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दृष्टिहीनता की वजह से नहीं मिली नौकरी, कानूनी लड़ाई लड़ी और बन गई देश की पहली नेत्रहीन IFS अफसर

समाज में शारीरिक रूप से अक्षम या दिव्यांग लोगों को एक अलग ही नज़रिये से देखा जाता है। कहीं न कहीं एक साधारण व्यक्ति के मन में ऐसे लोगों के प्रति नकारात्मक भावना होती है। और इसी नकारात्मक सोच के कारण ऐसे दिव्यांगों के मन में एक कुंठा का भाव पैदा हो जाता है। पर ऐसा कदापि नहीं है कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति में प्रतिभा की कोई कमी होती है। बल्कि उनकी प्रतिभा और एकाग्रता तो एक साधारण व्यक्ति की तुलना में कई ज्यादा होती हैं। बस शारीरिक और सामाजिक दबाव के कारण उनके लिये कठिनाइयाँ साधारण व्यक्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाती है। सामाजिक रूप से कुछ ऐसी ही समस्याओं का सामना एक महिला को भी करना पड़ता है। तो ज़रा सोचिए अगर कोई महिला ही शारीरिक रूप से अक्षम हो तो उसके लिए परिस्थितियाँ कैसी होगी?

आज हम एक ऐसी ही महिला के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसने इस बाधाओं को पार करते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और बनीं देश की पहली और अकेली पूरी तरह दृष्टिहीन आईएफएस अधिकारी।

27 वर्षीय बेनो जेफाइन एनएल तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई की रहने वाली हैं। ईसाई परिवार में जन्मी बेनो पूर्ण रूप से नेत्रहीन हैं। बचपन से ही वे दोनों आँखों से नहीं देख सकती हैं। पर उनके माता-पिता ने कभी उनको ऐसा महसूस होने नहीं दिया कि उनकी कमी के कारण वे दूसरों से कमतर हैं। बेनो के पिता लुक एंथोनी चार्ल्स एक रेलवे कर्मचारी हैं और उनकी माँ मैरी पद्मजा एक गृहिणी हैं। ऐसे बच्चे के पैदा होने पर जहाँ दूसरे माँ-बाप उन्हें बोझ समझ कर अपनी किस्मत को कोस रहे होते हैं। वहीं बेनो के माता-पिता ने हमेशा उनको पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

भले ही बेनो की आँखों में रौशनी नहीं थी पर उनका दिमाग बहुत तेज़ था। दृष्टिहीन होने के बावजूद बेनो पढ़ाई में अव्वल आती थीं, उनकी माँ उनको पढ़ाई में हमेशा सहायता करती थीं। उन्होंने अपनी स्कूलिंग लिटिल फ्लावर कॉन्वेंट स्कूल फॉर ब्लाइंड्स से किया। यह स्कूल दृष्टिहीन दिव्यांगों के लिए खास तौर पर बनाया गया है। यहीं बेनो नें ब्रेल लिपि में पढ़ना व लिखना सीखा। उसके बाद उसने चेन्नई के स्टेला मॉरिस कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। बेनो यहीं नहीं रुकी उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी के लोयला कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन भी पूरा किया।

उसके बाद उन्होंने बैंकिंग परीक्षा में बैठने का फैसला किया और उनका चयन एसबीआई में बतौर प्रोबेशनरी ऑफिसर हुआ। उन्होंने बैंक में नौकरी करनी शुरू कर दी पर उनका सपना तो कुछ और था। वह आईएफएस ऑफिसर बनना चाहती थीं। उसके बाद बेनो यूपीएससी परीक्षा की तैयारियों में जुट गयीं। उनके पहले प्रयास में उनको उतने अच्छे अंक नहीं मिले पर उन्होंने अपना हौसला नहीं हारा। उन्होंने दोबारा प्रयास किया और 2013 के सिविल सर्विसेज परीक्षा में 343वां रैंक हासिल किया। पर आईएफएस में पूर्णतः दृष्टिहीनों की भर्ती नहीं की जाती थी। बेनो नें इसके लिया गुहार लगाई, फिर आईएफएस नें अपने नियमों में कुछ बदलाव किया और उनकी भर्ती की। पर इस प्रक्रिया में एक साल का वक़्त लगा।

देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएफएस अफसर बनकर 25 साल की बेनो ने इतिहास रच दिया। बेनो जेफाइन 69 साल पुरानी भारतीय विदेश सेवा की परीक्षा पास करने वाली पहली शत प्रतिशत दृष्टिहीन छात्रा हैं। बेनो साल 2014 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुई थीं और अब उन्हें पेरिस के भारतीय दूतावास में पहली पोस्टिंग दी गयी है।

बेनो अपनी इस सफलता का श्रेय वह अपनी मां और पिता को देती हैं। उनकी मां ने उन्हें घंटों किताबें और अखबार पढ़कर सुनाती थीं ताकि बेटी की तैयारी में कोई कमी न रह जाए। जहाँ भी जाना होता था उनके पिता उनको ले जाया करते थे और किसी भी किताब या सॉफ्टवेयर की जरुरत होती तो वही लाकर देते थे। परीक्षा की तैयारी के लिए ब्रेल लिपि में हर किताब मिलना संभव नहीं था। तो उनके पिता ने एक सॉफ्टवेयर उनके कंप्यूटर में अपलोड कर दी, जिसकी मदद से वे सभी किताबों को पढ़ सकती थीं। बेनो नें पूरी तरह ब्रेल लिपि पर आश्रित होने के बजाय जॉब एक्सेस विद स्पीच (JAWS) नाम के सॉफ्टवेयर की मदद ली। इस सॉफ्टवेयर की मदद से दृष्टिहीन लोग भी कंप्यूटर स्क्रीन पढ़ सकते हैं।

इस तरह तमाम कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों से लड़कर बेनो नें जिस प्रकार ये मुकाम हासिल किया है, ये हम सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

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