आज के इस प्रतिस्पर्धा के युग में हर कोई आगे जाना चाहता है और यही आगे जाने की इच्छा उसे अपनी जमीं अपना गाँव छोड़ने को विवश कर रही है। आये दिन समाचारों की सुर्खियां होती है जैसे कि “रोजगार की चाह में उत्तराखंड के गाँवों से हो रहा पलायन।” और इस पलायन के चलते उत्तराखंड के पहाड़ियों की रौनक वहाँ के गाँव वीरान हो रहे हैं, खंडहरों में तब्दील हो रहे हैं।
गाँवों में रोजगार के अवसर प्रदान करके इस पलायन को रोकने व स्वरोजगार के अवसरों को उत्पन्न करने की जिम्मेदारी उठाई है देहरादून के रानी पोखरी स्थित बड़कोट गांव के होनहार युवक हरिओम नौटियाल ने। कहते हैं मन से अगर किसी चीज़ की चाह हो और उसके लिए दृढ संकल्प रहें तो पूरी क़ायनात उसे आपसे मिलाने की कोशिशों में लग जाती है इस बात को हरिओम ने चरितार्थ कर दिखाया है। अपने गांव की तरक़्क़ी के लिए कुछ करने का दृढ़ संकल्प रखने वाले हरिओम के माता–पिता की ख़्वाहिश थी कि बेटा इंजीनियर बने इसलिए हरिओम ने ग्राफिक ऐरा, देहरादून से बी.ई.(आई.टी) और जयपुर, राजस्थान के जेएनयू से एमसीए की डिग्री हासिल की और उसके बाद दिल्ली और बंगलूरू में 4 साल तक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और रिसर्चर के तौर पर अच्छी ख़ासी तनख्वाह वाली नौकरी करी। इस जीवन से उनके परिवार के सब लोग बेहद खुश और संतुष्ट थे लेकिन हरिओम संतुष्ट नहीं थे। वे अपनी मिट्टी से, अपने गाँव में ही रहकर काम करना चाहते थे। इसलिए अधिक दिनों तक इंजीनियर की नौकरी और मोटी तनख्वाह हरिओम को अपने मोह में बाँध कर नहीं रख पाई और आखिरकार उन्होंने नौकरी छोड़कर अपने गाँव में व्यवसाय करने का फैसला कर ही लिया। इस फैसले ने उनका जीवन बदल कर रख दिया।

साल 2014 में हरिओम ने केवल पांच गायों से अपनी डेयरी की शुरुआत की। अपने सफल करियर को त्याग कर गांव लौटकर डेयरी व्यवसाय शुरू करना बिल्कुल भी आसान नही था।
हरिओम बताते हैं कि “रिश्तेदारों ने भी मुझे अपनी नौकरी छोड़कर गांव न आने की हिदायत दी लेकिन तब तक मैं गाँव लौटने का मन बना चुका था। और गांव पहुंचकर मैंने छोटे स्तर पर ही सही अपना डेयरी व्यवसाय शुरू कर दिया।”
हरिओम जानते थे कि बिजनेस शुरू करना और उसे सुचारू रूप से चलाना आसान नहीं है। लेकिन फिर भी उन्होंने रिश्क लेने का फैसला किया। लेकिन अपने हुनर के दम पर आज वह न सिर्फ अपनी जिंदगी बदल रहे हैं बल्कि इसके जरिए वह हजारों लोगों को शहर छोड़कर पुनः गांव की ओर रुख करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।
हरिओम अपने बिजनेस के शुरूआती दिनों की यादें साझा करते हुए कहते हैं कि “जब मैंने गांव में परिवार के साथ मिलकर डेयरी व्यवसाय प्रारम्भ किया तो मुझे प्रतिदिन केवल 9 रुपए का ही मुनाफा होता था। जो काफी कम था और इसी तरह कई महीनों तक मुझे केवल 270 रुपए प्रतिमाह का ही मुनाफ़ा मिला।“
अधिक समय तक अच्छा मुनाफ़ा नहीं मिलने पर भी हरिओम ने हौसला नहीं छोड़ा और ना ही अपने कदम पीछे लिए अपितु उन्होंने डेयरी बिजनेस के साथ ही अपनी नौकरी से की गई बचत राशि का उपयोग कर मुर्गी पालन भी शुरू कर दिए। धीरे-धीरे समय बदलने लगा, हालात काबू में आने लगे और व्यवसाय प्रगति करने लगा। और आज उस डेयरी व्यवसाय के चलते हरिओम हर महीने 1.5 लाख से 2 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं।
