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“जहाँ चाह, वहाँ राह” यह साबित करती है इंजीनियर से IAS बनने वाले एक चाय वाले के बेटे की कहानी

कहते हैं परिश्रम वह चाबी है जो हर किस्मत का ताला खोल देती है। यदि दृढ़ संकल्पित होकर लक्ष्य का पीछा किया जाए, तो राह में आने वाली बाधाएं खुद-बख़ुद अपना रास्ता मोड़ लेगी। हमारी आज की कहानी एक ऐसे चाय वाले के बेटे की है, जिसने चुनौतियों का सामना करते हुए सफलता की जो कहानी लिखा वह वाक़ई में बेहद प्रेरणादायक है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 2018 बैच के आईएएस ऑफ़िसर देशल दान की, जिसने हिंदी माध्यम से पढ़ाई करते हुए पहले इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफलता हासिल की और फिर एक आईएएस ऑफ़िसर बनें। फेसबुक पर “हुमंस ऑफ़ एलबीएसएसएनए” नामक एक पेज के साथ उन्होंने अपनी कहानी को साझा किया।

“मैं राजस्थान के जैसलमेर जिले से ताल्लुक रखता हूँ। मेरे पिता किसान हैं और साथ ही एक चाय की दुकान चलाते हैं। मेरी माँ एक अनपढ़ गृहिणी हैं। मैं उनके 7 बच्चों में से एक हूँ। मैंने कक्षा 10 तक सरकारी राज्य बोर्ड हिंदी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। फिर मैं अपनी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए कोटा गया और IIIT जबलपुर में दाखिला लिया। 

मैंने आस-पास के गाँवों में राज्य सेवा और केंद्रीय सेवा में भर्ती हुए कुछ लोगों की वज़ह से सिविल सेवा के बारे में सुना था। उन्हें समाज में एक अलग ही तरह की प्रतिष्ठा मिलती थी। सब लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे। मेरा बड़ा भाई जिसने 7 साल तक भारतीय नौसेना में सेवा की, वह मुझे आईएएस बनते देखना चाहता था। दुर्भाग्य से, साल 2010 में आईएनएस सिंधुरक्षक में एक दुर्घटना में ड्यूटी के दौरान उन्हें अपना जीवन खोना पड़ा। यह मेरे जीवन का सबसे दुःखद पल था। मैं पूरी तरह बदल चुका था और फिर मैंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने का फैसला किया।

मैंने अपने इंजीनियरिंग कोर्स के अंतिम वर्ष में तैयारी शुरू कर दी थी। CSE की तैयारी के दौरान यह एक कठिन लेकिन दिलचस्प और समृद्ध अनुभव था।

मैं ऐसे परिवार से आता हूं, जहां मैंने संघर्ष और कड़ी मेहनत की कीमत सीखी। मेरे माता-पिता और बड़े भाइयों ने मेरी पढ़ाई के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। उनके बलिदान, कड़ी मेहनत और समर्पण ने मुझे अतिरिक्त प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। उनकी कठिनाइयों और संघर्ष ने मुझे महसूस किया कि पढ़ाई उनकी मेहनत और संघर्ष तुलना में बहुत आसान है। स्पष्ट रूप से मैं खुद को असाधारण नहीं मानता। यह केवल मेरे परिवार के बिना शर्त समर्थन और आशीर्वाद का कारण ही है कि आज मैं इस पायदान पर हूँ।

रिजल्ट के बाद, मैं अपने जीवन में पहली बार कुछ सार्थक करने के लिए तैयार हूँ। मेरे चयन के बाद मेरे पिता से मिलना एक बहुत ही व्यक्तिगत और भावनात्मक अनुभव था। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जो भी संभव हो और क्षमता से लोगों की सेवा करें। सेवा का हिस्सा बनना कोई विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि एक सार्थक जीवन को सीखने, सेवा करने और जीने का एक शानदार अवसर है।

देशल दान की सफलता वाक़ई में कई मायनों में प्रेरणादायक है। पहली बात यह कि जब आप लक्ष्य प्राप्ति के लिए संकल्पित होते हैं तो आपको पीछे नहीं मुड़ना है। परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना है। जीवन में कुछ करने के लिए अपनों का साथ और आशीर्वाद बेहद जरूरी है। और जब आप सफल हो जाते हैं तो अपने कल को कभी न भूलें।

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