“जो मंजिलों को पाने की चाहत रखते हैं, वो समंदरों पर भी पत्थरों का पुल बना देते हैं” यह एक प्रचलित कहावत है लेकिन हमारे सामज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस कहावत को हकीकत बनाने की क्षमता रखते हैं। ऐसे ही एक प्रभावशाली व्यक्ति का नाम है आर्मस्ट्रांग पेम। आर्मस्ट्रांग कोई और नहीं बल्कि 2009 बैच के आईएएस ऑफिसर हैं जिन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के अपनी कुशाग्रता से भारत के पूर्वी क्षेत्र मणिपुर के सबसे पिछड़े दो गांव तौसेम और तमेंगलांग के मध्य 100 किलोमीटर की सड़क का निर्माण कर लोगों में नई चेतना का संचार किया है।

करीब चार साल पहले मणिपुर के दो इलाके सड़क न होने के कारण कटे-कटे थे। इन दोनों दुर्गम क्षेत्रों के बीच सड़क के अभाव के चलते लोगों की जिंदगी नरक से बदत्तर थी। एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने के लिये लोग या तो घंटो पैदल चलते थे या तेज़ बहाव वाली नदी पार करते थे। मरीज़ो को अस्पताल ले जाने के लिए बांस का स्ट्रेचर बनवा कर नदी पार कराई जाती थी। आर्मस्ट्रांग इसी इलाके के रहने वाले हैं और उन्होंने इन परेशानियों को बचपन से ही देखा। कई दशकों से गाँववालों को इस समस्या से जूझते देख आर्मस्ट्रांग के भीतर कुछ करने की तमन्ना उत्पन्न हुई और फिर क्या उन्होंने आईएएस बनने का फैसला किया।
साल 2009 में उन्होंने सफलतापूर्वक यूपीएससी की परीक्षा पास की और बतौर एसडीएम अपने करियर की शुरुआत की। उनकी तैनाती तौसेम जिले में ही हुई जहाँ लोग सड़क के अभाव में दशकों से प्रभावित थे। उन्होंने तय किया कि वह इस परेशानी को जड़ से दूर करेंगे चाहे कोई मदद के लिये आगे आए या नहीं। इतना ही नहीं उन्होंने मणिपुर के 31 गांवों का दौरा किया और वहाँ के लोगों के जीवन को जानने का फैसला किया ताकि लोगों की जिंदगी में रोजमर्रा में होने वाली परेशानियों को दूर कर सके।
अपने इस इरादे को सजीव रूप देने के लिये उन्होंने मणिपुर शासन को बजट के लिये पत्र लिखा किन्तु सरकार ने इस विषय पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। सरकार के इस रवैये से आहत होकर पेम निराश तो हुए लेकिन हार नहीं मानी। उन्होंने लोगों से मदद मांगने का विचार बनाया और सोशल मीडिया के जरिए लोगों के सामने अपनी बात रखी। लोगों ने इनकी उम्मीद से बढ़कर इनको सहयोग दिया। इनके भाई ने भी इनके इस नेक काम में साथ देते हुए करीब 1 लाख रूपए का दान दिया। इसके बाद तो देश-विदेश से कई लोगों ने इनके मुहीम में आर्थिक सहायता प्रदान की। उन्होंने स्वयं 5 लाख रुपए का योगदान दिया और उनके माता-पिता ने भी अपनी एक महीने की पेंशन राशि दान दी।

सोशल मीडिया पर उनके मुहीम को लाखों लोगों ने सराहा और उन्हें कुछ ही दिनों में 40 लाख रुपए इकट्ठा हो गये। इसके अलावा स्थानीय ठेकेदारों व नागरिकों ने भी भरपूर सहयोग दिया। सभी लोगों के सहयोग से पीपल्स रोड का निर्माण हुआ।
पेम आज उन तमाम लोगों के लिये उदाहरण हैं जो हर काम सिर्फ सरकार के भरोसे छोड़ कर व्यवस्था को कोसते हैं। व्यवस्था में मौजूद खामी को भरने की जिम्मेदारी समाज के तमाम लोगों की है। यदि हम सब मिलकर अपने समाज की बेहतरी के लिए एक छोटा सा कदम भी उठायें तो बेहद कारगर साबित होगा।
आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं और इस पोस्ट को शेयर अवश्य करे