जीवन कभी-कभी बड़े अप्रत्याशित स्थितियों में खड़ा कर देता है। हम कभी नहीं जान पाते कि अभी आगे क्या घटने वाला है। हालांकि बाहर से हम कितने भी कमज़ोर लगते रहें लगते रहें भीतर की स्थिति के बारे में जानना बेहद कठिन होता है। इसलिए डॉक्टर्स को जादूगर माना जाता है क्योंकि वे जीवन देते हैं और वह भी वह भी प्रचुरता से ।
देश की राजधानी दिल्ली का अपोलो हॉस्पिटल फरवरी के पहले हफ्ते एक मेडिकल चमत्कार का गवाह बना। आसिफ़ खान, सीने में तेज दर्द की शिकायत लेकर हॉस्पिटल पहुंचा था।
अलीगढ़ का यह 22 वर्षीय इंजीनियर लड़का एक घंटे के लिए मृत घोषित कर दिया गया था और डॉक्टर्स उसकी जिंदगी बचाने के लिए हर सम्भव प्रयास करने लगे।
आसिफ़ को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उस दिन उनके साथ क्या हुआ। सीने के दर्द के परीक्षण से पता चला कि उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ था और वे बेहोश हो गए। उनका शरीर कुछ भी हरकत नहीं कर रहा था। ट्रामा स्पेशलिस्ट्स ने विश्वास दिलाया कि उन्हें लगातार ब्लड पहुंचाने के लिए कार्डियोपल्मोनरी रिसक्सिएशन (CPR) दिया जा रहा है।
उनके हार्ट को डिफिब्रिलेटर का उपयोग कर शॉक्स दिए जा रहे थे। एक घंटे से भी अधिक समय से निरन्तर प्रयास किये जा रहे थे तब जाकर आसिफ़ ने कोई प्रतिक्रिया दी। उनका हार्ट पुनर्जीवित हो गया और उस कमरे में सब ने राहत की साँस ली। परन्तु बात यहीं ख़त्म नहीं हुई।
अगला कदम उनके कार्डियक अरेस्ट का कारण ढूंढने और उनकी स्थिति सुधारने की थी। आसिफ़ को कॅथेटराइजेशन लैब में शिफ्ट किया गया, जहाँ पर इमेजिंग इक्विपमेंट की मदद से आर्टरीज और हार्ट के चैम्बर्स को विसुअलाइस किया जाता है।
जब उन्हें एंजिओग्राम के लिए कैथ लैब ले जाया जा रहा था तब उन्हें फिर से कार्डियक अरेस्ट हुआ। डॉक्टर्स के पास अब कोई भी चारा नहीं था सिवाय ब्लड क्लॉट को हटाने के और जल्द से जल्द स्टंट लगाने के।
हॉस्पिटल अथॉरिटीज ने उनके परिवार को सारी स्थिति के बारे में बताया और उनसे जरूरी ऑपरेशन करने के लिए अनुमति मांगी। उनके माता-पिता यह सब सुनकर अपने बेटे के लिए चिंतित हो गए। डॉक्टर्स बिना समय गंवाए आसिफ़ की जान बचाने में लग गए। डॉक्टर्स को एक के बाद एक परेशानियों का सामना करना पड़ा पर अंत में आसिफ़ ने जीवन के कुछ संकेत दिए।
“हॉस्पिटल ने सदभावना के संकेत के रूप में एक फूटी कौड़ी भी आसिफ़ के इलाज़ के लिए उनके परिवार से नहीं लिया।”
जब उनका हार्ट पुनर्जीवित तो हो गया पर आसिफ़ कोमा में चले गए। उन्हें वेंटिलेटर में रखा गया और ब्लड सप्लाई इम्प्रूव करने के लिए उसे लगातार मेडिसिन्स दिए जा रहे थे। अगले दो दिनों तक वे कोमा में थे और उनके ब्रेन फंक्शन में स्वास्थ्य लाभ का कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहा था।

अंत में बहुत सारी मेडिसिन्स और वेंटीलेटर में रखने के बाद आसिफ़ ने आँखे खोली। उन्होंने रिस्पॉन्ड करना शुरू कर दिया और उनका बॉडी फंक्शन स्थिर होना शुरू हो गया।
अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर कंसलटेंट डॉ एनएन खन्ना कहते हैं, “ हमने सोचा कि उसका ब्रेन डेड हो गया है। हम पुष्टि करने की प्लानिंग ही कर रहे थे तभी उसने अचानक ही आँखे खोल दीं। वह एक युवा लड़का था, हम उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे।”
हॉस्पिटल का पूरा माहौल खुशियों से भर गया। डॉक्टर्स के अनुभव और आसिफ़ की इच्छाशक्ति की मदद से ही यह मुमकिन हो पाया। आसिफ़ का परिवार डॉक्टर्स का धन्यवाद करते थक नही रहे हैं क्योंकि उनकी ही वजह से उनके बेटे को नई जिंदगी मिल पाई।
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