मिलिए उस गुमनाम नायिका से जो पिछले 12 सालों से नेत्रहीनों के लिए लिख रही हैं परीक्षाएं

हमने अक्सर यह सुना है कि एक हुनरमंद व्यक्ति अपने जीवन में कोई न कोई बेहतर मुकाम ज़रूर हासिल करता है। लेकिन शायद ही ऐसे कुछ व्यक्ति जो अपने हुनर का इस्तेमाल दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए करते हैं। यह बात सत्य है कि जो व्यक्ति दूसरों के काम आये वो ही वास्तव में समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की नींव रखता है। और वास्तव में इस परिवर्तन की शुरुआत केवल एक सोच से होती है, वह सोच की इस दुनिया में मौजूद हर शख्स अपने लिए एक बेहतर मुकाम गढ़ने का हक़दार है, और शायद उसे यह हक़ दिलाने के लिए कभी-कभार उसे हमारी जरुरत पड़ सकती है। एक बार जब हम यह तय कर लेते हैं कि हमें हमारे जीवन को औरों के जीवन में खुशहाली फ़ैलाने के लिए समर्पित करना है तो फिर हमें इस समाज को एक नई रौशनी देने की ऊर्जा और हिम्मत भी हासिल हो जाती है। आँखों की रौशनी से वंचित तमाम ऐसे लोगों के जीवन में वही ऊर्जा और रौशनी फैला रही हैं बेंगलुरु की रहने वाली एन. एम. पुष्पा। वह नेत्रहीनों एवं दिव्यांगों के लिए पिछले 12 सालों से परीक्षाएं लिख रही हैं। आइये जानते हैं, अभी तक 657 परीक्षाएं लिख चुकी पुष्पा के जीवन के बारे में। 

दूसरों की मदद करने को मानती हैं खुद का धर्म

कहा जाता है कि दूसरों की मदद करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म होता है और इसी धर्म को पूरी लगन से निभा रही हैं बेंगलुरु की एन. एम. पुष्पा। पुष्पा पिछले 12 सालों में अब तक पूरे कर्नाटक में 657 परीक्षाएं लिख चुकी हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि वो इस कार्य के लिए किसी भी प्रकार के पैसे नहीं लेती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की वो नेत्रहीन एवं दिव्यांग व्यक्तियों के लिए दाहिना हाथ हैं। उनके इस नेक कार्य की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई थी और वो अब तक BCom, MCom, MSc, SSLC, PU आदि विषयों की परीक्षाएं दे चुकी हैं। वो कहती हैं कि शुरुआत में उनका रुझान सामाजिक कार्य के प्रति बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन एक दिन उनकी एक मित्र ने उन्हें एक अपंग बच्ची, हेमा से मिलवाया और उसकी तकलीफ उन्हें बताई। वो अपंग बच्ची खुद अपनी परीक्षा पुस्तिका पर लिख नहीं सकती थी। पुष्पा उसकी इस तकलीफ को सुनकर अंदर तक हिल गयीं और उन्होंने उस बच्ची के लिए परीक्षा लिखने का निर्णय लिया। और फिर उनके द्वारा यहीं से ये सिलसिला शुरू हो गया। पुष्पा जिन लोगों की मदद करती हैं उनमें से ज्यादातर नेत्रहीन होते हैं, हालाँकि वो सेरिब्रल पाल्सी (प्रमस्तिष्क पक्षाघात या वह अवस्था जहाँ मनुष्य की शारीरिक गतिविधियों पर मस्तिष्क का नियंत्रण खो या क्षतिग्रस्त हो जाता है) और डाउन सिंड्रोम से ग्रसित व्यक्तियों के लिए भी परीक्षाएं लिखती हैं।

