मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करने वाले अंकुर को ब्रांडेड जूते पहनने का शौक है। वह बताते हैं कि काम के चलते इतना टाइम नहीं मिलता कि जूते धुलें। फटने या खराब होने के डर से उन्हें घर में धोने में भी डर लगता है। इतने महंगे जूतों को फेंकने का दिल भी नहीं करता। अंकुर के अलावा प्राइवेट कंपनी में ब्रांड मैनेजर पोस्ट पर तैनात रवि का भी ऐसा ही कहना है। ये सिर्फ अंकुर और रवि की ही दिक्कत नहीं है बल्कि ब्रांडेड जूते पहनने वाले हर शख्स की कहानी है।
दरअसल, अब तक जूतों की छोटी-बड़ी समस्याओं को लेकर लोग मोची के पास ही जाते थे। लेकिन उसमें ब्रांडेड शू में डुप्लीकेट सोल लगने का डर रहता है। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए सरल बुद्धिराजा नाम के एक युवा उद्यमी ने शू लांड्री का कारोबार शुरू करने का फैसला लिया। साल 2009 में “द शू मेन” नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत करने वाले बुद्धिराजा को खुद भी ब्रांडेड शूज का शौक है और वो भी इस तरह की समस्या से परेशान थे।
सरल कहते हैं इस तरह की शुरुआत मैंने पहली बार की थी, इसलिए मुझे इसमें आगे बढ़ने और सीखने को बहुत कुछ मिला। स्टीव जॉब्स जैसे बिजनेसमेन को अपना आइडियल मानने वाले सरल आज सक्षम कारोबारी हैं और अपने बिजनेस का विस्तार कर रहे हैं।
शू लॉन्ड्री का कांसेप्ट इन दिनों भारत में भी काफी फल-फूल रहा है। जिस तरह कपड़ों की लॉन्ड्री में कपड़ों की रंगाई, धुलाई और मरम्मत होती है, वैसे ही शू लॉन्ड्री में जूतों की मरम्मत होती है। यहां जूतों की रिपेयरिंग से लेकर उनकी पॉलिशिंग तक होती हैं। इतना ही नहीं जूतों के सोल बदलवाने, नेट बदलवाने और रंगाई कराने तक की सुविधाएँ होती है। ब्राडेंड शूज की ब्रांड वैल्यू बनाए रखने के लिए यहाँ गारन्टी भी दी जाती है।
केनफ़ोलिओज़ से बातचीत में सरल बताते हैं कि इस तरह के स्टार्टअप का ख्याल मुझे उस समस्या से जूझने के दौरान ही आया, मुझे लगा मेरे जैसे कई और भी लोग होंगे, जो इस समस्या से परेशान होंगे।
दिल्ली यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करने वाले सरल ने बेल्जियम से एमबीए किया और फिर फुटवियर इंडस्ट्री का कोर्स किया। कारोबार शुरू करने में उन्हें वेब डेवलपर, मशीन और शॉप आदि लगाने में 15 लाख का निवेश करना पड़ा लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इसे चुका दिया। शुरुआत में मार्केटिंग में दिक्क्त आई और बिजनेस नया था तो थोड़े चैलेंजेस आये लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों को कांसेप्ट समझ आया और वे इसे पसंद करने लगे।
दिल्ली, सिविल लाइन्स और गुरुग्राम में सरल के स्टोर हैं, जहाँ लोग आकर अपने जूते दे जाते हैं। साथ ही वेबसाइट के जरिए इन्हें पूरे भारत से आर्डर मिलते हैं। ऐसे ऑर्डर्स को लोजिस्टिक पार्टनर के जरिए ग्राहकों के घर से लेकर वापस ठीक होने के बाद डिलीवरी कर दी जाती है। वर्तमान में हर महीने लगभग 300 ऑर्डर्स मिलते हैं जिससे उन्हें लाखों की कमाई होती है।

बिज़नेस आइडिया के सफलता पर सरल का मानना है कि जो लोग महंगे शूज अफोर्ड कर सकते हैं, वे उसकी मरम्मत पर भी पैसे देते हैं और इसीलिए हाई क्लास के लोग उनके ज्यादातर कस्टमर्स हैं।
शुरुआत में किसी भी बिजनेस में दिक्कतें आती ही है और जब आप कुछ नया कर रहे होते हैं तो और अधिक कठिनाईयों का सामना करना होता है। लेकिन जो इन कठिनाईयों का सामना कर लेता है उसे सरल बुद्धिराजा जैसी सफलता मिलती है।
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