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सीमित संसाधन में छोटी शुरुआत से करोड़ों का साम्राज्य बनाने वाली ‘मशरूम गर्ल’ की कहानी

भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सदैव यह कहा जाता है कि यह एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन बर्तमान परिदृश्य को देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं के दृष्टिकोण में परिवर्तन हो रहा है और उनका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र को छोड़ शहरी क्षेत्रों की ओर दौड़ना बन रहा है। इसके पीछे की मुख्य वजह यह है गांवों में संसाधन और जागरूकता की कमी। लेकिन इन सबों के बीच आज भी युवा पीढ़ी का एक ऐसा वर्ग है जो गांव की प्राकृतिक सम्पदा का इस्तेमाल कर दूसरों के लिए उदाहरण पेश कर रहे।

आज की कहानी एक ऐसी ही लड़की की है जिसने उत्तराखंड की निर्मम पहाड़ी में सफ़लता का एक बेमिसाल उदाहरण पेश किया है। भारत के एक ऐसे राज्य में जहाँ वर्ष 2000 से आज तक, करीब 20 लाख से अधिक लोग गावों से शहरों की ओर बेतहाशा तेज गति से पलायन कर चुके हैं।

उत्तराखंड में मशरूम लेडी के नाम से प्रसिद्ध दिव्या रावत ने नोइडा के एमिटी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद 25 हजार मासिक सैलरी की नौकरी छोड़ गांव का रुख किया। दिव्या को बचपन से ही खेती करने में दिलचस्पी थी। इसी दिलचस्पी के साथ उसने वर्ष 2013 में एक छोटे से कमरे में 100 बैग मशरूम उत्पादन के साथ अपना कारोबार शुरू कर दिया। दिव्या के इस फैसले से उसके घर वाले भी हैरान थे। दिव्या ने सबसे अलग पहाड़ों में खंडहर पड़े मकानों से अपने मशरूम का व्यवसाय शुरू किया और आज इनकी कंपनी का प्लांट कई बहुमंजिला ईमारतों का सफ़र तय कर चुकी है।

शुरूआती सफ़लता के बाद दिव्या ने ‘सौम्य फ़ूड’ नाम से एक ब्रांड का निर्माण किया और फिर विदेशों में भी मशरूम का निर्यात करनी शुरू कर दी। गौरतलब है कि मशरूम उत्पादन के लिए बड़े बुनियादी ढांचे की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन दिव्या ने इन ढांचों में भी काफी सकारात्मक बदलाव किये, जिससे अब कोई भी आम आदमी इसे पाँच से दस हजार रुपये में शुरू कर सकता है।

मैं कोई असाधारण काम नहीं कर रही हूँ। मैं बस एक सामाजिक दायित्व को निभा रही हूँ जिससे जीविका और रोजगार जैसे सामाजिक चुनौतीओं से मुकाबला हो सके।

इसके अलावा दिव्या ने उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली दुर्लभ कीड़ा जड़ी पर भी काम करना शुरू किया है। रिसर्च के लिए उन्होंने मोथरोवाला में एक करोड़ से ज्यादा लागत की लैब तैयार की है। यहां कीड़ा जड़ी के विभिन्न उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इस कार्य में उनके भाई भी सहयोग कर रहे हैं।

दिव्या का मानना है कि युवाओं को रोजगार के लिए शहर में भटकने की बजाय ख़ुद का करोबार शुरू करने की दिशा में काम करना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो हम जैसे युवाओं को रोजगार की तलाश में शहर नहीं जाना पड़ेगा और साथ ही हम दूसरे जरुरतमंदों की भी मदद कर सकते हैं।

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