आपने कभी सुना है किसी ऐसे बिज़नेस के बारे में जिसे अपने नाम चुनने का भी हक़ न हो। नहीं ना? परंतु यह घटना घटी है भारत के एक किशोर के साथ, जो विवश होकर ऑनलाइन अजनबियों से गिड़गिड़ाते हुए एक मुफ्त डोमेन-नाम मांग रहे थे। ऐसा इसलिए, क्योंकि डोमेन-नाम खरीदने के लिए उनके पास पूंजी थी ही नहीं। आज वही नाम एक मल्टी-मिलियन डॉलर का ग्लोबल ब्रांड बन चुका है। आप यकीन नहीं करेंगें आज नासा और एमटीवी भी इसके ग्राहक हैं।
यह कहानी है हमारे आज के नायक वरुण शूर की जो बचपन से ही कंप्यूटर में दिलचस्पी लेने वाले लड़के थे। जब भी कोई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट वरुण के हाथ आता था तो उसके पुर्जे-पुर्जे अलग कर वह बड़ी ख़ुशी महसूस करते थे। जब वह छोटे थे तब उनके पिता ने उन्हें एक पुराना कंप्यूटर दे दिया था। जालंधर के साइबर कैफ़े में वरुण नए-नए ऐप देखते थे और उन्हें डाउनलोड कर लेते थे। उन्होंने अपना अधिकतर समय इस टेक्नोलॉजी को सीखने में लगाया जिससे उनके स्कूल के ग्रेड्स गिरते चले गए और उसका परिणाम यह हुआ कि वह नवमी क्लास में फेल हो गए।
संयोग से, एक दिन वरुण की एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई जिसने एक सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट विकसित की थी और उसे 2000 डॉलर में बेचा था। वरुण कहते हैं कि “जब मैंने वह प्रोडक्ट देखा तब मैंने सोचा कि इसे तो मैं आसानी से बना सकता हूँ।” तब उन्होंने उसके जैसा ही एक प्रोडक्ट तैयार किया और उसके लिए एक डोमेन-नाम खरीदना चाहते थे। उन्होंने सबसे पहले अपने पिता से उनका क्रेडिट कार्ड माँगा लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।
बिना पूँजी के उनके पास कोई मौका ही नहीं था कि वह अपना प्रोडक्ट बेच पाए। आशा की एक हल्की किरण सी उन्हें तब दिखाई दी जब वह ई-फोरम में गए और वहाँ ऑनलाइन जाकर अजनबियों से डोमेन नाम मांगते रहे। उनके इन तौर-तरीकों के चलते ई-फोरम से उन्हें बैन कर दिया गया। तब वे प्रॉक्सी सर्वर के द्वारा लोगों तक पहुंचने लगे। बहुत कोशिशों के बाद एक व्यक्ति ने उन्हें डोमेन नाम देने का फैसला किया। वह कायाको डॉट कॉम ही था जिसने वरुण को मौका दिया।
उनकी कोशिशों का फल उन्हें मिल गया और 2000 डॉलर उनके दोस्त के अकाउंट में आ गए। उन्होंने अपने दोस्त से एक लैपटॉप लेने को कहा। उन्होंने गर्व से अपने माता-पिता को बताया कि वे अब पैसे कमाने लग गए हैं और उन्होंने लैपटॉप आर्डर किया है। एक हफ्ते बीत गए पर लैपटॉप घर नहीं पहुँचा, दूसरा हफ्ता गुजर गया, तीसरा हफ्ता भी बीत गया। उनके माता-पिता ने समझ लिया कि इसने कोई पैसे नहीं कमाये हैं और यह हमसे धोखा कर रहा है। परन्तु एक महीने के बाद वरुण के घर उनका लैपटॉप और पैसे पहुँच गए। तब जाकर उनके माता-पिता दोनों ने यह माना की वह गलत सोच रहे थे।
इस तरह से एक सत्रह साल के युवा ने बिना पूंजी के, मांगे हुए डोमेन नाम के साथ जालंधर में एक आईटी कंपनी की शुरुआत की। जब वे बारहवीं क्लास में आये तब उन्होंने अपने पिता से आगे पढ़ाई न करने की इच्छा जाहिर की। यह असामान्य निर्णय था पर वरुण के पिता ने अपने बेटे के जुनून को अहमियत दी और उसकी इच्छा का सम्मान किया।

एक ऐसा लड़का जो कभी कॉलेज नहीं गया और स्कूल में भी हमेशा फेल होते रहा आज वह कायाको कंपनी के सर्वोच्च पद पर आसीन है। यह एक ऐसी कंपनी है जहाँ SAAS नामक सॉफ्टवेर सलूशन प्रोडक्ट बेचा जाता है। एक साल के भीतर ही इनकी कंपनी मल्टीनेशनल कारपोरेशन में बदल गई जिसमें लगभग 30,000 से ज्यादा ग्राहक है। नासा और एमटीवी भी इसके ग्राहकों की सूचि में शामिल है। इस कंपनी को वरुण ने अपने बेडरूम से शुरू किया था। आज वह छह देशों में फ़ैल चुका है और इसमें 150 कर्मचारी काम कर रहे हैं।
यह कंपनी सोशल मीडिया, वेबसाइट और टेली-कॉलिंग के जरिये अपने ग्राहकों से बिज़नेस के बारे में बातचीत करती है।बहुत सारे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में भी यह कंपनी अपने टूल्स के जरिये विद्यार्थियों से रूबरू होती है। यह इस कंपनी की और वरुण की बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसने अपने जुनून को अपनी मेहनत के बल पर इस मक़ाम तक पहुंचाया।
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