ग्यारह वर्ष की उम्र में जब उसने अपने घर से 800 किलोमीटर दूर एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला लिया तब वहां उसे व्यवस्थित होने में ही दो से ढाई साल लग गए। उसने सोचा यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा समझौता होगा परन्तु नियति कुछ और इम्तिहान लिए तैयार था। पांच साल पहले एक एक्सीडेंट में उसे अपना एक बाज़ू खोना पड़ा। पर अब की बार उसे समझौता मंज़ूर नहीं था और उसने एक नए तरीके से अपने दम पर खड़ा होने का संकल्प ले लिया। जी हाँ, 19 वर्षीया उस बहादुर लड़की का नाम है अनुष्का पाठक, जिन्होंने लोग क्या कहेंगे की परवाह किये बगैर अपने तरीके से जीवन में श्रेष्ठतम हासिल किया।

2012 में उसके स्कूल के सारे बच्चे ट्रिप पर जा रहे थे। बस ड्राइवर ने शराब पी रखी थी और बस को सीधे ही उसने सड़क के डिवाइडर पर चढ़ा दिया। कुछ ही पलों में बस दाहिने तरफ गिर गई और अनुष्का का चेहरा ग्लास की खिड़की पर पूरी तरह से टकरा गया। सभी लोग भागने लगे पर अनुष्का उठ तक नहीं पाई।
“मेरी दोस्त दिया ने मेरी बायीं बाज़ू को कसकर पकड़ लिया और पूरी ताक़त से खींचने लगी l मैं खड़ी हुई और मैंने देखा कि मेरा दूसरा बाज़ू जमीन पर पड़ा हुआ है और वहां पर खून और मांस के टुकड़े फैले पड़े थे।” — अनुष्का
अनुष्का को हॉस्पिटल पहुँचाया गया। डॉक्टर्स अस्पष्ट शब्दों में कुछ कह रहे थे कि पंद्रह मिनट से अनुष्का का बीपी और पल्स नहीं मिल रहे। अंततः उसका जीवन तो बच गया पर अपना बाजू खोकर वह हमेशा के लिए देह से अधूरी हो गयी। अनुष्का ने एक दिन बाद अपनी आँखे खोली और उसने डॉक्टर को यह कहते सुना कि ऊपर की कोहनी को अलग कर दिया गया है। उसके चेहरे पर भी काफी चोटें थी।
वे बताती हैं कि वो बहुत भाग्यशाली हैं जो आर्थिक स्थिति से मजबूत घर में पैदा हुई हैं, तभी उन्हें अच्छे से अच्छा इलाज़ मिल पाया। मुंबई के उस हॉस्पिटल में जाने के बाद हर दूसरे दिन सर्जरी होती थी क्योंकि काफी कुछ क्षतिग्रस्त हो गया था।
हर पिता की तरह अनुष्का के पिता ने भी स्कूल पर मुकदमा चलाना चाहा उनकी लापरवाही के लिए, जिसके कारण उनकी बेटी को इतना नुकसान हुआ। परन्तु अनुष्का जानती थी कि फिर वह वापस स्कूल नहीं जा पायेगी। इसीलिए उन्होंने अपने पिता को स्कूल पर मुक़दमा चलाने के लिए रोका और उससे उबरने पर अपना सारा ध्यान केंद्रित करने लगी।
बाएं हाथ से लिखाई सीखने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी। यह उसके लिए बेहद निराशा से भरा होता था परन्तु अनुष्का दृढ़ संकल्पित थी कि उसे वापस स्कूल जाना है। हॉस्पिटल से घर आने के बाद वह हर रोज़ एक पेज लिखने लगी और दस दिनों के अंदर वह बाएं हाथ से अच्छे से लिखने लगी। और अपना छोटा-मोटा काम भी खुद से करने लगी, यहाँ तक की स्कूल ड्रेस पहनना भी।
सब कुछ सीखने में पूरी गर्मियां निकल गई। अनुष्का अगस्त 2012 में वापस स्कूल गई। इस बदलाव में उनके दोस्तों ने बड़ी मदद की और उन्हें भरोसा हो गया कि वे अब सब कुछ कर लेंगी। उसने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया और आने वाले सालों में उसने अपना श्रेष्ठतम दिया। उसने बहुत सारे वाद-विवाद प्रतियोगिता जीते, उसकी कविता छपी और SATs की परीक्षा में बहुत अच्छा स्कोर किया। स्कूल के अंत में उसे प्रतिष्ठित सम्मान “स्पिरिट ऑफ़ मायो” से नवाज़ा गया।

मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर सतना से होने की वजह से हर कोई उसे पहचानता था। यह उसके लिए थोड़ा मुश्किल था। लोग उसके लिए सहानुभूति की बातें करते कि कैसे उसकी शादी होगी, कैसा दूल्हा मिलेगा। इन सब बातों से अनुष्का और उसके माता-पिता परेशान हो जाते। परन्तु जब अनुष्का एटलांटा जाकर अपने रंग-बिरंगे सपनों के साथ वापस आई तब उनकी सारी चिंतायें दूर जा चुकी थी।
“मेरे हाई स्कूल के ख़त्म होने पर मैंने अपने आप से एक वादा किया है, कि मैं उस जगह फिर से जाऊंगी जहाँ मेरा एक्सीडेंट हुआ था। परन्तु मैं वहां तब तक नहीं जाना चाहूंगी जब तक जीवन में कुछ बन नहीं जाती वापस मैं जब उस एक्सीडेंट वाली जगह पर जाउंगी तब मैं वहां खड़ी होउंगी अपने स्वाभिमान और कुछ होने के अहसास के साथ-एकदम मुक़म्मल! मैं उन मुसीबतों और बाधाओं पर हसूंगी जिन्होंने मुझे पूरी तरह से तोड़ देने की साज़िश रची थी। मैं बाधाओं को लाँघ कर आगे बढ़ती जाउंगी, बेचारगी के साथ नहीं बल्कि जुझारू हो कर।“ : आँखों में चमक लिए अनुष्का कहती हैं।
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