एक माँ को अपने बेटे को देख कर जो आनंद प्राप्त होता है वैसी आनंद की अनुभूति एक किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर होता है। मगर भारत में कृषि मॉनसून का एक जुआ है, जिस पर खेती निर्भर करती है। सरकारी और वैज्ञानिक मदद तो किसानों के लिए अल्पवृष्टि समान ही है। ऐसे में किसान अपनी समस्याओं का निदान स्वयं ही निकाल रहे हैं और अपनी खेती को सुदृढ़ बना रहे हैं।
गिरिडीह, झारखंड के डूमरी प्रखंड के सिमराडीह ग्राम निवासी युवा किसान बैजनाथ महतो एक ऐसे ही जीवट किसान हैं और कुछ कर गुजरने की तमन्ना की इच्छा के प्रबल व्यक्तित्व हैं। उन्होंने परिस्थितियों के आगे कभी सिर नहीं झुकाया और अपनी खेती-किसानी को बेहतर बनाने के लिए हमेशा प्रयास करते रहते हैं। पहाड़ से खेतों तक पानी लाकर जमीन को सींचा। जिससे अब इस इलाके में हरियाली छा गयी है। वे आस-पास के किसानों की भी मदद कर रहे हैं। बिना किसी सरकारी और वैज्ञानिकता की मदद के बगैर उन्होंने अपनी समस्याओं का निराकरण किया है।
बचपन ऐसी तंगहाली में बीता कि उनके पिता, रमेश्वर महतो को रिक्शा चलाना पड़ा। स्वयं बैजनाथ घास बेचने से लेकर बकरी चराने तक का काम किया। बड़े होने पर बँटाई के खेतों में काम करना शुरु किया। अपनी मेहनत, लगन और विशिष्ट सोच से आज वे न सिर्फ एक स्थापित किसान है बल्कि एक समर्पित समाज सेवक भी हैं।

बैजनाथ ने बगैर किसी सरकारी मदद के 250 एकड़ जमीन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराए हैं। इसके लिए उन्हें न कोई बिजली और न कोई पम्प की जरूरत पड़ी। जहाँ सिर्फ धान की खेती के बाद कोई फसल नहीं उगाया जाता था, वहां सिर्फ इनके अकेले प्रयास के बाद अब साल भर इलाके के खेत लहलहाते दिखाई देते हैं।
पहाड़ के ठीक बीचों-बीच बड़ा बाँध जो पत्थर माइनिंग के बाद बना वो यूँ ही बेकार पड़ा था पहाड़ी के तलहटी में बंद पत्थर खदान में जमा पानी को खेतों तक ले जाने के लिए करीब एक किलोमीटर तक पाइप बिछा दिया गया है। इससे डुमरी पंचायत के जोल्हाडीह, सिमराडीह, कदमटोला व डुमरी तथा जामतारा पंचायत के बेड़वा आदि में करीब 1000 एकड़ जमीन में सिचाई सुविधा उपलब्ध हुईं है। डुमरी की धरती पर हरित क्रांति लाने के लिए सरकारी सहयोग के बिना ही काम किया जा रहा है। आपसी सहयोग के सहारे और खुद श्रमदान कर किसान हरित क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं। उसमें उन्होंने अपने खर्चे से पाइपलाइन लगा कर नीचे के क्षेत्र, ऊपर खेती की जमीन हैं, वहाँ सिंचाई का पानी पहुंचाया। जो किसान वर्ग धान की फसल के बाद शहरों की ओर पलायन कर जाते थे, वे अब गाँव में ही रुक कर दूसरी फसल की तैयारी में जुट जाते हैं। खेती पारंपरिक तौर से ही है, रासायनिक खादों का उपयोग नगण्य है।
परिस्थितियों की प्रतिकूलता के कारण खेती से विमुख हो कर रोजगार के लिए शहर का रुख कर रहे किसानों में अब अपनी खेती में एक नई उम्मीद जगी है। दरअसल डुमरी प्रखंड के पूरे क्षेत्र में रोजगार के कोई साधन नहीं थे। रोजगार के लिये पलायन यहां के लोगों की नियति बन गई थी। खेतों तक पानी नहीं पहुंचने के चलते केवल वर्षा आधारित धान की खेती होती था। इसके बाद किसान हाथ पर हाथ धरे रहते थे लेकिन आज ऐसा नहीं है अब किसान धरती से सोना पैदा कर रहे हैं। सिंचाई की सुविधा होने से वे अब आलू, चना, गाजर, टमाटर और कई शाक-सब्जियों का भी उत्पादन कर रहे हैं।