एक दिलचस्प किस्से का ज़िक्र करते हुए हरिओम कहते हैं कि “जब मैंने गांव में डेयरी बिजनेस के साथ मुर्गी पालन की शुरुआत की तो कुछ रिश्तेदार केवल इसलिए मेरे से ख़फ़ा हो गए क्योंकि मैं एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हुए चिकन और अंडे का कारोबार कर रहा था। लेकिन कुछ ही समय में उन्हें मेरे विचार समझ आने लगे और सबकुछ ठीक होने लगा।“ आमतौर पर दूध होम डिलीवरी के जरिए घर–घर में पहुंचता है। लेकिन हरिओम ने इस विचार से आगे सोचते हुए चिकन और अंडों की भी होम डिलीवरी शुरू की, वह भी बाजार भाव से कम दाम पर। बाजार में इस वक्त 180 से 200 रु प्रति किलो चिकन बिक रहा है। लेकिन हरिओम यही चिकन 130रु प्रति किलो के हिसाब से घर-घर जाकर उपलब्ध कराते हैं।
इंजीनियर के सफल करियर को छोड़कर उत्तराखंड के एक छोटे से पहाड़ी गाँव बड़कोट के एक कमरे और पांच गायों से डेयरी बिजनेस शुरू करने वाले हरिओम के पास आज 12 गायें और भैंस है। इनमें सायवाल, हरियाणवी, जर्सी, रेड सिंधी आदि नस्लें शामिल हैं। हरिओम ने अपना फार्म खुद ही डिजाइन किया जिसमे आज लगभग हर नश्ल की गाय है। उनके फार्म में भूतल पर डेयरी फार्म, उसके ऊपर प्रथम तल पर मुर्गी पालन के लिए दो बड़े हाल बनाए गए हैं। जिसमें वे बॉयलर मुर्गियां पालते हैं। इसके साथ ही भूतल में देसी मुर्गियों के लिए अलग बाड़ा बनाया गया। डेयरी के आंगन में ही मशरूम उत्पादन के लिए भूमिगत कमरे बनाए गए हैं। साथ ही अपने यहाँ काम करने वाले लोगों की सुविधा को देखते हुए कर्मियों के रहने की व्यवस्था अलग से की गई है। हरिओम के फ़ार्म को आदर्श फार्म की संज्ञा दी जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

डेयरी व मुर्गी पालन के अलावा आज वह कंपोस्टिंग, मशरूम की खेती, बकरी पालन समेत कई नए व्यवसाय प्रारम्भ कर चुके हैं।अब तो हरिओम ने अचार और जाम बनाने का काम भी शुरू कर दिया है। वह उत्तराखंड में मिलने वाले फल माल्टा और बुरांस जैसे अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर उत्तराखंड के ग्रामीण युवकों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एक हजार से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना हरिओम का लक्ष्य है।
हरिओम जल्द ही उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी गांवों में अपना कारोबार बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए वह गाँवों में मिनी स्टोर भी खोल रहे हैं। हरिओम कहते हैं कि ‘मैं अपने व्यवसाय की प्रगति के साथ ही लोगों को स्वरोजगार शुरू करने के लिए प्रेरित करता हूं। इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग और आवश्यक सहायता भी मैं अपनी तरफ से देने के लिए तैयार रहता हूँ क्योंकि वर्तमान में उत्तराखंड के हजारों गांव खाली हो चुके है और अन्य गांव भी दिन–प्रतिदिन खाली होते जा रहे हैं। ऐसे में पलायन रोकने का सबसे अच्छा तरीका स्वरोजगार को बढ़ावा देना है।“
35 वर्षीय हरिओम नौटियाल ने उत्तराखंड के वीरान होते गाँवों को पुनः जीवित करने की दिशा में जो महत्वपूर्ण प्रयास कर रहे हैं निश्चित ही उस प्रयास से पहाड़ फिर से गूंज उठेंगे, उनकी रौनक जो शहरों की तरफ जा रही है फिर से लौट आएगी। वाकई उत्तराखंड के युवाओं के लिए हरिओम एक प्रेरणा स्रोत है।
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