभी वो अन्य लोगों की तुलना में कुछ नया करते हुए सफल लोगों की कतार में शामिल हो सकेंगें।

कहानी पर आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं और इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

Mindblowing Story Of A Regular Delivery Boy Becoming Multi-Millionaire

अपने जबरदस्त कारोबारी आइडिया से 2 साल में ही 100 करोड़ बनाने वाले तनुज और कनिका