यूँ तो हमारे देश में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार दिए गये हैं। पर फिर भी महिलाओं को कहीं ना कहीं पुरुषों से कम आंका जाता है। आज हमारे देश की महिलाएं विपरीत परिस्थितियों में भी हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। बस ये कुछ लोगों की छोटी सोच ही है जो महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम समझते हैं। आज हम ऐसी महिला की बात कर रहे हैं जो अपने दम पर पहले अध्यापिका बनीं ,फिर केरल की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर और अब पहली महिला डीजीपी भी बन गईं हैं। अध्यापिका से डीजीपी तक का सफर तय करने वाली इस महिला की कहानी बेहद प्रेरणादायक है।
आर श्रीलेखा जिन्हें केरल की पहली महिला आईपीएस होने का गौरव प्राप्त है, स्कूल में ही एनसीसी, एनएसएस और संगीत आदि गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया करती थीं। उन्होंने महिला कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने केरल विश्वविद्यालय कैंपस के यूनिवर्सिटी ऑफ़ इंग्लिश से अपनी मास्टर्स की डिग्री भी प्राप्त की।
पिता की मृत्यु के बाद उनकी माँ, दो बहनें और एक भाई की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए श्रीलेखा को नौकरी करनी पड़ी। वे करुणागपल्ली के विद्याधिराज कॉलेज में लेक्चरर के रूप में काम करने लगीं। उसके बाद उनकी नौकरी रिज़र्व बैंक के बी ग्रेड ऑफिसर के रूप में लगी और फिर वे स्टेटिस्टिकल ऑफिसर बनकर मुम्बई भेज दी गई। लेकिन श्रीलेखा का झुकाव देश सेवा के प्रति अधिक था और वे कुछ ऐसा करना चाहती थी जिसमें वे देश के लिए कुछ कर सकें। दरअसल श्रीलेखा के पिता भी पहले सेना में थे। वे भारत-पाकिस्तान के युद्ध में भी शामिल हो चुके थे। फिर घायल होने के बाद सेना से रिटायर होकर प्रोफेसर बन गए थे। इसी लिए श्रीलेखा भी हमेशा से बर्दी पहन कर देश सेवा करना चाहती थी।
फिर उसने सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी और परीक्षा पास भी कर लिया। जनवरी 1987 को 26 साल की उम्र में वे केरल की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं। तब से अब तक श्रीलेखा केरल पुलिस की एक ईमानदार और बेदाग छवि वाली ऑफिसर के रूप में उभरकर सामनें आई हैं। उन्होंने केरल पुलिस में त्रिशूर, अलापुज़हा और पथानामथिट्ट ज़िलों में बतौर पुलिस अधिक्षक (सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस) अपनी सेवाएं दी। इसके अलावा श्रीलेखा नें सीबीआई में 4 साल अपनी सेवाएं दी, इस दौरान वे केरल में एस.पी और दिल्ली में डीआईजी भी रहीं। उसके बाद उन्हें एर्नाकुलम रेंज के उप महानिरीक्षक के रूप में पदोन्नति दी गई।
श्रीलेखा शुरू से ही एक ईमानदार और निर्भीक अधिकारी रही हैं। जब वे सीबीआई में शामिल हुईं थी तो कुछ ही समय के बाद लोग उन्हें श्रीलेखा जी जगह “रेड (Raid) श्रीलेखा” के नाम से पुकारने लगे थे। दरअसल वह बिना डरे बड़े-बड़े प्रभावशाली लोगों के घरों पर छापा मारती थी। उन्होंने कभी भी किसी बात की परवाह नहीं की बस अगर एक भी सुराग उन्हें हाथ लगता तो वह छापा मारने से नहीं चुकती थी। उनकी निर्भीकता का एक और उदाहरण है जब पिछले साल श्रीलेखा ने अपने एक साथी अधिकारी पर पिछले 29 साल से मानसिक तौर पर प्रताडि़त करने का आरोप लगाया था। श्रीलेखा ने अपने फेसबुक पोस्ट में एडीजीपी तोमिन जे थाचनकेरी पर आरोप लगाते हुए लिखा था कि 1987 में आईपीएस की ट्रेनिंग से ही वह उनको मानसिक तौर पर प्रताडि़त कर रहे हैं।
श्रीलेखा ने अपनी ईमानदारी के आगे 1 करोड़ की रिश्वत को भी लात मार दिया था। दरअसल एक बार साल 2000 में श्रीलेखा को शराब माफियाओं के अधिकारीयों के साथ मिलकर अवैध धंधा चलने की बात पता चली। कलेक्टर के साथ श्रीलेखा वहां छापा मारने पहुंची और शराब के साथ लाखों की नकदी पकड़ी। उस वक्त श्रीलेखा को शराब माफिया ने 1 करोड़ रु. की रिश्वत लेकर छोड़ने का ऑफर दिया लेकिन उसने नहीं माना। इसके अलावा श्रीलेखा लैंगिक अनुपात के अंतर को समाप्त करने के अपने प्रयासों के लिए पूरे राज्य में जानी जाती है। वह महिलाओं के उत्थान के लिए सदा प्रयासरत रहतीं हैं।
एक समर्पित पुलिस अधिकारी के साथ-साथ वह लेखक भी हैं उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 2004 में डीआईजी सतर्कता और भ्रष्टाचार के खिलाफ श्रीलेखा को राष्ट्रपति द्वारा पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था। 2013 में भी श्रीलेखा को पुलिस सेवा में विशेष उपलब्धियां अर्जित करने के लिए राष्ट्रपति की ओर से पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया। श्रीलेखा राज्य की पहली महिला आईपीएस के साथ-साथ अब पहली महिला डीजीपी भी बन गयी हैं। अब वे पूरे राज्य के पुलिस की कमान संभालेंगी।
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