कैसे एक मामूली सेल्समैन ने शून्य से शुरुआत कर बनाई कंपनी का 10,000 करोड़ में किया सौदा

सभी बड़े बिजनेसमैन वह नहीं हैं जो एक बड़ी विरासत के साथ पैदा हुए हैं। हमारे बदलते भारत में कई अरूण कुमार जैसे भी हैं जिन्‍होंने विरासत में धन, हैसियत और संपर्क नहीं पाया, पाया तो बस मां या पिता के सिखाये मूल्‍य। अरूण कुमार जो 2013 में एक बड़ी चर्चा में आए जब अपनी फार्मा कंपनी ‘स्‍ट्राइड’ के इंजेक्‍टेबल बिजनेस (एजिला स्‍पेशियालिटिज) को दुनिया की एक बहुत बड़ी यूएस बेस्‍ड फार्मा कंपनी माइलान को 1.65 बिलियन डॉलर (लगभग 10,000 करोड़ रूपये) में बेचा। माइलान ने उसकी बड़ी कीमत लगाई थी जब‍कि एजिला की तब सालाना बिक्री मात्र 500 मिलियन डॉलर थी। अरूण कुमार ने अपनी कंपनी स्‍ट्राइड्स को जीरो से शुरू कर फार्मा की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बना दिया जिसके एक-एक प्रोडक्‍ट में जान है।

अरुण अपनी सफलता का श्रेय पिता को देना चाहते हैं जिनसे उन्‍होंने अनुशासन और निर्णय लेने में धैर्य और समझदारी का मूल्‍य सीखा। उन्‍होंने 29 वर्ष की उम्र में 1990 में वाशी में स्‍ट्राइड की आधारशिला रखी थी तब उनके पास बिजनेस की कोई पृष्‍ठभूमि नहीं थी। बस फार्मा के क्षेत्र में छोटी मोटी नौकरियां करने का आठ वर्ष का अनुभव था।

pwfi5uxjmthqvsjekyzf73gc699mzsey.jpg

अरूण कुमार बताते हैं कि हौसला, अनुशासन और कड़ी मेहनत का साथ उन्‍होंने कभी नहीं छोड़ा और सही वक्‍त पर सही निर्णय लेने को वह अपनी ऐसी ताकत समझते हैं जिसपर उन्‍हें सबसे ज्‍यादा भरोसा और नाज है। अरूण के पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और उनका लालन-पालन ऊटी में हुआ। पढ़ाई के बाद अच्‍छे भविष्‍य की इच्‍छा लिए वह 21 वर्ष की उम्र में मुंबई आ गए थे। शायद यह बाजार और बिजनेस नाम की चीजों को करीब से देखने का एक भीतरी मोटिवेशन था कि उन्‍होंने चारदिवारी के भीतर बैठने वाली आरामदायक किस्‍म की नौकरियां नहीं की। उन्‍होंने फार्मा सेक्‍टर में नौकरियां की जिनमें सेल्‍स और बाजार में एक्‍सपोजर था, हांलाकि तब बिजनेस जैसा कोई खयाल उनके मन में नहीं आया था। पर, उनके तब के फैसले ने उनके डेस्‍टीनेशन की कहानी का पहला अध्‍याय तो लिख ही दिया।

1990 में कंपनी शुरू किए ज्‍यादा वक्‍त नहीं हुआ था जब सन 2000 के शुरूआती वर्षों में बाजार पर मंदी का साया मंडराने लगा था। तब अरूण कुमार मजबूती से खड़े रहे जबकि फार्मा के बड़े- बड़े धुरंदर लड़खड़ाते रहे। अरूण कुमार और उनकी कंपनी स्‍ट्राइड की आंतरिक ताकत ने तब पूरी फार्मा वर्ल्‍ड का ध्‍यान खींचा। उनकी दृढ़ता एक दर्ज बात हो गई और उनकी झोली में आई उनकी यह विश्‍वसनीयता उनकी सफलता की कहानी का एक बड़ा अध्‍याय हो गयी। जाहिर है, वह स्‍टीव जॉब्‍स को बिजनेस के संसार का अपना रोल मॉडल मानते हैं।

