नौकरी छोड़ी, दूध की कमी को देखते हुए शुरू किया डेयरी उद्योग, आज 200 करोड़ का है सालाना टर्नओवर

हमें मालूम है कि हमारा देश एक कृषि-प्रधान देश है और ज्यादातर आबादी का मुख्य पेशा कृषि पर ही आधारित है। लेकिन देश में तकनीकी क्रांति की वजह से हमारी नई पीढ़ी का रुझान कृषि से हटकर अन्य क्षेत्रों की तरफ हो रहा है। अगर कायदे से देखें तो युवा वर्गों के भीतर कृषि को लेकर हीन भावना प्रतीत होती है। उन्हें लगता है कि कृषि के क्षेत्र में काम करते हुए बड़ी कामयाबी हासिल कर पाना मुश्किल है। लेकिन हमारे समाज में इन्हीं युवाओं के बीच कुछ ऐसे प्रभावशाली युवा भी हैं जिन्होंने अच्छी-खासी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ कृषि को अपनाया और आज सफलता के ऐसे पायदान पर पहुँच चुके हैं, जहाँ पहुँचना औरों के लिए सिर्फ एक सपना है।

आज हम ऐसे ही एक पहली पीढ़ी के उद्यमी की सफलता की कहानी पेश कर रहे हैं, जिन्होंने टाटा ग्रुप में अपनी नौकरी को अलविदा कर देश की दुग्ध उत्पादक सेक्टर की दिशा बदलते हुए उद्यम पूंजी की मदद से करोड़ों रुपये की कंपनी का निर्माण कर लिया।

आज हम बात कर रहे हैं देश की पहली उद्यम-पूंजी समर्थित कृषि स्टार्टअप ‘मिल्क मंत्रा’ की आधारशिला रखने वाले श्रीकुमार मिश्रा की। ओडिशा के कटक में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पले-बढ़े श्रीकुमार ने अपनी स्कूली और कॉलेज स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद भुवनेश्वर के प्रतिष्ठित जेवियर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट से एमबीए की पढ़ाई पूरी की। सफलतापूर्वक मैनेजमेंट करने के बाद उन्हें टाटा समूह में नौकरी लग गई।

लोगों की मौजूदा समस्या को दूर करने के लिए किसी कारोबार की शुरुआत करने में विश्वास रखने वाले श्रीकुमार ने हमेशा अपने आस-पास की परिस्थिति को गहराई से अध्ययन किया। इसी दौरान उन्हें अपने राज्य में दूध की अपार कमी महसूस हुई। इस कमी को दूर करने के लिए उन्हें एक बड़े कारोबार के अवसर दिखाई दिए। और फिर शून्य से शुरू हुआ मिल्क मंत्रा।

अपनी आइडिया के साथ आगे बढ़ते हुए श्रीकुमार ने साल 2009 में अपने बेहद सफल करियर को छोड़ ‘मिल्क मंत्रा’ की आधारशिला रखी। टाटा समूह के साथ काम करते हुए अपने आठ साल के करियर में श्रीकुमार ने टाटा टी द्वारा टेटली समूह के अधिग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अपने कॉर्पोरेट तजुर्बे का सही इस्तेमाल करते हुए उन्होंने देश में, विशेष रूप से ओडिशा में – किसानों के स्थायी नेटवर्क की मदद से एक शुद्ध और स्वस्थ डेयरी उत्पादों के ब्रांड बनाने की प्रक्रिया शुरू की।

यह आइडिया इतना प्रभावशाली था कि कुछ ही महीनों में उन्होंने कई निवेशकों को आकर्षित करते हुए देश की पहली उद्यम-पूंजी आधारित कृषि स्टार्टअप ‘मिल्क मंत्रा’ को एक नई उंचाई पर बिठा दिया। बाज़ार में मौजूदा ब्रांड को कड़ी टक्कर देते हुए उन्होंने पहले ही साल 18 करोड़ का रेवेन्यु करने में सफल रहे। एक के बाद एक कई निवेश की मदद से उन्होंने जून 2011 में अपनी खुद की  तीन-परत पैकेजिंग तकनीक प्रणाली विकसित कर ली, जिसकी वजह से प्रकाश द्वारा दूध सामग्री को होने वाले नुकसान को रोका जाता है। साल 2012 में उन्होंने डायरेक्ट-टू-होम डिलीवरी दूध जैसी सेवाओं के साथ भुवनेश्वर और कोलकाता में अपने उत्पादों का शुभारंभ किया।

श्रीकुमार ने मिल्क मंत्रा के बैनर तले 40 हज़ार से भी ज्यादा किसानों को एकजुट करते हुए 21वीं सदी में एक नए स्वेत क्रांति को जन्म दिया। मिल्क मंत्रा की इतने कम समय में इतनी बड़ी उपलब्धि पर अध्ययन करने के लिए रिजर्ब बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन खुद कंपनी में पधारे।

आज ‘मिल्क मंत्रा’ दुग्ध के साथ-साथ कई अन्य डेरी उत्पादों को करोड़ों ग्राहकों तक पहुंचा रही है। ओडिशा के पुरी में कंपनी का मुख्य प्रसंस्करण संयंत्र है। इसमें प्रतिदिन 70000 लीटर दूध की प्रसंस्करण क्षमता है। साथ ही संबलपुर में भी एक संयंत्र है जिसकी क्षमता प्रति दिन 50000 लीटर की है। कंपनी का सालाना टर्नओवर 120 करोड़ के पार है। ओडिशा में शुरूआती सफलता के बाद कंपनी झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में भी अपने प्रोडक्ट को लांच कर चुकी है।

श्रीकुमार ने कठिन मेहनत और मजबूत इच्छा-शक्ति की बदौलत अपनी कंपनी को शून्य से शिखर पर बिठाया। अपने स्वर्णिम कॉर्पोरेट करियर को छोड़ दूध का कारोबार शुरू करने की साहस रखने वाले यह शख़्स सच में सलाम करने योग्य हैं।

अपडेट: हाल ही में मिल्क मंत्रा ने 10 मिलियन डॉलर की फंडिंग उठाई है। कंपनी की माने तो साल 2012-13 में 2 मिलियन डॉलर के मुकाबले कंपनी ने 2019-20 में 32 मिलियन डॉलर अर्थात 208 करोड़ का रेवेन्यू किया।

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