साल 2018 में आपने जयवेल के बारे में पढ़ा होगा, एक किसान का बेटा जिसका परिवार सूखे की मार से सड़क पर आ गया था। जीने के लिए उन्होंने भीख मांगना शुरू कर दिया। परिस्थितियां तब और ख़राब भी हो गई जब उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनकी माँ को शराब की लत लग गई। ऐसे समय जयवेल का परिचय सुयम चैरिटेबल ट्रस्ट से हुआ। और इसके बाद उसका जीवन पूरी तरह से बदल गया। लोन के द्वारा उन्हें यूके की ग्लैंडर यूनिवर्सिटी भेज दिया गया क्योंकि वे पढ़ाई में असाधारण योग्यता रखते थे। वर्तमान में वे फिलीपींस में एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।
जयवेल की कहानी सिर्फ एक कहानी है परन्तु ऐसी सैकड़ों अविश्वसनीय कहानियाँ हैं जो उमा वेंकटचलम और उनके पति मुथुराम नारायणस्वामी के प्रयासों के द्वारा लिखी जा सकी हैं। केनफ़ोलिओज़ के साथ बातचीत में उन्होंने समाज के लिए किये अपने कामों के बारे में और हमारे शिक्षा पद्धति की बाधाओं के बारे में बताया।
उमा का बचपन एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में बीता था। उनकी चाची जो एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं, ने ही उमा को आगे बढ़ने में मदद की। जब वे 10 वर्ष की थीं, तब वे अपनी चाची के स्कूल के कमजोर बच्चों को पढ़ाने में मदद करती थीं।
उमा की इस यात्रा की शुरूआत 1987 में हुई। जब वे दसवीं कक्षा में पढ़ती थीं तब उन्हें रामकृष्ण मैथ के द्वारा स्कॉलरशिप मिली। वे बताती हैं, “इसी स्कॉलरशिप की वजह से मैं जीवन में आगे बढ़ पायी। मैंने अपने परिवार वालों से कह दिया था कि अगर मैंने अपनी पूरी पढ़ाई स्कॉलरशिप से पूरी की तब मेरी यह शिक्षा समाज के लिए होगी।” एक साल बाद उन्होंने पढ़ाने के लिए दूसरे स्कूलों का दौरा किया और हॉस्पिटल में मरीज़ों की देखभाल करने लगीं।
उमा उस मिथ को तोड़ना चाहती थी जिसमें कहा गया है कि जो लोग समाज सेवा करते हैं वे या तो अनपढ़ होते हैं या उन्होंने जीवन में कुछ नहीं किया होता है। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। और साथ ही साथ ब्लड डोनेशन प्रोग्राम में भी काम किया, सड़कों में रहने वाले बच्चों की देखभाल की, उमा ने हर तरह से लोगों की मदद की। कॉलेज के दिनों में उमा NSS से भी जुड़ी, जहाँ उन्हें बहुत से समाजसेवियों से मिलने के मौके मिले।
सड़कों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर 1999 में सुयम चैरिटेबल ट्रस्ट की शुरूआत की। वे कहती हैं “मैं शिक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ, अगर यह मुख्य परिवर्तन हो पाया तब सब कुछ बदल जायेगा।” कुछ समय बाद एक रिसर्च के दौरान उमा ने देश के भिखारियों की स्थिति के बारे में जाना।
उमा ने ट्रैफिक सिग्नल्स और स्लम में जाकर उनकी स्थिति को समझा और सड़क के बच्चों को काउंसिल करना शुरू किया जिसमें वे बच्चों को शिक्षा के जरिए बेहतर जीवन की परिकल्पना के बारे में बतातीं। उमा उन बच्चों के स्कूल के दाखिले के लिए कई स्कूल गईं परन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने हार नहीं मानी और अपना खुद का पाठ्यक्रम डिज़ाइन करने का निश्चय किया।

दो दशकों से उमा और मुथुराम 500 भिखारी परिवारों का सफलतापूर्वक पुनर्वास कर चुके हैं जो अब उनके साथ मिल कर काम कर रहे हैं। जो परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी भीख मांग कर गुज़ारा कर रहे थे उन्होंने अपना नया रास्ता चुन लिया है।
उमा कहती है “स्वयं सीखना ही सीखने का श्रेष्ठ तरीक़ा है। मनुष्यों को यह समझना होगा की मनुष्यता का होना सबसे महत्वपूर्ण है।”
उमा केवल समाज सेवी और शिक्षाविद नहीं है बल्कि वह समाज की असली हीरो हैं। उनके द्वारा किये गए प्रयासों से बहुत से लोगों का जीवन बदल गया है, जो पहले कभी सड़कों पर भीख माँगा करते थे। उमा ने न केवल उनमें एक आशा जगाई है बल्कि उन्हें एक अच्छा इंसान भी बनाया है।
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