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जानिए कैसे: 2 रुपये की राखी बेचकर सालाना 100 करोड़ का टर्नओवर करती हैं राजस्थान की महिलाएं

महिलाएं किसी भी तबके की हो, आज के आधुनिक युग में वे आत्मनिर्भर बनने के लिए एक साथ आगे बढ़ रही है और देश विदेश में अपना नाम रोशन कर सफलता अर्जित कर रही है। इसी का जीता जागता उदाहरण अलवर व झुंझुनू की महिलाओं ने प्रस्तुत किया है। जहाँ एक ओर अलवर की महिलाएं राखी बनाकर बेच रही है वहीं दूसरी ओर झुंझुनू की महिलाएं व बच्चियां सस्ते सेनिटरी नैपकिन बना कर बेच रही हैं।

रक्षाबंधन का त्यौहार आते ही बाजार रंग बिरंगे धागों से सज जाता है। बहनें आपने भाइयों के लिए सबसे अच्छी राखियों को चुनती हैं। पूरे विश्व में रक्षाबंधन भाई बहनों के प्यार का प्रतीक है, परन्तु राजस्थान के अलवर शहर में 10 हज़ार महिलाओं के लिए यह एक दिन का त्यौहार साल भर के लिए आमदनी का जरिया है। ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने के कारण इन महिलाओं को कही नौकरी नहीं मिल पाती है ऐसे में राखी बनाकर ये अपने परिवार का भरण पोषण करती है। शहर में राखी बनाने वाले 13 प्रतिष्ठान इन महिलाओं से ही राखी बनवाते है जिन्हे वह अपने घर में ही बनाती है। बाज़ार में इन राखियों की कीमत 2 रुपए से लेकर 200 रुपए तक होती है। अधिक मूल्य की राखियां राजस्थान आने वाले सैलानियों में काफी लोकप्रिय हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 40 हज़ार डिजाइनों में राखियां बनाई जाती है और हर साल लगभग 1000 नये डिजाइन बाजार में आ जाते हैं। नए डिजाइन बनाने में महिलाये विशेषज्ञों के साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है। इसमें उनके कम पढ़ा लिखा होना कही आड़े नहीं आता। कुछ व्यापारी तो नये डिज़ाइन बनाने की प्रतियोगिता भी आयोजित करते है। जैसे इस साल एक नया डिज़ाइन “चुड़ा राखी” बहुत प्रचलित है।

पिछले 30 वर्षो से इस उद्धोग ने अलवर क्षेत्र की इन महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना दिया हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज सालाना 100 करोड़ से ज्यादा का व्यापार होता है।

दिल्ली गेट की हिना सोमवंशी कहती है राखी से कमाए पैसो के कारण आज वो पोस्ट ग्रेजुएट हैं और अपने छोटे भाई बहनों को भी पढ़ा रही है। इसी प्रकार 23 साल की सविता शर्मा बताती है कि वह अब अपना खर्चा स्वयं उठती है तथा वह अब किसी पर निर्भर नहीं हैं। सविता बताती है आज इस व्यवसाय के कारण उनके घर में टीवी और फ्रिज जैसी सुविधा है।

जिस प्रकार अलवर की महिलाये एक दिन के त्यौहार की साल भर तैयारी करती है वहीं राजस्थान के झुंझुनू में महिलाये साल भर काम आने वाले सैनिटरी नैपकिन बनाकर न जाने कितनी औरतों व बच्चियों की मदद कर रही है और खुद को भी आत्मनिर्भर बना रही हैं।

झुंझुनू में महिलाओं ने आनंदी सैनिटरी नैपकिन के नाम से एक यूनिट डाली है जो बाजार में मिलने वाले नैपकिन से 6 रूपए कम कीमत पर उपलब्ध होता है इस पर जीएसटी भी नहीं लगता है और इसकी मार्केटिंग भी महिलाये करती है। इस साल फरवरी में सिर्फ 8 महिलाओं ने इस यूनिट को डाला था और यह गाँवो की महिलाओं में इतनी लोकप्रिय हुए की आज इनकी भारी डिमांड है। इस यूनिट का संचालन अमृता फेडरेशन सोसाइटी के नाम से महिला अधिकारिता विभाग करता है। आज 15 हज़ार महिलाये इस यूनिट जुडी है। इस सैनेटरी नैपकिन्स की कीमत 28 रूपए है जिसपर 3 रूपए कमीशन इन महिलाओं को मिलता है। सभी महिलाओं तक सैनेटरी नैपकिन पहुंच पाए इसके लिए जिले में 1593 आंगनबाड़ी केंद्र पर अमृता कॉर्नर खोले गए है। स्कूल व कालेजों में भी इस तरह के केंद्र खुलने जा रहे है।

इन दोनों ही उदाहरणों ने यह साबित करके दिखाया है कि औरत किसी भी मायने में कमतर नहीं आंकी जा सकती है वे बेहद मजबूत होती है कुछ भी केर दिखाने का जज़्बा रखती है बस ज़रुरत है अपनी छिपी काबिलियत को पहचानने की।

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