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पूरी दुनिया खरीदना चाहती थी इनकी अनूठी तकनीक को, लेकिन इन्होंने उसे कर दिया हिंदुस्तान के नाम

आपने कभी सुना है कि सड़क का निर्माण प्लास्टिक का उपयोग करके भी किया जा सकता है? आप इस तरह की बात सोच रहे होंगे कि यह केवल काल्पनिक दुनिया में ही संभव हो पाता होगा। परन्तु आप एक बात पर गौर करिए कि प्लास्टिक सड़क सच में देश में मौजूद है और इस नए तरीके के प्रयोग के पीछे जो व्यक्ति हैं वह कचरे का पुनः प्रयोग करके बेहतर, अधिक टिकाऊ और कम कीमत में सड़कों का निर्माण करते हैं। और वह व्यक्ति हैं 72 वर्षीय प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन

“प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से मशहूर प्रोफसर वासुदेवन मदुरई के पास स्थित त्यागराजार कॉलेज ऑफ़ इंजिनीरिंग में केमिस्ट्री के प्रोफेसर हैं। प्रोफेसर वासुदेवन उस शहर से ताल्लुक रखते जहाँ रोज़ाना लगभग 400 मीट्रिक टन ठोस कचरा एकत्रित किया जाता है। प्रोफेसर ने इन्हीं कचरों के ढेर में एक अवसर ढूंढ निकाला। उन्होंने बुद्धिमत्ता से आम प्लास्टिक, जिसमें ग्रोसरी बैग्स और रेपर भी शामिल है, को डामर में कोलतार के लिए उपयोग में लाने के लिए रूपांतरित किया। प्रयोगशाला में जब बेकार प्लास्टिक को डामर के साथ गरम किया गया और उसे पत्थरों के ऊपर डाला गया तब उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए।

प्रोफेसर वासुदेवन ने पहली प्लास्टिक सड़क अपने कॉलेज कैंपस में बनाई जो सफल रही। पहले बेकार प्लास्टिक को मशीन के द्वारा कतरनों में तब्दील किया जाता है और कंकर या बजरी को 165 डिग्री पर गर्म किया जाता है और फिर दोनों को एक मिक्सिंग चैम्बर में डाला जाता है। तापमान की वजह से प्लास्टिक पिघलने लगता है और फिर इसमें 160 डिग्री पर गर्म डामर को मिलाया जाता है और सड़कों पर फैलाया जाता है। डामर के मुकाबले प्लास्टिक से निर्मित सड़क ज्यादा मजबूत होती है और बारिश और गर्मी दोनों से यह ख़राब नहीं होती। सड़कें 10 सालों तक खुरदुरी नहीं होती, इनमें क्रैक भी नहीं आता और गड्ढे भी नहीं बनते और इस वजह से इनके रख-रखाव पर ज्यादा खर्च नहीं आता।

प्लास्टिक से निर्मित सड़कों से एक तो कचरा कम होता है और दूसरा पैसे की बचत होती है; क्योंकि प्लास्टिक की सड़कों के मुकाबले डामर की सड़कों में 15% तक का ज्यादा खर्च होता है। दूसरा इससे यह लाभ है कि इसके बनाने के तरीके के लिए कोई टेक्निकल ज्ञान की जरूरत नहीं होती। इस तकनीक से अब तक 11 राज्यों में 10,000 किलोमीटर से अधिक पक्की सड़क बन चुकी हैं। इनके इनोवेशन से जहाँ कम खर्च में मजबूत सड़क का निर्माण हो रहा है वहीं पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक का सदुपयोग भी हो रहा है।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कई देशी-विदेशी कंपनियों ने राजगोपालन को पेटेंट खरीदने का ऑफर दिया लेकिन पैसों का मोह छोड़ उन्होंने भारत सरकार को यह टेक्नोलॉजी मुफ्त में दी। साल 2018 के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म पुरस्कारों की सूची में उन्हें देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाज़ा गया।

इस देश में जहाँ 15,000 टन प्लास्टिक कचरा रोज निकलता है वहीं देश में बड़े आधारभूत ढांचे की कमी भी है। प्रोफेसर वासुदेवन का यह नया प्रयोग इस अंतर को भरने के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

प्रोफेसर वासुदेवन ने हमें एक बहुमूल्य तोहफ़ा दिया किन्तु अफ़सोस की बात यह है कि हम न उनका नाम जानते और न ही उनकी उपलब्धियों को। उन्होंने वैश्विक मंच पर हिंदुस्तान का सर गर्व से ऊँचा किया है, अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके काम को और लोगों तक पहुंचाए।

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