दृष्टिहीनता की वजह से नहीं मिली नौकरी, हार नहीं माने, अब अपनी कंपनी खोल दूसरों को दे रहे रोजगार

हौसला हो तो कोई भी दिक्कत आसान हो जाती है फिर चाहे वो देख सकने की कमजोर क्षमता यानी मन्द दृष्टि की ही समस्या क्यों न हो। ज़ज़्बा हो तो बड़ी-से-बड़ी बाधाएं भी आसानी से दूर हो जाती हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (IT) के क्षेत्र में देश के पहले मंद-दृष्टि उद्यमी प्रतीक अग्रवाल एक ऐसे अनूठे उदाहरण हैं जिसने अपनी तमाम कमजोरियों के बाद भी अपने हौसलों से राह में आने वाली तमाम चुनौतियों को उनकी हैसियत दिखा कर शानदार कामयाबी हासिल की।

प्रतीक का जीवन प्रेरणा है उन तमाम लोगों के लिए जो चुनौतियों के सामने हार मान जाते हैं। प्रतीक का मानना है कि इस तेज रफ्तार जिन्दगीं में हर कोई बड़ा बनने की चाहत लिये दौड़ रहा है। मगर लोग सिर्फ वही काम करना चाहते हैं जो आरामदायक हो। ऐसे बहुत कम ही लोग होते जो सहूलियतें त्याग कर कुछ नया और सबसे अलग करना चाहते हो। मगर यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी क्षमताओं को निखारे और कुछ बेहतरीन करें, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हो।

अपने जुनून को पहचाना

प्रतीक जब छः महीने के थे तो उनके माता-पिता को ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्हें देखने में कोई समस्या है। उन लोगों ने उन्हें डाक्टर से दिखलाया। जाँच में पाया गया कि प्रतीक दृष्टिहीनता से जूझ रहा है। इसके बावजूद भी जयपुर निवासी इस युवक ने अपने आप को बचपन में ही इस चुनौती से लड़ने का संकल्प किया और खुद को किसी बंधन में जकड़ने नहीं दिया।

उनके स्कूल में दाखिले के लिए परिवार को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जब उन्होंने अपनी पढ़ाई सेण्ट माइकल्स स्कूल, जयपुर से शुरू की तो वहाँ के प्रिंसिपल और कर्मचारियों ने उनकी शिक्षा के लिए हर सम्भव सुविधाओं की व्यवस्था की। उनकी माताजी, जो एक कुशल गृहिणी हैं, उन्होंने उनके पढ़ाई के कार्य में मदद करने के लिए ब्रेल भाषा भी सीखी।

जब प्रतीक सातवीं कक्षा में पहुंचे तो उनका रुझान कम्प्यूटर की तरफ बढ़ने लगा। उन्होंने कम्प्यूटर की कई चीजें खुद से सीखीं। इसके लिए उन्होंने स्क्रीन रिडिंग साफ्टवेयर, जॉब एक्सेस विथ स्पीच (JAWS) की मदद ली। उनका सपना एक साफ्टवेयर इंजीनियर बनने की थी। इसके लिए उन्होंने कठिन मेहनत की और एनाआईआईटी यूनिवर्सिटी, नीमराणा से कम्प्यूटर विज्ञान में ग्रेजुएट किया।

अनंत चुनौतियां मगर हार नहीं माने

मगर उनकी कठिनाइयों का अंत कहाँ होने वाला था। हालांकि वे पढ़ाई में बेहतर थे उन्होंने पात्रता परीक्षा में गणित, तर्कशक्ति और वाद-विवाद में अच्छे अंक हासिल किए परंतु साक्षात्कारकर्ताओं ने उनका अंतिम रुप से चयन सिर्फ उनकी मंद-दृष्टि दोष के कारण नहीं किया। प्रतीक ने अपनी क्षमता से भरसक कोशिशें की परंतु सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाया जिससे उनका आत्मविश्वास भी कुछ डगमगाने लगा।

