कैसे इस व्यक्ति ने अपनी रणनीति से घाटे में चल रहे बिज़नेस से बना लिया 1800 करोड़ का ब्रांड

जब हिन्दुस्तान में सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थों की चर्चा होती है तो थम्स अप, लिम्का, सित्रा और बिसलेरी जैसे कुछ ब्रांड के नाम हर जुवां पर होते हैं। ज्यादातर लोगों को लगता है कि ये ब्रांड विदेशी हैं लेकिन यह उनकी भूल है। आज हम एक ऐसे शख्स की कहानी से आपको रूबरू करा रहे हैं जिनकी दूरदर्शी सोच और वर्षों की कठिन मेहनत का नतीज़ा है कि उन्हें “भारत के कोला मेन” के नाम से जाना जाता है। महज़ 22 वर्ष की उम्र में घाटे में चल रहे अपने पैत्रिक कारोबार को दुनिया की एक नामचीन ब्रांड में तब्दील करने वाले इस शख्स की कहानी अपना कारोबार शुरू करने की चाहत रखने वाले हर व्यक्ति को पढ़नी चाहिए।

साल 1962 में कुछ ऐसा हुआ, जब एक 22 वर्षीय नौजवान युवक को ऍमआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वापस स्वदेश लौटना पड़ा। हुआ यूँ कि दशकों से चला आ रहा उनका पैत्रिक कारोबार मंदी के दौर से गुजर रहा था। दिनों-दिन कंपनी की सेल्स गिरती जा रही थी। ऐसे में कंपनी को इस दौर से बाहर लाने की जिम्मेदारी परिवार के युवा कंधों पर आ गई। लेकिन उस नौजवान की दृढ़-इच्छाशक्ति की बदौलत वह कंपनी न सिर्फ घाटे से बाहर आया बल्कि वैश्विक पटल पर एक नामचीन ब्रांड के रूप में उभरा।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 1800 करोड़ रुपये के बिस्लेरी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, रमेश जयंतीलाल चौहान के बारे में, जिन्हें भारत के ब्रांड गुरु के रूप से भी जाना जाता है। यह वही रमेश चौहान हैं जिन्होंने गोल्ड स्पॉट, थम्स अप, मजा जैसे ब्रांडों के साथ तीन दशकों तक भारतीय बाजार पर एकाधिकार किया। वह वही रमेश चौहान हैं जिन्होंने 90 के दशक के आरंभ में इन प्रतिष्ठित ब्रांडों को बेचकर कॉर्पोरेट दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना ली।

17 जून 1940 को मुंबई के एक कारोबारी घराने में पैदा लिए रमेश चौहान घर के चौथे बच्चे थे। गौरतलब है कि 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, रमेशभाई के दादा मोहनलाल चौहान दक्षिण गुजरात के वलसाड के पास एक छोटे से गांव पारदी से 12 वर्ष की उम्र में मुंबई चले गए थे। उनका सपना सिलाई सीखना था। उन्होंने इसे सीखने और गामदेवी में अपनी दुकान स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत की। जब उसने कुछ पैसे कमाए, तो साल 1920 में विले पार्ले में एक जमीन का टुकरा खरीदा और फिर बाद में इसी जमीन पर पार्ले इंडस्ट्रीज की आधारशिला रखी गई। 

एक गुजराती माध्यम स्कूल से शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद रमेशभाई को आगे की पढ़ाई के लिए ग्वालियर जाना पड़ा। मैट्रिक के बाद, वह 15 वर्ष की उम्र में बोस्टन चले गए। उन्होंने प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में उच्च शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही कारोबार की बारीकियों को बेहद करीब से देखने वाले रमेशभाई ने साल 1962 में एक मिनट में 60-रोटी बनाने वाली एक मशीन का ब्लूप्रिंट तैयार किया। हालाँकि यह उनके एक कॉलेज प्रोजेक्ट तक ही सीमित रह गया। सफलतापूर्वक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने से पहले उन्होंने यूरोप के कुछ बिस्कुट और सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों का दौरा किया। यहाँ उन्हें कई नई तकनीकों को जानने का मौका मिला। भारत लौटने के बाद उन्होंने पैत्रिक कारोबार में हाथ बताने शुरू कर दिए। कंपनी को मंदी के दौर से बाहर लाने के उद्येश्य से उन्होंने सॉफ्ट ड्रिंक इंडस्ट्री में कदम रखने का फैसला किया। पिता की देसी रणनीति और एमआईटी से मिली तकनीकी जानकारियों के सहयोग से उन्हें जल्दी ही कामयाबी मिल गई। 

साल 1977 उनके लिए स्वर्णिम साबित हुआ, जब भारत सरकार कुछ कारणों से कोका कोला ब्रांड को देश में बैन कर दिया। रमेशभाई ने बिना कोई वक़्त गंवाए बाजार में गोल्ड स्पॉट, लिम्का, थम्स अप, सिट्रा, मजा जैसे कोल्ड ड्रिंक्स लांच कर दिए। देखते-ही-देखते पूरे बाज़ार पर उनका एकाधिकार हो गया। लेकिन साल 1993 में भारतीय बाज़ार में कोका-कोला की पुनः वापसी के बाद रमेशभाई के सामने तरह-तरह की चुनौतियाँ आने लगी। उनके विक्रेता कोका कोला के साथ काम करने शुरू कर दिए। इस मुसीबत से बाहर आने के लिए रमेशभाई ने अपनी शानदार रणनीति के तहत अपनी कंपनी को कोला के हाथों ही बेच दिया।

उनकी मानें तो कोका-कोला ने इस सौदे के तहत बिस्लेरी खरीदने का मौका गंवा दिया और यह उनके लिए एक शानदार मौका था। साल 1969 में उन्होंने इटली के इतालवी उद्यमी सिग्नल फेलिस बिस्लेरी से खनिज जल कंपनी – बिस्लेरी को महज़ 4 लाख रुपये में ख़रीदा। आज जब बोतलबंद खनिज पानी की बात आती है तो बिस्लेरी भारत की सबसे बड़ी कंपनी है।

उम्र के इस पड़ाव पर भी रमेशभाई उसी जिन्दादिली और जुनून से कंपनी का संचालन कर रहे हैं। इसमें उनकी बेटी भी उनका भरपूर साथ दे रही हैं। रमेशभाई का मानना है कि ‘किसी भी सफल व्यक्ति के लिए, लोग कहते हैं कि वह भगवान द्वारा आशीर्वादित है, यह सच है, लेकिन आपको भी प्रयास करना होगा। क्रिकेट मैदान पर जब आप बॉल का सामना करते हैं तब अगर आप अपना बल्ले नहीं उठाते, तो आप एक मौका खो देते हैं। आपको अपने आस-पास अवसरों की तलाश करनी होगी। सब कुछ के लिए, आप भगवान पर निर्भर नहीं कर सकते हैं। रमेशभाई की सफलता से हमें काफी कुछ सीखने को मिलती है। परिस्थितियों का मुकाबला यदि चतुराई के साथ की जाए तो फिर कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता।

कहानी पर आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं और इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें

Left Luxurious Life, IAS Officer’s Wife Transformed A Bihar Village In 3 Months

Started Journey With Huge Losses, Turned It Around To Rs 1,800 Crore-Brand!