जन्म लेने पर परिवारवालों ने मनाया था मातम, आज उसकी पहल को पूरा समाज कर रहा है सलाम

किन्नर का विशेषण लेकर पैदा होना जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है, विशेषकर भारत जैसे देश में जहां समाज की मानसिकता एक किन्‍नर को सामान्‍य जीवन जीने ही नहीं देती। भाग्य से लड़ना कोई आसान काम नहीं लेकिन अपनी मुसीबतों को जो गले लगा ले उसके लिए भाग्य से जीतना मुश्किल भी नहीं। वर्षों से दुत्कार, प्रताड़ना और अपमान झेलने वाला यह तबका अब धीरे-धीरे अपनी उपलब्धि, प्रभाव्यता और बुलंद सोच से समाज के लिए मिसाल भी पेश कर रहा है। हमारी आज की कहानी एक ऐसी ही प्रेरणादायक व्यक्तित्व के बारे में है।

वाराणसी के रामनगर चौरहट में गुड़िया ने जब जन्म लिया तो मातम मनाया गया क्योंकि वह किन्नर थी। 16 साल तक परिवार पर बोझ बनकर पली। आखिरकार समाज के तानों से तंग आकर घर छोड़ दिया लेकिन कहीं कोई जगह न मिलने पर ढाई साल बाद अपने घर लौटी तो बड़े भाई की इजाज़त के बाद किन्नर गुरु रोशनी के साथ मंडली में बधाइयाँ गाने लगी। लेकिन भाग्य जब क्रूरता पर आता है तो उसके आगे हिम्मत भी हार जाती है। ऐसा ही हुआ गुड़िया के साथ खाना बनाते समय सिलेंडर फटने से उसका शरीर काफी झुलस गया तो अब बधाई गाने का काम भी छूट गया।

आखिरकार आजीविका के लिए रेल में भीख मांगने का निर्णय लेकर उसके कदम रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चले। जीवन और नियति के थपेड़े खाकर भी गुड़िया के मन में भाग्य से लड़ने की हिम्मत बाकी थी। ट्रेन में मांगे गए भीख के पैसों से बचत करनी शुरू की और दो पावरलूम लगाकर अपनी गुजर-बसर का इंतजाम भी कर लिया। भाई और भाभी की हिम्मत से जीने का जो हौसला गुड़िया के अंदर आया था वह उस कर्ज को भाई-भाभी की दिव्यांग बेटी के लिए कुछ कर के उतारना चाहती थी।

सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से प्रेरित होकर अपने भाई की दिव्यांग बेटी के साथ एक और बेटी को गोद लेकर आज गुड़िया उन्हें पढ़ा-लिखाकर पावरलूम पर काम करना भी सिखा रही है ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी होकर समाज में एक मिसाल कायम कर सकें। इतना ही नहीं गुड़िया अपनी एक बेटी को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर भी बनाना चाहती है।

समाज के दंश को किन्नर के रूप में जिसने बचपन से झेला, नियति की क्रूरता को युवावस्था में इतने करीब से देखा, यदि ऐसी शख्सियत खुद पैरों पर खड़ी हो कर दो और बच्चियों को स्वावलंबन व शिक्षा दे सकती है तो क्यों हमारे समाज में बेटियों को बोझ समझा जाता है।

दरअसल कमी बेटी या किन्नर होने में नहीं कमी तो सामाजिक विचारधारा में है जिसे समय-समय पर विकृत रूप दे दिया गया। इनके जीवन के मर्म को समझने के बजाय तिरस्कार भरी नजर से ही इन्‍हें देखा, क्‍यों कोई इनके अंदर के इंसान को नहीं देख पाता। गुड़िया की प्रेरणादायी कहानी समाज की विचारधारा को परिवर्तित करने के साथ-साथ दुश्वारियों से लड़ने के लिए भी प्रेरणा देती है।

इस कहानी को पढ़ कर कुछ आंखे नम होंगी तो कई दिल पसीजेंगे लेकिन हमारा कर्तव्‍य पूरा होगा तब जब हम गुड़िया के इस हौसले को जन-जन तक पहुंचाएंगे। जाने कितनी ऐसी गुड़िया होंगी जो हिम्‍मत हार चुकी होंगी शायद इस कहानी से उन्‍हें नया जीवन मिल जाए।


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