बेंजामिन फ्रैंकलिन की कहावत ‘ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है’ अत्यंत प्रसिद्ध है। किताबों में तो यह है, लेकिन मनुष्य के जीवन में यदि यह नीति ईमानदारी से लागू हो जाए तो परिवार, समाज और राष्ट्र का उत्थान निश्चित है। सरकारी योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति तक नहीं पहुंचने की खबरें तो आम है लेकिन आज जिस गांव के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं वह सरकारी योजनाओं के सदुपयोग कर दूसरे गाँवों के सामने एक मिसाल पेश कर रहा है।
आप यकीन नहीं करेंगे आज 157 से भी ज्यादा गांव इसके मॉडल को अपना रहे हैं। प्राचीन भारत जो सोने की चिड़िया कहलाता था उस भारत की झलक यह गांव प्रस्तुत करता है। उदयपुर के छोटे से गांव पिपलांत्री को 2007 में स्वच्छता मॉडल के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
पिपलांत्री के कायाकल्प के सूत्रधार श्री श्यामसुंदर पालीवाल ने केनफ़ोलिओज़ के साथ ख़ास बातचीत में तमाम चीजें साझा की।

एक गरीब परिवार में जन्मे श्री पालीवाल ने बचपन से ही कठिनाइयों को अपने करीब पाया लेकिन स्वयं को इस संकल्प के साथ बड़ा किया कि अपने गांव और गांव वासियों के लिए काफी कुछ करना है। नियति ने उनकी मंशा को भांप कर उन्हें सरपंच बनने का मौका दिया। उन्होंने इस पद का भरपूर सदुपयोग करते हुए गांव वासियों के लिए जागरूकता अभियान चलाए जिसमें उन्होंने जल, पेड़ और बेटी को बचाने के लिए पूरे गाँव को जागरूक किया। जल संचयन का महत्व समझाया, गांव की महिलाओं द्वारा वृक्षों को राखी बंधवा कर भाई-बहन का अनोखा रिश्ता बनवा दिया, जिससे वृक्षों का कटाव रोकने में सहायता मिली। बेटी बचाओ अभियान के अंतर्गत गांव में बेटी के पैदा होने के उपलक्ष्य में वृक्ष लगाए जाने लगे। गरीब और असहाय परिवारों की बच्चियों को सहायता देने के लिए सक्षम परिवारों को प्रेरित कर इन बेटियों के लिए जमा योजना शुरू करवा दी जो उनकी पढ़ाई एवं विवाह में काम आ सके।
सबसे दिलचस्प बात यह रही कि गांव के जो लोग श्रमदान समझकर गांव में काम करते थे, अपनी मातृभूमि के प्रति उनकी भावनाओं को जागृत कर लोगों को सरकारी योजनाओं का भरपूर सदुपयोग करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह गांव के प्रत्येक घर में योजनाओं का लाभ पहुंचाया।
गांव में आ रहे बदलाव ने जनप्रतिनिधियों एवं सरकारी अधिकारियों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया तो उनके सुझावों का भी स्वागत किया गया। स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने के लिए गांव में शौचालयों का निर्माण भी किया गया सकारात्मक लोगों के सुझावों से गांव दिन-प्रतिदिन प्रगति करने लगा। महिलाओं, विकलांगों, असहाय, गरीबों सभी को रोजगार मिलने लगा। इस तरह अपने गांव की जरूरतों के अनुरूप सरकारी योजनाओं के समन्वित प्रयोग से प्राचीन समृद्ध भारत का एक शानदार मॉडल पिपलांत्री में तैयार हो गया।

श्री पालीवाल मानते हैं कि ईमानदारी की असली परिभाषा है ‘कर्मशील ईमानदारी’ अर्थात काम के प्रति ईमानदारी। प्रत्येक गांववासी ने कर्मशीलता के साथ ईमानदारी से सरकारी पैसे को लेना शुरू किया तो गांव के साथ-साथ उनका जीवन भी बदल गया।
यदि जागरुकता एक छोटे से गांव का नक्शा बदल सकती है तो देश को बदलना असंभव तो नहीं, बात तो बस एक शुरुआत की है जो पिपलांत्री गांव से हो चुकी है। पिपलांत्री आज पूरे हिंदुस्तान के सामने एक मिसाल के रूप में खड़ा है।
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