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दो वक़्त की रोटी के लिए बेहद संघर्ष किया था, आज 500 करोड़ की कंपनी बना हजारों को दिया रोजगार

जिन्दगी कांटों का सफर है, हौसला इसकी पहचान है। रास्ते पर तो सभी चलते हैं, लेकिन जो रास्ता बनाये वही इंसान है। चंद शब्दों से बनी यह पंक्तियाँ काफी कुछ बयाँ कर जाती है। हमें यह अहसास कराती है कि जीवन की डगर कितनी कठिन है और उस कठिन डगर पर आगे बढ़ने के लिए कुछ ऐसा करना है, जो सबसे अलग हो। जिंदगी की राह में सफलता उन्हें ही हासिल होती, जो बिना थके-बिना रुके अपने लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ते चले जाते और कामयाबी के इतने झण्डे गाड़ देते कि उनका जीवन पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन जाता।

आज हम ऐसे ही एक प्रेरक व्यक्तित्व की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने गरीबी से बाहर निकल कर कामयाबी का एक अनोखा संसार बनाया। अशोक खड़े आज देश के एक दिग्गज उद्योगपति के रूप में जाने जाते हैं, जिनकी कंपनी का टर्नओवर 500 करोड़ के पार है।

महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक बेहद ही गरीब परिवार में जन्में अशोक की जिंदगी में गरीबी और संघर्ष बचपन में ही दस्तक दे चुका था। छह बच्चे के इस परिवार को किसी तरह दो वक़्त का खाना नसीब हो पाता था। कभी-कभी तो कई दिनों तक भूखे पेट ही रात गुजारनी होती थी। इनके पिता रोजगार की तलाश में मुंबई का रुख किये और पेड़ के नीचे बैठ राहगीरों के जूते-चप्पल सिलने का काम किया करते था। इसके बावजूद भी पूरे परिवार का भरण-पोषण करना अत्यंत मुश्किल भरा था। गांव के ही सरकारी स्कूल से सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद अशोक दूसरे गांव के स्कूल में पढ़ने चले गए।

अशोक समझ चुके थे कि गरीबी और अभाव से बाहर निकलने के लिए पढ़ाई ही एकमात्र सहारा है। अपनी गरीबी से ही प्रेरणा लेते हुए उन्होंने जमकर पढ़ाई और आगे बढ़ते रहे।

गरीबी को मात देकर अनोखी सफलता हासिल की

संघर्ष के दिनों को याद करते हुए अशोक बताते हैं कि मां ने उन्हें चक्की से आटा लाने भेजा था। बारिश का मौसम होने की वजह से हर तरफ कीचड़ था। अचानक अशोक फिसले और सारा आटा कीचड़ में गिर गया। अशोक ने घर पहुंचकर यह बात बताई, तो मां रोने लगीं। उनके पास बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। फिर माँ ने गांव के पाटील के घर से थोड़े भुट्टे और कुछ अनाज मांगकर लाई। उसे पीसकर उन्होंने रोटी बनाई और बच्चों को खिलाया। खुद भूखी रहीं।

माँ को गरीबी से लड़ते देख अशोक ने उसी दिन तय कर लिया था कि परिवार को गरीबी से निकालना है।

ट्यूशन पढ़ाकर खुद का गुजारा किया

बोर्ड परीक्षा के बाद अशोक मुंबई में अपने बड़े भाई के पास पहुंचे। उनके भाई उस समय तक मझगांव डॉक यार्ड में वेल्डिंग अप्रेंटिस की नौकरी पा चुके थे। उनके भाई को इन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करते हुए कॉलेज की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। अशोक अपने भाई की आर्थिक हालात को बखूबी जानते थे अंत में उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर खुद के कॉलेज खर्चे निकालने शुरू कर दिए। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अशोक आगे की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन परिवार की मदद के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ मझगांव डॉक में अप्रेंटिस का काम करना शुरू कर दिए। उन्हें 90 रुपए स्टाइपेंड मिलती थी।

कुछ इस बनाई 500 करोड़ की कंपनी

अशोक की हैंडराइटिंग काफी अच्छी थी और इसी वजह से उन्हें कुछ समय बाद शिप डिजाइन की ट्रेनिंग दी जाने लगी। चार साल बाद उन्हें परमानेंट ड्राफ्ट्समैन बना दिया गया और उनका काम था जहाजों की डिजाइन बनाना। सैलरी भी बढ़कर करीबन 300 रुपए हो गई। अशोक जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहते थे और इसके लिए उन्हें उच्च-शिक्षा की आवश्यकता थी। अंत में उन्होंने नौकरी के साथ-साथ डिप्लोमा करने का निश्चय किया। चार साल बाद डिप्लोमा की सफलतापूर्वक पढ़ाई करने के बाद उन्हें क्वालिटी कंट्रोल डिपार्टमेंट में ट्रांसफर मिल गया। इसी दौरान काम के सिलसिले में उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला जहाँ उन्होंने दुनियाभर में मशहूर जर्मन टेक्नोलॉजी को बेहद करीब से देखा। यहाँ उन्हें अपने काम की मजबूती का अहसास हुआ।

भारत लौटने पर उन्होंने खुद का एक फर्म बनाने की सोची। फिर उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्रा.लि. की आधारशिला रखी। शुरुआत में इन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन छोटे-मोटे काम को इमानदारी पूर्वक करते हुए इन्होंने आगे बढ़ने का सिलसिले को जारी रखा और आज दास ऑफशोर के क्लाइंट्स की लिस्ट में ओएनजीसी, ह्युंडई, ब्रिटिश गैस, एलएंडटी, एस्सार, बीएचईएल जैसी कंपनियां शामिल हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अबतक इनकी कंपनी ने समुद्र में 100 से ज्यादा प्रोजेक्ट पूरे कर चुके हैं। दास ऑफशोर में 4,500 से ज्यादा कर्मचारी हैं तथा इनका टर्न ओवर 500 करोड़ के पार है।

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