उनका कहना है कि झारखंड में पानी की कोई कमी नहीं है यहाँ कई झरने और नदियाँ हैं जिन्हें पाईप के सहारे जोड़ कर पानी को खेतों की ओर मोड़ने की जरुरत है। वे पशुपालन में सुधार कर भी खेती को उन्नत करना चाहते है। खेती के लिए यह आवश्यक है कि पशुओं को नियंत्रित रखा जाए और खेतों को नुकसान से बचाया जाए। खेती और पशुपालन और जैव विविधता में सहजीविता का संबंध है अतः किसानों पर दोनो की सुरक्षा की जिम्मेदारी है।
किसानों की दिशा व दशा बदलने का जज्बा लेकर खेती के प्रति स्थानीय किसानों को जागृत कर उन्हें कई प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराया। इसके लिए बैजनाथ ने ‘हरिहर उलगुलान’ क्लब की स्थापना की। अल्प काल में क्लब ने दर्ज़नों गांवों में किसानों की चौपाल लगा कर परती जमीन पर साल भर खेती करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। इस दौरान कई गांवों में घर-घर जाकर लोगों को खेती के प्रति जागरूक किया। ग्रामीणों के अंदर छिपे किसान को जगाया जिसका नतीजा है कि बंजर भूमि पर आज हरियाली छाई है और ग्रामीणों को रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ रहा है।

बैजनाथ महतो कहते हैं, “किसानों को सरकार पर दवाब बनाने के लिए आन्दोलन या अपनी समस्याओं से बचने के लिए न तो आत्महत्या करें न ही अपनी फसल को सड़कों पर फेंके। बल्कि अपने और छोटे किसानों की सहायता करने भर उत्पादन करें और संगठित रुप से रहें। हमारा तन, मन, धन सब कुछ अन्न है यही हमारी शक्ति और आन्दोलन का अस्त्र-शस्त्र है। किसानों को अपने संघर्ष में अन्न को ही हथियार बना कर लड़ना चाहिए।”
हरियर उलगुलान क्लब किसानों की फसल के लिए मार्केटिंग भी करेगा। स्थानीय बाजार में सब्जियों और अनाज की बड़ी माँग है। उनका प्रयास किसानों के लिए बाजार उपलब्ध कराने के साथ ही साथ फसल के रख रखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज बनवाने की भी योजना है।
बैजनाथ बताते हैं, “परंपरागत खेती जो विलुप्त होने के कगार पर है और जिस अनाज को खाने मात्र से ही कोई भी बीमारी नहीं होती थी या फिर बीमारी होने पर भी खाने मात्र से ही बीमारी ठीक होती थी। पहले के लोग पहलवान की तरह होते थे आज कमजोर हो रहा है इसीलिए अब फिर से पहले जैसे कोदो, गोंदली, मडुवा, साइठी धान, करैहनी धान,आदि का खेती से किसानो को जोड़ना है।”
उन्होंने बताया कि हरियर उलगुलान क्लब के द्वारा ब्राउन राइस का मिल भी लगाने की योजना है ताकि किसानों को फसल का उचित दाम मिल सके। अल्प समय में बहुत कुछ तो नहीं हुआ है लेकिन शुरूआत हो चुकी है।
बैजनाथ महतो मिट्टी से सोना उपजाते हैं। वे अधिक पढ़े-लिखे नहीं परंतु उन्हें खेती की बारीकियों का ज्ञान है। अपने फसल की जरुरतों के तदनुसार नीति निर्धारित करने में दक्ष हैं। उनकी जीवटता और कर्मठता उन किसानों के लिए एक प्रेरणा है जो परिस्थिति के आगे घुटने टेक देते हैं। बैजनाथ महतो जैसे किसान को यदि वैज्ञानिक मदद मिले तो हिंदुस्तान में कृषि के नए आयाम गढ़े जा सकते हैं।
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