भारतीय महिलाओं द्वारा घर का कुशल प्रबंधन और बचत की आदत प्रशंसनीय है जिसका प्रमाण नोटबंदी के दौरान भी देखने को मिला। पुरुषों से ज्यादा बचत महिलाओं ने छुपा कर रखी थी। उनकी इस आदत को समझते हुए प्रधानमंत्री ने खुले मंच से इसकी प्रशंसा करते हुए बचत खातों पर छूट की गारंटी भी दी थी। ऐसे देश में महिलाओं का शोषण होना भी एक कड़वी सच्चाई है। इस समस्या पर वर्षों से मंथन कर रही बिलासपुर की रहने वाली हेमलता साहू ने पाया कि इस शोषण की जड़ में तो पैसा ही मूल कारण है।
स्वावलंबन द्वारा महिलाएं आत्मसम्मान पा सकती हैं। ऐसी सोच के साथ वह हमेशा कुछ करना चाहती थी। इसकी शुरुआत उन्होंने वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए स्वाध्याय केंद्र खोलकर की। पहले शहरी महिलाओं को जोड़ा, फिर चैरिटेबल ट्रस्ट एवं बेकरी यूनिट बनाई। बाजार के मध्य महिलाओं द्वारा टेलरिंग शॉप खोलना एक पुरुष प्रधान समाज में बहुत बड़े विरोध का कारण बना लेकिन धीरे-धीरे समाज ने उसे स्वीकार कर लिया।
इसी बीच हेमलता ने अखबार में जम्मू कश्मीर से विस्थापित महिलाओं की छत्तीसगढ़ में आने की खबर पढ़ी क्योंकि उनके पति को मार दिया गया था। आदिवासी महिलाएं तो छत्तीसगढ़ में पहले से ही प्रताड़ित थी। कुछ मारवाड़ी महिलाएं जो हेमलता के साथ जुड़ी हुई थी उनके सहयोग से विस्थापित एवं आदिवासी महिलाओं को संगठित करने के लिए उन्होंने दो ग्रुप बनाएं। एक ग्रुप में 20 महिलाएं थी और दूसरे ग्रुप में 40 महिलाएं थी उन्होंने इस संगठन को धर्म व आस्था से जोड़ने के लिए एक-एक मुट्ठी चावल हर महिला द्वारा इकट्ठा करवाया और एक अनोखे बैंक की शुरुआत की। हालांकि दो से चार महीने में ही इसके प्रबंधन में कठिनाइयां आने लगी क्योंकि सभी के द्वारा लाया गया चावल अलग-अलग किस्म का होता था। लेकिन इस शुरुआत से वह एक संगठन के लिए तैयार हो गए।
अब उन्होंने पैसा जोड़ना शुरु किया सरकारी विभागों में जाकर उन्होंने लड़ाई का पहला कदम जीता कि विस्थापित महिलाओं को रोजगार मिला। इससे हेमलता एवं उनसे जुड़ी महिलाओं के संगठन को एक नई ताकत और पहचान मिलने लगी। अब उन्होंने 23 गांवों में 500 ग्रुप बनाकर उन्हें सरकारी तंत्र से जोड़ा ताकि उनको लोन मिल सके। सरकार ने उनकी इस मुहिम में सहयोग किया और 25,000 रुपए प्रति सदस्य को लोन मिलने लगा, जिसमें 10,000 रुपए की छूट दी जाती थी और 15.000 रुपए सरकार को वापस करने होते थे। लेकिन सरकारी तंत्र में जब भ्रष्टाचार का सामना किया तो पहले इस लड़ाई को लड़ा जिसमें महिलाओं को विजय मिली। इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि अब पैसा भी उनका होगा, बचत भी उनकी होगी, और बैंक भी उनका ही होगा।
2003 में 10,000 महिलाओं के साथ हेमलता ने सखी क्रेडिट सरकारी समिति की स्थापना की। इसमें सभी महिलाएं अपना पैसा जमा करवाती हैं और यहीं से लोन लेती हैं। इस बैंक से पहले महाजन 2000 रुपए में 3 एकड़ जमीन खेती-बाड़ी करने वाली महिलाओं की गिरवी रख लेते थे जिसका ब्याज भरते-भरते सालों बीत जाते, जबकि असल वही रहता था इसलिए पहला कार्य सखी बैंक ने 88 एकड़ जमीन को छुड़वाने का किया जिससे महिलाएं स्वावलंबी हो गई और ज़मीन का मालिकाना हक उन्हें मिल गया। यह सखी बैंक की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इस अनोखे बैंक में महिलाएं अपनी बचत का 5 गुना तक लोन ले सकती हैं।

केनफ़ोलिओज़ से ख़ास बातचीत में हेमलता ने बताया कि “खेती-बाड़ी, शिक्षा और सामाजिक कार्यों के लिए यहां लोन दिए जाते हैं। लोन का ब्याज 15% सालाना घटती दर पर देना होता है जब की बचत का ब्याज 7% के हिसाब से मिलता है, लाभांश का प्रतिशत बचत करने वाली महिलाओं को प्राप्त होता है। सहकारिता अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर्ड इस बैंक की कार्य प्रणाली को पारदर्शी रखने के लिए महिलाओं के संगठन में से ही एकल महिला कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जाती है।
सामाजिक बदलाव के साथ यह अनूठा बैंक सामाजिक सुधार के प्रति बहुत बड़ा कदम है क्योंकि यह मायके है उन 10,000 महिलाओं का जो इसकी सदस्य हैं।
घर में पति अथवा घर वालों द्वारा शोषण व हिंसा का शिकार होने पर वह अपने मायके का रुख कर लेती हैं और यहां से फैसला होने के बाद ही अपने पति के साथ वापस घर लौटती हैं। यह जीत है नारी शक्ति और उसके सम्मान की जिन्होंने अपनी मेहनत और कार्य शक्ति के संगठन से समाज की विचारधारा को ही बदल दिया।
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