पढ़ाई पूरी करने में मिली थी औरों की मदद, अब करती हैं दूसरों की मदद

उनसे यह पूछने पर की उन्हें औरों की मदद करने की प्रेरणा कहाँ से मिली, वो बताती हैं की उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हुआ करती थी। जिस वजह से उन्हें कई बार फीस न जमा होने की वजह से परीक्षा छोड़नी पड़ती थी। हालाँकि उनकी इस समस्या का समाधान कुछ भले लोगों ने निकाला और उनकी आर्थिक रूप से मदद की। वो लोग रिश्ते में तो उनके कुछ नहीं लगते थे, लेकिन इंसानियत का धर्म निभाते हुए उन्होंने पुष्पा जी को आर्थिक मदद मुहैया करवाई और उन्हें खुद के पैरों पर खड़ा करने में विशेष भूमिका निभाई। वो बताती हैं की, “मैंने बचपन से ही पढ़ाई के महत्व को समझ लिया था, इसलिए जब मैं खुद पढ़ने नहीं जा पाती थी तो बुरा लगता था। मैं सोचती थी की काश कहीं से पैसे आ जाते तो मैं पढ़ पाती“। वो आगे बताती हैं की, “जीवन में तमाम कठिनाइयों से निकलने का एकमात्र हल है की व्यक्ति शिक्षित हो जाये। और मैं हर संभव प्रयास करती हूँ की जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं उनकी मदद करूँ जिससे वो भी शिक्षित होकर न केवल खुद को बल्कि समाज को भी एक बेहतर कल प्रदान करें।“

धैर्य है मनुष्य की ताकत

पुष्पा आज जो कुछ भी हैं वो उन लोगों की वजह से हैं जिन्होंने उनका साथ उनके सबसे कठिन वक़्त में दिया था। हालाँकि जब उन्होंने नेत्रहीनों एवं दिव्यांगों के लिए परीक्षा लिखने की शुरुआत की तब वो अक्सर अपना धैर्य खो दिया करती थी। क्योंकि उन्हें अक्सर ही ऐसे परीक्षार्थी से उपयुक्त जवाब या उत्तर नहीं मिलता था। यूं तो कोई भी काम आसान नहीं होता, लेकिन पुष्पा कहती हैं कि उनके द्वारा किया जा रहा कार्य और भी ज्यादा मुश्किल इसलिए है क्योंकि इसमें धैर्य की ज्यादा जरूरत होती है लेकिन उनका यह भी मानना है की जब वही विद्यार्थी जीवन में कोई मुकाम हासिल करता है तो उन्हें काफी ख़ुशी की अनुभूति होती है। इसके अलावा वो कहती हैं की मुझे परीक्षा लिखने के दौरान अपने दिमाग को पूरी तरह से शांत रखना पड़ता है क्योंकि मुझे बच्चों को सवाल समझाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। कई बार तो 10-12 बार मुझे एक ही सवाल बच्चों को समझाना पड़ता है। हालाँकि वो यह भी समझती हैं की ऐसे लोगों को पढ़ने के लिए आम लोगों जैसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती। वो यह भी कहती हैं की इस दौरान मुझे बहुत से काबिल बच्चों से मिलने का मौका मिलता है जो मेरे लिए किसी उपहार से कम नहीं है।

उनका प्रयास है सराहनीय

शारीरिक रूप से अक्षम ऐसे लोगों को पढ़ाई में किसी अड़चन का सामना न करना पड़े, यह सोचकर उन्होंने एक संस्था से हाथ मिलाया है और आज वो तमाम नेत्रहीन एवं दिव्यांग विद्यार्थियों को शिक्षित करने हेतु काम कर रही हैं। वो और उनके कुछ साथी ऐसे लोगों की मदद करके उनके लिए पढ़ने की सामग्री को सरल बना रहे हैं। उनका यह प्रयास है कि कोई भी व्यक्ति शिक्षित होने से केवल इसलिए न रह जाये क्योंकि उसे उचित मौके नहीं मिले। वो यह समझती हैं की शिक्षा इंसान को एक चमकता सितारा बनाने में मदद करती है और इंसान अगर ठान ले तो वो चमकता सितारा बन सकता है। वास्तव में हुनर हर व्यक्ति में छुपा होता है, बस जरुरी है तो झिझक और सामाजिक अड़चनों के परदे हटाने की। वास्तव में पुष्पा का ब्रेल लीपी समझने, तेज़ी से लिखने और धैर्यपूर्वक दिव्यांगों की मदद करने का हुनर आज न जाने कितने लोगों के काम आ रहा है। हम उन्हें सलाम करते हैं और उम्मीद करते हैं की उनकी इस निस्वार्थ भाव से की जा रही सेवा से हम सभी प्रेरणा लेंगे और दूसरों के काम भी आएंगे।

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This Beggar Got An Award For Social Service And His Acts Will Leave You Speechless

He Has A Padma Shri And An Entire Forest Named After Him. The Reason Deserves A Grand Salute