राह काँटों भरी भले ही क्यों न हो, यदि किसी इंसान में कामयाबी को हासिल करने की इच्छाशक्ति हो तो उससे बड़ी ताकत और कुछ हो ही नहीं सकती। जिंदगी की राह में हर इंसान के हिस्से बहुत सारी कठिनाइयाँ इंतजार कर रही होती है, अलग-अलग मोड़ों पर उसकी राह रोकने के लिए। परन्तु बुलंद हौसलों वाला व्यक्ति उन तमाम बाधाओं को पार करते हुए एक हीरो के रूप में उभर कर सामने आता है और इतिहास के सीने पर एक गुलाब की तरह टंगा रहता है।
भिन्न रूप से सशक्त किसी व्यक्ति के लिए पद्मश्री का सम्मान प्राप्त करना अपने आप में ही बड़ी बात है। आज की हमारी कहानी के नायक एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने विकलांगता के प्रति लोगों की धारणाओं को तोड़ा है। उनका यह व्यवसाय कोई नौ से पांच वाली नौकरी नहीं है जिसमें आराम से कुर्सी पर बैठना है। उन्होंने वह रास्ता चुना है जिसमें कम लोग ही चलते हैं, श्रम की राह। गेनाभाई दरगाभाई पटेल ने कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाकर साबित किया है शरीर से विकलांगता भिन्न रूप से सशक्त होने का दूसरा नाम है। वे मिसाल बन कर उभरे हैं भिन्न रूप से सशक्त और आम लोगों के लिए भी।

वे एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं जहाँ उनके पिता, भाइयों के साथ मिलकर पूरे दिन खेतों में काम करते थे। उन्हें कभी भी खेतों में काम करने को नहीं कहा गया क्योंकि उनके दोनों पैर पोलियो से ख़राब हो गए थे। उनके पिता उनके बेहतर जीवन के लिए हमेशा अच्छी शिक्षा पर जोर देते थे। और इसी वजह से वे घर से 30 किलोमीटर दूर हॉस्टल में रह कर पढ़ाई करते थे। अशिक्षित परिवार से होने के कारण उन्हें अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वापस गांव बुला लिया गया।
गेनाभाई खेतों में अपने भाइयों की मदद नहीं कर पाते थे इसके लिए उन्होंने ट्रेक्टर चलाना सीखा। उन्होंने ट्रेक्टर चलाने में महारत हासिल कर ली और अपने गांव के सबसे अच्छे ट्रेक्टर ड्राइवर बन गए। इसके बाद उन्होंने परिस्थितयों के हिसाब से फसलों को देखना शुरू किया।
52 वर्षीय गेनाभाई कहते हैं “मैं खेती करना चाहता था इसलिए मैंने फसलों को देखना शुरू किया कि कौन सी खेती मेरे अनुकूल होगी। कुछ ऐसा जिसे केवल एक बार उगाने की जरूरत हो और लम्बे समय के लिए रिटर्न्स मिले।”
बहुत सारे एग्रीकल्चर ऑफिसर और यूनिवर्सिटी से सलाह लेने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उनके लिए अनार की खेती ही सही विकल्प है। खेती से संबंधित जानकारी जानकारी प्राप्त करने के उद्येश्य से उन्होंने गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान का दौरा किया और उनके दिमाग में चल रहे सारे सवालों का जवाब उन्हें महाराष्ट्र में मिला। उनकी पहली पसंद आम थी पर उन्हें आम पर इन्वेस्ट करना सही नहीं लगा क्योंकि वह साल में एक बार आता है और अगर फसल ख़राब हो गई तो किसान को पूरे एक और साल इंतजार करना पड़ता है।
उत्तरी गुजरात के सरकारी गोलिआ गांव के लिए अनार की फसल एक असामान्य फसल थी। लोग गेनाभाई के निर्णय पर प्रश्नचिन्ह लगाते। परन्तु उनके परिवार ने उनकी पसंद को स्वीकार किया और बीज लगाने में उनकी मदद की। 2004 और 2007 के बीच उन्होंने 18,000 पौधे लगाए।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उनकी फसल के लिए खरीदार मिलना एक बड़ी बाधा थी। फिर से जेनाभाई ने इस बाधा से निकलने के लिए एक युक्ति लगाई। उन्होंने ऐसे खरीदार को अपनी फसल बेची जो सीधे खेतों से ही उनके उत्पाद ले जाए। इससे उन्हें अपनी फसल बेचने जयपुर या दिल्ली नहीं जाना पड़ता। जहाँ सभी किसान खेती करके 20,000 से 25,000 रुपये कमाते थे वहीं जेनाभाई 10 लाख रुपये तक कमा लेते थे।

जल्द ही उनके जिले में पानी की समस्या आन पड़ी जिससे वहां के लोगों को खेती करने में मुश्किल होने लगी। फिर से गेनाभाई ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया और उन्होंने ड्रिप सिंचाई को अपनाया जिससे फसल की वृद्धि में मदद मिली और पानी की बचत भी हुई। उन्होंने एक तीर से दो निशाने लगाए।
उनके अति उत्कृष्ट कौशल और आइडिया के लिए उन्हें कई राज्यों में और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी भी उनके प्रसंशकों में से एक हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उनकी सराहना की और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से नवाज़ा।
अगर आप खुद को कमज़ोर मान लेंगे तब आपके हर कदम पर संघर्ष ही होगा परन्तु अगर आप खुद को शक्तिशाली मान लेंगे तो आप को कोई भी चीज़ डरा नहीं पायेगी। हम गेनाभाई के प्रयासों के लिए उन्हें सलाम करते हैं।
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