यह कहानी 28 साल के एक ऐसे नौजवान के बारे में है जो बेहद कर्मठ, तेज-तर्रार और हर मुश्किल का डटकर सामना करने वाले लोगों के रूप में जाने जाते हैं। एक छोटे से शहर के मध्यम-वर्गीय परिवार में पले-बढ़े इस शख्स ने अपनी काबिलियत के दम पर भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में दाखिला लिया और फिर पढ़ाई बीच में ही छोड़कर कारोबारी जगत में कदम रखते हुए 1500 करोड़ रुपये की कंपनी की स्थापना कर डाली। भारतीय स्टार्टअप जगत के ‘बैड बॉय’ नाम से अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस शख्स ने अपनी ही बनाई कंपनी से इस्तीफा देने और फिर स्टाफ के बीच 200 करोड़ रुपए के शेयर बांटने को लेकर कई बार सुर्ख़ियों में रहे।

जी हाँ हम बात कर रहे हैं प्रॉपर्टी वेबसाइट हाउसिंग डॉटकॉम के भूतपूर्व सीईओ राहुल यादव के बारे में। राजस्थान के अलवर जिले में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पले-बढ़े राहुल बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद इन्होनें 2007 में धातु विज्ञान की पढ़ाई के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई में दाखिला लिया। नेतृत्व करने की क्षमता में निपुण, राहुल ने विश्वविद्यालय छात्र संघ के सचिव के रूप में भी कार्य किया।
कॉलेज में ही उन्होंने इक्जामबाबा डॉट कॉम नाम से एक ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की, जहाँ ऑनलाइन प्रश्न बैंक उपलब्ध कराए जाते थे। इक्जामबाबा को आईआईटी मुंबई का ऑफिशियल आर्काइव बनाया गया, हालांकि बाद में उसे बंद करने की नोटिस मिलते ही राहुल ने कॉलेज छोड़ने का निश्चय ले लिया। कॉलेज छोड़ने के बाद उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर एक आइडिया पर काम शुरू किये, जो बाद में मिलियन डॉलर का सफ़र तय किया।
कॉलेज छोड़ने के बाद उन्हें मुंबई में घर ढूंढने ने बड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ा। घर खोजने की समस्या से जूझते हुए उनके दिमाग में एक आइडिया आया। उन्होंने अपने दोस्त अद्वितीय शर्मा के साथ मिलकर इस आइडिया पर काम शुरू कर दिए और साल 2012 में उन्होंने हाउसिंग डॉट कॉम की स्थापना कर ली।
उनका यह आइडिया बेहद कारगर साबित हुआ और कुछ ही दिनों में वे हर महीने एक से दो लाख रुपए की कमाई करने लगे। शुरूआती सफलता के बाद राहुल ने इसे देश भर में फैलाने का फैसला किया। उस वक़्त और भी दुसरे पोर्टल थे लेकिन हाउसिंग के बेहतर फीचर्स ने लोगों को आकर्षित करते हुए दो साल के भीतर ही अन्य वेबसाइटों को पछाड़कर आगे निकल गया। धीरे-धीरे निवेशकों और ग्राहकों को लुभाते हुए कंपनी का वैल्यूएशन 1500 करोड़ रुपए के पार हो गया।
कंपनी की दिनों-दिन बढ़ती सफलता ने राहुल यादव को कॉर्पोरेट दुनिया का एक उभरता हुआ जगमगता सितारा के रूप में देखा जाने लगा। लेकिन साल 2015 में राहुल ने कंपनी के डायरेक्टर, चेयरमैन और सीईओ के पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। राहुल जिन्होनें खुद की काबिलियत के दम पर मात्र दो साल के अंदर कंपनी को 130 मिलियन डॉलर का निवेश दिलाया था, उसी राहुल के इस्तीफा देने से कंपनी के भविष्य के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगाई जानी शुरू हो गयी।
हालांकि कंपनी के बोर्ड और निवेशकों के आग्रह के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। इससे पहले यादव की एक वेंचर कैपिटल फर्म सैक्योरिया कैपिटल को चेतावनी देती मेल भी लीक हुई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर उनके स्टाफ को तोड़ा गया तो वे उस वेंचर कंपनी के सारे कर्मचारियों को तोड़कर उसे खाली कर देंगे।

निवेशकों और राहुल के बीच तना-तनी ख़त्म नहीं हुई और इसी बीच राहुल ने स्टाफ के बीच 200 करोड़ रुपए के शेयर बांटने का एलान किया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने साथी ओलाकैब्स और जोमैटो जैसे स्टार्टअप्स के मुखिया को चुनौती दे दी कि वे भी अपने कर्मचारियों को अपने आधे शेयर देकर दिखाएं।
राहुल यादव के इस चुनौती पर प्रतिक्रिया देते हुए जोमैटो के दीपेंदर गोयल ने कहा: अरविंद केजरीवाल को यह देखकर बहुत खुशी हुई होगी कि उन्हें टेक स्टार्टअप्स की दुनिया में अपना एक साथी मिल गया है।
वर्तमान में राहुल यादव इंटेलीजेंट इंटरफ़ेस नाम से एक दूसरे कारोबार की शुरुआत की है। राहुल के नए बिज़नेस में क्रिकेटर युवराज सिंह समेत टेक जगत के कई उद्योगपतियों ने निवेश किया है।
राहुल की छवि आगे बढ़कर काम करनेवाला और अत्यधिक मेहनती इंसान के रूप में है। बेहद कर्मठ, तेज-तर्रार और हर मुश्किल का डटकर सामना करने वाले लोगों के रूप में अपनी अलग पहचान बनाते हुए राहुल ने शून्य से शिखर तक का सफ़र तय किया है। राहुल यादव की सफलता नई पीढ़ी के नौजवानों के लिए बेहद प्रेरणादायक है।
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