प्रतीक कहते हैं कि -“यह इतनी बार और लगातार बार-बार होता गया कि मैं अपने आप को तबाह-बर्बाद महसूस करने लगा। मैं रोता था और अपने आप से पूछता था कि नौकरी पाने के लिए मुझे और क्या करना चाहिए और मेरे हाथों में और क्या करना शेष रह गया है।”

प्रतीक के पास संगीत और कला के क्षेत्र में प्रदर्शन करने का विकल्प तो था परंतु उन्होंने अपने लिए कुछ अलग ही तय कर लिया था। जो कुछ भी हुआ उसके धूल को अपने कंधों पर से हटाते हुए 2010 में उन्होंने खुद की कम्पनी डीडल टेक्नोवेटिवस (Daedal Technovations) को पंजीकृत करवाया। उस वक्त वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र थे। शुरुआती दौर में ग्राहकों को खींच पाना उनके लिए बेहद ही कठिन था। वे स्वयं ही स्थानीय व्यवसायियों से मिलते और उनकी साफ्टवेयर की जरूरतों को समझते।

डिजिटल क्षेत्र में मानव संसाधन (HR), स्टाक मार्केट, इनवाॅयस इत्यादि के व्यवसाय काफी तेजी से फल फूल रहे थे। मगर ग्राहकों को आकर्षित कर पाना कठिन कार्य था।

“जब मैं उनसे मिलता तो वे बहुत ही हैरान महसूस करते। क्या तुम वो ही लड़के हो जिसने फोन पर बातें की थी? वे मुझसे पूछते। आखिरकार वे कहते कि वह अपना प्रोजेक्ट किसी दृष्टिहीन व्यक्ति को नहीं दे सकते”, प्रतीक ने याद करते हुए कहा।

कठिन मेहनत रंग लाई

अपनी कड़ी मेहनत और सतत प्रयासों से जल्द ही प्रतीक ने कुछ ग्राहक जुटाए। मगर यह तरक्की इतनी बड़ी नहीं थी कि उन्हें इससे कोई बड़ा लाभ प्राप्त हो सके। अपने ग्राहक प्रबंधन के अनुभवों के आधार पर उन्होंने अपनी कम्पनी को एक वैश्विक कंम्पनी बनाने का निर्णय किया। उन्होंने अपने काम का विस्तार किया और अब उनके 95 प्रतिशत ग्राहक दुनिया भर के कोने-कोने से हैं।

उनकी सेवाओं की श्रृंखला के तहत B2B प्रभाग में साफ्टवेयर एप्लीकेशन के कौशल की है। साथ ही साथ डिजिटल मार्केटिंग, सोशल मीडिया, सर्च इंजन मार्केटिंग और प्रोजेक्ट और सुरक्षा परामर्शदाता की है। इनकी कम्पनी कुछ जटिल प्रौद्योगिकियों पर आनलाईन ट्रेनिंग की भी सुविधा प्रदान करती है।

आज प्रतीक एक मजबूत स्थिति में हैं उनके साथ 40 समर्पित कर्मचारियों का एक दल है जो हर प्रकार से विकसित हो रहे हैं और खुशहाल हैं। प्रतीक कार्पोरेटस में और व्यक्तिगत तौर पर व्यक्तित्व निर्माण और जीवन के कौशल विकास की ट्रेनिंग भी देते हैं। वे मंद-दृष्टि वालों को कम्प्यूटर ट्रेनिंग भी देते हैं साथ-ही-साथ कई अन्य सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हुए हैं।

प्रतीक अग्रवाल एक वास्तविक प्रेरणास्रोत हैं जो चुनौतियों को एक बंधन के समान नहीं मानते हैं। उन्होंने परिस्थितियों का स्वरूप ही बदल डाला और दुर्बलता को एक बड़े अवसर के रूप में परिवर्तित कर दिया। उनकी इस सफलता का मुख्य श्रेय उनके कभी हार नहीं मानने वाली प्रवृत्ति को जाता है जिसने यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि यदि जिन्दगीं एक दरवाजा बंद कर दे तो हमें हार नहीं मान लेना चाहिए।

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