जेब में सिर्फ 50 रुपये, लेकिन कुछ कर गुजरने का था जज़्बा, आज हैं 10,000 करोड़ की कंपनी के मालिक

जब लोग किसी काम में असफल हो जाते हैं तो वे परिस्थितियों को, दूसरों से न मिलने वाली मदद को और भाग्य पर दोष मढ़ने लगते हैं। आज हम जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं उनका जीवन ऐसे ही तमाम परिस्थितिओं से गुजरा। बचपन में बहुत ही उन्होंने विषम से विषम परिस्थितियों का सामना किया।

परिवार और समाज से कोई सहायता न मिलने के बावजूद वे औपचारिक प्रशिक्षण से सिविल इंजीनियरिंग में पारंगत हो गए। कड़ी मेहनत के बाद जब उन्हें कुछ अवसर मिले तो कमबख़्त पूंजी के नाम पर उनके पास केवल 50 रुपये ही थे।

भारत के दिग्गज कारोबारी पी.एन.सी मेनन आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। मेनन जब दस वर्ष के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद उनके परिवार को बहुत सारी सामाजिक और आर्थिक दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। घर की स्थिति धीरे-धीरे और नीचे जा रही थी और फीस के लिए भी पैसे निकलना मुश्किल हो रहा था। जैसे-तैसे उन्होंने स्कूल की शिक्षा पूरी की और बी.कॉम करने के लिए त्रिसूर के एक लोकल कॉलेज में दाखिला ले लिया।

इधर घर की स्थिति दयनीय थी कि कॉलेज की फीस देना भी असंभव था। अंत में उन्हें कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। पैसे कमाना उनकी जरुरत और मज़बूरी दोनों बन गयी थी। घर में चूल्हा जलाने के लिए उन्होंने छोटे-मोटे  काम करना शुरू कर दिया।

बिना किसी औपचारिक शिक्षा के इन्होंने छोटे स्तर पर डिज़ाइनिंग का काम शुरू कर दिया था। अपने समर्पण के बल पर उन्होंने अपनी क्षमताओं को विकसित कर उच्च-स्तरीय इंटीरियर डेकोरेटर और सिविल का काम शुरू कर दिया। उनकी क्षमता और कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें कोई संतोषजनक कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिल रहा था। सभी बाधाओं को चुनौती देते हुए उन्होंने इस उद्योग के बारे में और विस्तार से सीखना जारी रखा।

कहा भी गया है कि भाग्य हमेशा बहादुरों का साथ देती है और यह मेनन के साथ भी हुआ। एक दिन उन्हें किसी ने भारत के बाहर अवसर तलाशने की सलाह दी।

“मैंने कभी भी ओमान का नाम नहीं सुना था पर वह जो कह रहे थे वही मेरे लिए काफ़ी रोमांचक था” मेनन कहते हैं।

लेकिन ओमान का सपना इतना आसान नहीं था। ओमान जाने के टिकट के पैसों का इंतज़ाम उनके औकात से बाहर की बात थी।

सफलता की यात्रा में बहुत सारी मुश्किलें आती हैं और उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कुछ पैसे इकठ्ठे करने की। एक तरफ का टिकट और हाथ में 50 रुपये लेकर ओमान जाना किसी ख़ुदकुशी से कम नहीं था। पर कहते हैं न कि जिनकी इच्छा असामान्य उपलब्धियां को हासिल करना है, वे असामान्य चुनौतियों का सामना करने को हमेशा तैयार रहते हैं।  मेनन वैसे ही लोगों में से थे।

सभी अनिश्चितताओं के बीच सिर्फ अपने साहस और विश्वास के औज़ार को लेकर मेनन ओमान पहुँच गए। उनके लिए ओमान एक सर्कस से कम नहीं था। अनजान संस्कृति, पराई भाषा और एक अपेक्षाकृत विकसित समाज की तिकड़ी उनके लिए बड़ी मानसिक चुनौती के रूप में खड़ी थी। ओमान का तापमान और भोजन शैली भी उन्हें शारीरिक रूप से तोड़नी शुरू कर दी थी।

सफल लोगों में चुनौतियों को अवसर में बदलने की क्षमता पहले से ही होती है। ओमान एक विकसित देश है पर वहां की जलवायु लोगों की कार्यक्षमता कम कर देती है। मेनन ने इस कमजोरी को मात देते हुए असामान्य रूप से कम समय में काम पूरा करने की पेशकश की। लोगों को उनका यह तरीका बेहद पसंद आया और जल्द ही उनके बहुत सारे बिज़नेस कांटेक्ट बन गए।

मेनन ने बैंक से लोन लेकर एक-एक पैसे का सदुपयोग करने की सोची और उन्होंने सड़क के किनारे एक छोटे स्तर पर इंटीरियर्स और फिट-आउट्स की एक दुकान खोल ली। मेनन हमेशा से ही परफेक्शनिस्ट थे और धीरे-धीरे उनके काम की गुणवत्ता की चर्चा होने लगी और उनके ग्राहक बनने शुरू हो गए।

“मैं स्वभाव से चैन से न बैठने वाला व्यक्ति हूँ। इसलिए मैंने कभी भी वीकेंड्स पर छुट्टी नहीं ली। जो व्यक्ति अपने तरीकों से काम करके ऊँचे उठते है वे प्रायः जो हासिल कर चुके हैं; उसके लिए असुरक्षित महसूस करते हैं” — मेनन

वह समय मेनन का संघर्षों से भरा था और वह पैसे कमाने के प्रयास में लगे रहे। जहाँ दूसरे ठेकेदार एयर कंडिशन्ड कार लेकर शान-ओ-शौकत का जीवन जी रहे थे, वही मेनन इस ओमान की गर्मी में सामान्य सी गाड़ी में सफर करते थे।उन्होंने लगभग 175000 किलोमीटर की दूरी ऐसे ही अ-वातानुकूलित कारों में सफर करते हुए तय किया था।

यह कठिन दौर महीने से सालों में तब्दील होते गए। पूरे आठ सालों बाद बिज़नेस में उन्हें एक हाई-पेइंग ग्राहक से कॉन्ट्रैक्ट मिला। मेनन की यह खासियत थी कि वह अच्छी गुणवत्ता के साथ और समय पर अपना काम पूरा करते है और इसी गुण से उन्हें एक अलग पहचान मिली। अपने इस फर्म का नाम उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर शोभा लिमिटेड रखा।

मेनन ने बहुत सारे होटल्स, महलनुमा घर, खाड़ी देशों में रॉयल परिवारों के घर और भारत में बहुत सारे आवासीय परियोजनाओं को अंजाम दिया है। मेनन ने इनफ़ोसिस के लिए विश्व की सबसे बड़ी कॉरपोरेट ट्रेनिंग सेंटर डिजाईन किया है। उनके अच्छे काम की तारीफ करने के लिए नारायण मूर्ति उनसे मिले और उन्हें बधाई भी दी।

वर्ष 2016 में फ़ोर्ब्स की गणना में मेनन की संपत्ति 10,801 करोड़ आंकी गई थी। मेनन खुद से बने हुए इंट्रेप्रेनेयर हैं जो विश्वास करते हैं, असाधारण गुणवत्ता और कठिन परिश्रम पर। बहुत सालों के संघर्ष के बाद उन्होंने न केवल एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया बल्कि एक सम्मानीय व्यक्ति के रूप में भी खुद को स्थापित किया है। 2013 में वे अपनी संपत्ति का आधा हिस्सा बिल गेट्स की चैरिटी को दान कर चुके हैं।

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