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गाँवों में कॉल सेंटर खोल ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने वाली सलोनी मल्होत्रा की कहानी

एक स्टार्टअप सिर्फ पैसे कमाने के लिए ही नहीं होते हैं, बल्कि यह हमारे जीने के ढंग, काम के तरीके, और व्यवस्था में बदलाव की शुरूआत करने के लिए भी है। कई कारणों से, हर 10 स्टार्टअप में से 9 असफल हो जाते हैं क्योंकि उनमें नवप्रवर्तन की कमी होती है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नवाचार सिर्फ जेब भरने के लिए नहीं भर बल्कि उन लोगों के लिए भी सहायक होना चाहिए जो नए अवसरों के लिए उत्सुक रहते हैं।

इन बातों को बेहतर समझनेवाली सलोनी मल्होत्रा ने न सिर्फ लोगों का जीवन समस्या मुक्त बनाने के लिए एक उपक्रम करने का फैसला किया, बल्कि ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर कार्य के अवसर प्रदान करने का भी निर्णय लिया।

पुणे विश्वविद्यालय से इंजीनियर करने के बाद सलोनी ने दिल्ली के एक इंटरैक्टिव मीडिया स्टार्टअप, वेबचटनी से अपने करियर शुरुआत की। वास्तव में उनके लिए यह मायने नहीं रखता था कि वह क्या कर रही थी क्योंकि योजना यह सीखने की थी कि अपना बिजनेस चालाना क्या होता है। अपने इस कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कुछ ऐसा करने का फैसला किया जो बीपीओ उद्योग के प्रति बने दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल सके।

23 वर्षीय सलोनी ने महसूस किया कि ग्राहकों को कम कीमत पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री प्रदान करने से काफी हद तक अतिरिक्त लागतों में कटौती हो सकेगी। इतना ही नहीं, यह ग्रामीण आबादी के लिए रोजगार के अवसर भी खोलेगा और गांव के लिए कुछ अच्छी मूलभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध कराएगा। इस सोंच के साथ उन्होंने देशीक्रू शुरू की थी।

ग्रामीण भारत के लिए काम करने की इच्छा की पहली बीज तब पड़ी जब सलोनी पुणे में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में गयी, “मेरी रूममेट ग्रामीण महाराष्ट्र की थी, उसने मुझसे पूछा कि मेरी शाखा क्या है? और जब मैंने उससे इन्डस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स कहा, उसने गर्व से मुझे बताया कि वह कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करेगी। फिर, मुझे पता चला कि उसने कभी कंप्यूटर नहीं देखा था लेकिन वह मानती थी कि कंप्यूटर विज्ञान का अध्ययन करने से उसे एक अच्छा काम मिलेगा। मुझे उन लोगों के लिए बुरा लगा जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।”

देशीक्रू ने डिजिटलीकरण सेवाओं जैसे डेटा एंट्री, और डेटा कनवर्जन के साथ शुरू किया। समय की साथ साथ, कंपनी ने सामग्री निर्माण और सत्यापन जैसी सेवाओं, जीआईएस-आधारित मानचित्रण सेवाओं, प्रतिलेखन, और स्थानीयकरण को जोड़ा।

जब आर्थिक मंदी ने हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया तो कंपनियों ने देशीक्रू को कई बैक-एंड गतिविधियों के लिए चुना जिससे कि वे लागतों में बचत कर सकें। लेकिन यहाँ तक पहुंचने के लिए सलोनी और उनकी टीम बहुत से रुखे उबड़ खाबड़ रास्ते तय करने पड़े।

मुश्किल हालात और उनपर विजय पाने के के बारे में बात करते सलोनी कहती हैं, “बोर्ड पर तीन बिंदु थे – गाँव, प्रौद्योगिकी और लाभ। ग्रामीण आउटसोर्सिंग/बीपीओ मॉडल इन बिंदुओं को आपस में जोड़ने के लिए आदर्श विचार था। इसे बहुत सोचने के बाद, हमने जनवरी 2005 में परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया।” औपचारिक रूप से फरवरी 2007 में फर्म पंजीकृत हुआ।