कंपनी बनाने के तुरत बाद अरूण कुमार ने एक्‍सपैंशन शुरू कर दिया था। स्‍वाभाविक रूप से काफी लोन भी लेना पड़ा। मंदी के वातावरण में अंदर से बहुत दबाव बनाया पर उसी दौर में उन्‍होंने 1996 से 2006 के बीच लोन लेते हुए भी जिस तेजी से कंपनी की संरचना और रणनीतियों में फेरबदल किए और हर दबाव से बाहर आकर अपने हर प्रोडक्‍ट को बाजार के अनुकूल बनाया, मैनेजमेंट संबंधी फैसला लेने की उस गति और क्षमता को एक्‍सपर्ट केस-स्‍टडी की तरह लेते हैं। आज स्‍ट्राइड के पास 1500 से अधिक कर्मचारी हैं, पूरे देश में कारखाने हैं और 70 से अधिक देशों में पहुंच है।

बंगलोर में रिसर्च एंड डेवलपमेंट की इकाई है जिसे अरूण अपने बिजनेस की आत्‍मा मानते हैं। अपने स्‍वयं के रिसर्च पर अपने विश्‍वास को वह अपनी दृढ़ता और झंझावातों में भी खड़े रह पाने का आधार बताते हैं। उनके पिता ने उन्‍हें अपने स्‍वभाव पर विश्‍वास करना सिखाया था, वह कहते हैं कि इसी मूल्‍य के एक्‍सटेंशन में वह अपने प्रोडक्ट पर विश्‍वास करते हैं। अपने रिसर्च पर विश्‍वास भी उनकी सफलता की कहानी का एक जरूरी अध्‍याय है।

अरूण कुमार की विश्‍वसनीयता की ताकत इससे भी झलकती है कि उन्‍होंने और उनके प्रोमोटरों ने पूंजी में मात्र 28 प्रतिशत का शेयर रखा है, करीब 40 प्रतिशत विदेशी निवेशकों के साथ कुल 47 प्रतिशत संस्‍थागत निवेशकों का है।

अरूण कुमार को जो नज़र आता है उसपर भरोसा करते हैं और फिर देर नहीं करते। उन्होंने अफ्रीका के बाजार में काम करना शुरू किया हुआ है और आशा करते हैं कि इस बाजार में दूसरी कंपनियों के आने तक सबसे बड़ा शेयर उनका होगा। कुमार बताते हैं कि अवसर को देखने, निर्णय लेने और उसे लागू कर देने के बीच समय नहीं गंवाते। कुमार स्ट्राइड 2.0 पर भी काम कर रहे हैं। 

dlqcndp66qbm7ykhscbjjvmwgzdef6tu.jpg

कंपनी के लिए कायदे-कानून के पालन में कुमार उसूल के पक्के हैं। कर्मचारी बताते हैं कि इथिकल मामलों में वह समझौता नहीं करते। पर, बतौर बिजनेसमैन नये बाजार को तलाशने और उसमें प्रवेश पाने में उनका बिजनेसमैन होना वह पहली बात होती है जो वह याद रखते हैं। यहां वह फ्लेक्सेबल होने पर विश्वास करते हैं। जानकार बताते हैं कि कायदे-कानूनों के प्रति जवाबदेही और खुद के विकास के प्रति जवाबदेही का ऐसा संतुलन बहुत कम मिलता है और यह भी उनकी सफलता की कहानी का एक ख़ास आयाम है।

पहली पीढ़ी के उद्यमी अरूण कुमार की सफलता की कहानी के एक-एक पहलू को सफलता के लिए अपना रास्ता बनाने की इच्छा रखने वाले लोगों और मैनेजमेंट के छात्रों को अपने मन में गहरे दर्ज कर लेना चाहिए।

आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं और इस  पोस्ट को शेयर अवश्य करें

मैं वहां फिर जाऊँगी जहां मेरे साथ वह दर्दनाक हादसा हुआ था: एक 19 वर्षीया बहादुर लड़की की कहानी

2010 में हुई थी एक छोटी शुरुआत, 2020 में दोनों भाई हैं देश के सबसे अमीर लोगों में शामिल