एक दृढ़-निश्चयी महिला की कहानी, जो पिज्जा डिलीवरी गर्ल से शुरुआत कर बनीं एक ग्लोबल ब्रांड की सीईओ

आज वे अशोक लीलैंड, माइंडट्री, और फ्रेंच एनर्जी कंपनी टेक्निप एफएमसी के बोर्ड रूम में एक स्वतंत्र डायरेक्टर के रूप में शामिल होती हैं। कंपनियों के विलय और खरीदी वाले सौदों में सबसे बड़े कुछ, जैसे भारती एयरटेल द्वारा अफ्रीकन टावर की और अल्ट्राटेक सीमेंट द्वारा जेपी असोसिएट के अधिग्रहण का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।  

आज की हमारी कहानी मनीषा गिरोत्रा की है, एक ऐसी लड़की जिनका बचपन शिमला की शांत पहाड़ियों में बीता और जिसने देश के बिज़नेस के नक़्शे में अपना एक अलग निशान छोड़ा है। दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से गोल्ड-मेडल के साथ पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वे ग्रिंडलेज़ बैंक के द्वारा फ्रेश 50 चुने हुए लोगों में से एक थीं। खास बात यह है कि  उन्हें इन्वेस्टमेंट बैंकिंग डिवीज़न में शामिल कर लिया गया।

मनीषा की नौकरी का पहला काम कंपनियों के शेयर का स्टेटमेंट्स देना था, उसी समय वे पिज़्ज़ा डिलीवरी लड़की के रूप में भी अपना दूसरा काम करने लगी थीं। पहले उन्हें इसमें रूचि नहीं थी पर बाद में वे अपनी नौकरी को बहुत पसंद करने लगीं। कुछ और सालों तक ग्रिंडलेज़ में काम करने के बाद उन्होंने UBS (यूनियन बैंक ऑफ़ स्विट्ज़रलैंड) ज्वाइन कर लिया। वहां उन्होंने अपने जीवन के 13 साल दिए और जब उन्होंने कंपनी छोड़ी तब वे कंपनी की सीईओ थीं।

जब वे कंपनी की सीईओ बनीं तब उनकी उम्र केवल 33 वर्ष की थीं। वे कहती हैं – “मेरे परवरिश के अलावा, जहाँ मुझे क्लास में दूसरे नम्बर पर आने पर भी गहरे आत्म विश्लेषण के लिए कहा जाता था, मैं महसूस करती हूँ कि आज मैं जिस जगह पर हूँ वहां इसलिए हूँ क्योंकि मुझमें लगातार अच्छा करने की क्षमता थी। मैंने रिश्ते बनाये और बिना रुके आगे बढ़ती रही।”

उन्होंने उस धारणा को नकारा है जिसमें बताया जाता है कि महिलायें बोर्डरूम के अनुकूल नहीं होती। वे कहती हैं कि महिलायें पुरुषों से ज्यादा अच्छे से संवेदनशील बातचीत के द्वारा मामले को हल करती हैं और वे कंपनी के लिए ईमानदार होती हैं। वे कहती हैं कि महिलाओं के रूप में आप एक वफादार कर्मचारी प्राप्त करते हैं क्योंकि कंपनी और नौकरी हमारे जीवन का ही हिस्सा बन जाते हैं।

जब उन्होंने न्यूयोर्क बेस्ड कंपनी मोएलिस ज्वाइन किया तब उन्होंने फिर से शून्य से शुरूआत की। उन्होंने मोएलिस इंडिया की स्थापना की और इस संस्था के भारत की इकाई का नेतृत्व किया। उस समय वित्तीय बाजार का सबसे खराब दौर था और ऐसे में मनीषा को 15,000 कर्मचारियों वाली कंपनी को चलाना बिलकुल आसान नहीं था। तब बैंकों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन यही वह समय था जब उनकी लगन और और हुनर के बदौलत मोएलिस भारत की टॉप दस मर्जर और एक्वीजिेंशन कंपनियों में स्थान बना पाया था।

कार्यस्थल पर महिलाओं की आज की स्थिति के बारे में वे कहती हैं- “आज नए सेक्टर्स महिलाओं के हिसाब से प्रोग्राम किये जाते हैं। चाहे वह आईटी हो, पत्रकारिता हो, बैंकिंग हो हर जगह पर महिलाएं अपना परचम लहरा रही हैं। यह अच्छा है क्योंकि हमारा EQ लेवल और IQ लेवल साथ-साथ ऊंचा है। अभी भी विश्व महिलाओं को संस्था के सर्वोच्च स्थानों पर देखने का आदी नहीं हुआ है। अभी भी आपको अपने ही घर में उस पूर्वग्रह के बीच रहना होता है जहाँ आपको घर की आजीविका के लिए अपनी भूमिका के स्वीकार किये जाने के लिए संघर्ष करना होता है।”

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