कोई जन्म से व्यवसाय सीख कर नहीं आता, न ही सभी को सफलता के लिए समान साधन उपलब्ध हो पाते हैं और न ही सभी काम करने वाले करोड़ों कमा पाते हैं। बहुत से लोग जीने के लिए काम करते हैं परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना काम ऐसी शिद्दत के साथ करते हैं कि पूरी कायनात ही उनके पक्ष में काम करने लगती है।
और ऐसी ही एक प्रेरक शख्सियत हैं पैट्रिशिया नारायण। यह महिला रोज़ाना अपने शराबी और ड्रग-ऐडिक्ट पति से मार खाती थी। इस महिला के पास कोई असाधारण कौशल भी नहीं था फिर भी उन्होंने तंग आकर अपने पति को छोड़ दिया और अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए तथा अपना जीवन सुधारने लिए कठिन श्रम करने का बीड़ा उठाया। इनकी जीवन-यात्रा एक दिन के सिर्फ 50 पैसे से शुरू हुई, आज एक दिन का दो लाख रुपये कमा रही हैं।

पैट्रिशिया एक इसाई फैमिली से थी, उनके माता-पिता बहुत कम तनख्वाह की नौकरी करते थे l उन्हें एक हिन्दू ब्राह्मण लड़के से प्यार हो गया और पूरे ज़माने के खिलाफ जाकर उन्होंने शादी कर ली। इस शादी ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल डाली। उनके पति शराबी और ड्रग एडिक्ट थे और वह पैट्रिशिआ पर रोज अत्याचार करते थे। इन सब से तंग आकर वे अपने दोनों बच्चों के साथ अपने माता-पिता के घर आ गयीं। एक सीधी-सरल लड़की जिसे दुनिया-दारी की कोई समझ नहीं थी, अचानक उसने एक दिन पूरी घर की जिम्मेदारी को अपने कन्धों पर पाया। अब तक उसके पास केवल एक ही हुनर था, खाना बनाने का। उन्होंने घर पर अचार, जैम एवं स्क्वैश बनाना शुरू किया और आसपास के घरों में बेचना शुरू किया। यह शुरुआत अच्छी रही।
उनके पिता के एक दोस्त विकलांगों का स्कूल चलाते थे और उन्होंने पैट्रिशिया को एक ठेला गाड़ी दे दिया और इसके बदले उन्होंने दो विकलांग बच्चों को नौकरी पर रखने की शर्त रखी। पैट्रिशिया ने मरीना बीच पर अपना खाने-पीने के सामान का स्टाल लगाया। पहले दिन केवल एक कप कॉफ़ी बिकी और 50 पैसे की कमाई हुई। पैट्रिशिया काफी निराश हो गई तब उनकी माँ ने उन्हें और मेहनत करने को कहा। दूसरे दिन उन्होंने 600 रुपये की कमाई की। इससे उनका हौसला बढ़ा। उनका ठेला दोपहर तीन बजे से रात ग्यारह बजे तक चलता था और सुबह की सैर करने वालों के लिए सुबह पांच बजे से नौ बजे तक खुला रहता था। अकेले देर रात तक ठेला लगाने में उन्हें मुश्किल तो होती थी पर वह खुद को साबित करना चाहती थीं। और यही वजह थी कि वह कभी किसी से अपनी समस्या के बारे में नहीं बताती थीं।
एक सुबह पैट्रिशिया के ग्राहक बने स्लम क्लीयरेंस बोर्ड के चेयरमैन थे। उन्होंने पैट्रिशिया को स्लम बोर्ड की कैंटीन चलाने का न्यौता दिया। वह तैयार हो गई और दोनों जगहों पर काम करने लगी। सुबह पांच बजे से नौ बजे तक ठेले में, फिर नौ बजे से कैंटीन में और फिर तीन बजे से रात ग्यारह बजे तक ठेले में लगातार काम करने लगी। अब उनकी कमाई 20,000 रुपये प्रति महीने हो गई। जल्द ही उन्हें बैंक ऑफ़ मदुरै कैंटीन का कॉन्ट्रैक्ट भी मिल गया जहां वे रोज 300 लोगों के लिए खाना बनाती थीं। एक दिन उनके पति ने आकर उनसे बहुत झगड़ा किया, वह बहुत निराश हो गई और नेशनल पोर्ट मैनेजमेंट स्कूल जा पहुंची। वहाँ उन्हें एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर से मिलने का मौका मिला और अचानक ही उन्हें वहाँ का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया। यही उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। वहाँ उन्हें 700 बच्चों का खाना बनाना था और इसके लिए उन्हें एक हफ्ते में 80,000 रूपये मिले। यहीं से उन्होंने अपने बिज़नेस को बढ़ाने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करना शुरू किया।
पैट्रिशिया अपना पहला रेस्टोरेंट शुरू करने वाली थी कि तभी एक कार एक्सीडेंट में उनकी बेटी और दामाद की मौत हो गई। इस दुर्घटना ने उन्हें तोड़ कर रख दिया और वे अपने उस वेंचर से पीछे हटने लगी। यहाँ से उनके बेटे प्रवीण कुमार ने जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन की याद में “संदीपा” नाम का पहला रेस्टोरेंट शुरू किया।

2010 में पैट्रिशिया को FICCI फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के द्वारा इन्टरप्रेन्योर ऑफ़ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। वह युवाओं को तीन चीजों के बारे में बताती है, कि तुम जो जानते हो उस पर डटे रहो, अपने पर विश्वास रखो और कभी भी काम की गुणवत्ता में कमी न करो।
दो कर्मचारियों से शुरुआत करने वाली पैट्रिशिया के पास आज 200 कर्मचारी है। उनकी खुद की रेस्टोरेंट श्रृंखला है। अब उनकी पूरी जिंदगी जीने का तरीका ही बदल गया है। एक महिला जिसने सिर्फ 50 पैसे से एक दिन शुरुआत की थी आज वह एक दिन में दो लाख रुपये कमाती हैं। सफलता का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है।
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