ग्रामीण बीपीओ स्थापित करने की योजना द्वितीय श्रेणी के शहरों और छोटे गांवों में थी ताकि देशीक्रू बेरोजगार युवाओं को शामिल कर सके, बुनियादी सुविधाएँ हो, आवश्यक प्रशिक्षण उपलब्ध करा सके और पूरे भारत के ग्राहकों से प्रोजेक्ट पा सकें। इस अनूठे फर्म ने गांवों में ही शिक्षित युवाओं के लिए गैर-कृषि रोजगार के अवसर सृजन करने में भी काफी कामयाबी हासिल की।

देशीक्रू की सबसे बड़ी चुनौती एक ग्रामीण परिवेश मेट्रो शहरों के उनके ग्राहक के कार्यालय के बराबर की बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की थी। जो शहरी लोगों की धारणा कि गुणवत्ता का काम शहरों से ही हो सकता है, को बदलने के लिए यह आवश्यक था। इसके लिए देशीक्रू को इन ग्रामीण बीपीओ में ब्रॉडबैंड कनेक्शन, स्थिर बिजली आपूर्ति और विभिन उपकरण आदि की व्यवस्था करनी पड़ी।

देशीक्रू ने कई प्रभावों के कारण लड़कियों की शिक्षा में सुधार लाने का कार्य कर रही है। चूंकि वे प्रमुख तौर पर महिलाओं को रोजगार देते हैं जिससे अब माता-पिता अपनी बेटियों को कम से कम हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी कराने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। प्रवासन उलट कर दिया गया है और मजदूर अब अपने वेतन का 9 0 प्रतिशत तक बचा सकते हैं, जैसा कि शहरों में 10 प्रतिशत के विपरीत है। देसीक्रू में, समुदाय के भीतर वितरण के लिए समुदाय द्वारा धन बनाया जाता है।

देशीक्रू ने अपने कार्यों से कई प्रभावपूर्ण परिवर्तन किए हैं उनमें लड़कियों की शिक्षा में सुधार एक है महत्वपूर्ण पक्ष है। चूंकि वे प्रमुख रूप से महिलाओं को रोजगार देते हैं। जिससे अब माता-पिता अपनी बेटियों को कम से कम हाईस्कूल की शिक्षा पूरी कराने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। गाँवों से पलायन कम हो गया है और शहरों में 10 प्रतिशत बचत की अपेक्षा गाँव में मजदूर अब अपने वेतन का 90 प्रतिशत तक बचत कर सक रहे हैं। देशीक्रू में, समुदाय के द्वारा उपार्जित धन समुदाय के बीच ही वितरण किया जाता है। 

जो लोग सीखने और कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार हैं, उन लोगों के लिए कोई नौकरी मुश्किल नहीं है। “हमें खुशी है कि हमारे गांवों में लोग कितना सक्षम हैं। उन्होंने अपने हाथ दिए और कई उच्च कोटि के कार्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। हमारा बिजनेस मॉडल ग्राहक की जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित हो रहा है और हमने हमारे मूलभूत मान्यताओं में बिना कोई परिवर्तन किए बदलाव को गले लगाना सीखा है” ,संस्थापक कहती हैं।

निस्संदेह, देशीक्रू का जन्म कभी नहीं हुआ होता, अगर सलोनी के पास अपने सपनों का पाने और पूरा करने की हिम्मत नहीं होती और सचमुच, उन्होंने अपनी क्षमता भर वह सब कुछ किया ताकि वे उन्हें वास्तविकता में बदल दें। वह एक खेल का पासा पलट देनेवाली, एक प्रावर्तक, एक सामाजिक उद्यमी रही हैं।

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