बचपन में गटर का पानी पीने को थे विवश, आज हैं करोड़ों के मालिक, उड़ते हैं निजी प्लेन से

हमने अबतक सैकड़ों लोगों की संघर्ष से सफलता वाली कहानियां पढ़ी। हर कहानी से हमें काफी कुछ सीखने को मिला लेकिन यकीन मानिए आज की कहानी सबसे अलग एक ऐसे इंसान की है जिन्हें गरीबी और भुखमरी विरासत में मिली। एक गरीब हरिजन परिवार में पैदा लेने वाले इस शख्स ने अपनी आँखों के सामने अपने तीन भाई-बहनों को भुखमरी और गटर का गंदा पानी पीने की वजह से मरते देखा। इन्होंने बड़ी मुश्किल से चेचक, टाइफाइड बुखार जैसी अन्य घातक बीमारियों से लड़ते हुए अपना बचपन व्यतीत किया। लंबी बीमारी इनके शरीर को पूरी तरह तोड़ दिया लेकिन इनके हौसले का बाल न बांका कर सका।

कठिन मेहनत, मजबूत आत्मबल और दृढ़ इच्छा-शक्ति की बदौलत आगे बढ़ते हुए इस शख्स ने वो मकाम हासिल किया जो ज्यादातर लोगों के लिए सिर्फ एक सपना है। आपको यकीन नहीं होगा ये शख्स आज दुनिया की सबसे महंगी गाड़ियों से सैर करते और निजी हवाई-जहाज से उड़ान भरते हैं। इतना ही नहीं जिस गांव में इन्होंने बीमारी से लड़ते हुए अपना बचपन व्यतीत किया था, आज उसी गांव के विकास के लिए इन्होंने 130 करोड़ रूपये का डोनेशन दिया।

यह कहानी है देश के एक प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन डॉ कुमार बहुलेयन की सफलता के बारे में। केरल के कोट्टायम जिले में एक ऐसे गांव में जन्में और पले-बढ़े, जहाँ पीने का पानी, बिजली, शौचालय, स्कूल और चिकित्सालय जैसी मूलभूल चीजों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। कुमार के पिता किसी तरह मजदूरी कर परिवार चलाते थे। घर की आर्थिक हालात इतनी दयनीय थी कि कई दिनों तक भूखे पेट रहना पड़ता था। इतना ही नहीं गांव में स्वच्छ पानी के अभाव में इन्हें गटर के पानी से सी अपनी प्यास बुझानी होती थी।

कई दिनों तक खाना न मिलने की स्थिति में इन्हें गटर के पानी से ही भूख भी बुझानी होती थी। भूख की तड़प और दूषित पानी का सेवन करने से इनके तीन भाई-बहनों से दम तोड़ दिया। कुमार किसी तरह जिंदगी से संघर्ष करते रहे। इन्हें भी हैजा, चेचक, टाइफाइड जैसी बिमारियों से जूझते हुए अपना बचपन व्यतीत करना पड़ा। तमाम मुश्किलों के बावजूद भी कुमार का बचपन से ही पढ़ाई में बहुत लगाव था। इनके पिता ने एक छोटी जाति के शिक्षक से कुमार को शिक्षा देने के लिए अनुरोध किया और फिर कुमार ने गांव के इस शिक्षक की क्षत्रछाया में मन लगाकर पढ़ाई की और आगे बढ़ते चले गये।

मास्टर जी ने कुमार को हमेशा प्रोत्साहित किया और उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की। कुमार के लिए यह एक दिव्य उपहार था और फिर उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए इन्होंने ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेते हुए अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। एक उत्कृष्ट छात्र होने की वजह से सरकार ने उन्हें व्यापक न्यूरोसर्जिकल शिक्षा के लिए स्कॉटलैंड भेजा। लेकिन 6 साल बाद जब स्नातक की उपाधि प्राप्त वे भारत लौटे तो यहाँ उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली। देश में उस वक़्त न्यूरोसर्जरी का एक सीमित उपयोग था।

अंत में कुमार ने कनाडा जाने का निश्चय किया और फिर वहां से न्यूयॉर्क के लिए रवाना हो गये और अल्बेनी मेडिकल कॉलेज में काम करते हुए अपने कैरियर की शुरुआत की। न्यूयॉर्क में बसने के बाद साल 1973 में इन्होंने एक स्थानीय न्यूरोसर्जन के साथ काम सीखते हुए प्रसिद्ध बफैलो विश्वविद्यालय में न्यूरोसर्जरी में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में पदभार संभाला। कई वर्षों तक चिकित्सा जगत में काम करते हुए इन्होंने अथाह पैसे बनाए। इसी दौरान एक बार इन्हें अपने गांव आना हुआ और यहाँ ज्यों की त्यों दयनीय स्थिति देख वो स्तब्ध रह गये। संघर्ष में बिताये अपने बचपन की याद आने पर डॉ कुमार ने पूरे गांव के परिदृश्य को ही बदल डालने की प्रतिज्ञा कर ली।

बचपन में अपने तीन भाई बहनों को बिमारी से मरते देख चुके कुमार ने सबसे पहले गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार लाने की प्रक्रिया शुरू की। इसी कड़ी में इन्होंने साल 1993 में बहुलेयन चैरिटेबल फाउंडेशन की स्थापना करते हुए छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को समुचित स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराने के उद्येश्य से एक क्लीनिक की स्थापना की।

इसी कड़ी में साल 2007 में इन्होंने गांव के विकास में योगदान के लिए 130 करोड़ रुपये के अंशदान की घोषणा करते हुए सबको हैरान कर दिया। इन पैसों की मदद से शौचालय, सड़कें और ग्रामीणों के लिए पानी की आपूर्ति मुहैया कराने के लिए निरंतर काम किया जा रहा है। फाउंडेशन को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए इन्होंने साल 2004 में स्वास्थ्य रिसॉर्ट्स, लक्जरी कमरे, स्वास्थ्य स्पा और व्यायामशाला की भी स्थापना की।

जो शख्स इतना गरीब था कि उसे 20 साल की उम्र में पहली जोड़ी जूते नसीब हुई थी, वही आज रोल्स रोयल जैसी महंगी गाड़ियों से सवारी करता है, आलिशान बंगले में रहते हैं और इनके पास निजी हवाई-जहाज भी है। खैर इन सब चीजों के बावजूद इनका दिल वाकई बड़ा है।

शून्य से शिखर तक का सफ़र करने वाले डॉ कुमार की कहानी सच में बेहद प्रेरणादायक है। यदि इस कहानी से आपको प्रेरणा मिलती है तो इसे शेयर अवश्य करें।  नीचे कमेंट बॉक्स में आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है। 

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