रक्त की कमी से होने वाली मौत को खत्म करने के लिए छेड़ी जंग, सैकड़ों लोगों को दिया जीवन दान

“रक्तदान आपके लिए कुछ मिनट का मतलब है, मगर किसी के लिए यह जीवनकाल है।” जैसे-जैसे इंसान तरक्की के रास्ते पर बढ़ रहा है वह जीवन की जटिलताओं और समस्याओं का सामाधान करने और आसान बनाने के लिए नित नए अविष्कार और खोज किए हैं। लेकिन जीवन रुपी इस शरीर को चलाने के लिए जिस रक्त की जरुरत पड़ती है उसे बनाने में अब तक किसी तरह की सफलता नहीं मिल पाई है लेकिन यह भी सच है कि एक मनुष्य के शरीर में खून की कमी को दूसरे इंसान के शरीर में मौजूद रक्त से पूर्ति की जा सकती है।

रक्त की इसी आवश्यकता की पूर्ति को समझते हुए सुवंत विक्रम राव ने साल 2014 में ‘जीवन बचाने’ के उद्देश्य से ‘एक लम्हा जिन्दगी के नाम’ (elzkn.com) की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य बीमार और दुर्घटना में घायल लोगों के लिए रक्त के आवश्यकता की पूर्ति इच्छुक रक्तदानकर्ता द्वारा की जा सके और रक्त की कमी से होने वाले मौत को कम किया जा सके। 2014 में उन्होंने कुमार वेद प्रकाश, शिवकुमार सिंह, राजेश कुमार, विनय महतो और सुबोध विक्रम राव के साथ मिलकर बिहार में अपनी संस्था को पंजीकृत किया। अब तक 700 से अधिक इमरजेंसी मरीजों के लिए रक्त दान इस संस्था के प्रयास से हुआ है। कई ब्लड डोनेशन कैम्प और जागरुकता के लिए शिविर लगाए गये हैं। 8 घण्टे में 612 लोगों द्वारा रक्तदान के लिए पंजीकृत किए जाने का गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकाॅर्ड में ‘एक लम्हा जिन्दगी के नाम’ का नाम दर्ज कराने का एक महत्वाकांक्षी प्रयास किया। नियम के मुताबिक 8 घंटे में 500 से अधिक स्वैच्छिक रक्तदाताओं के नाम दर्ज कराना था। पुराने रिकार्ड 500 को तोड़ते हुए दमनवासियों ने समय से पहले ही आँकड़ा प्राप्त कर रिकार्ड कायम कर लिया।

इस प्रयास की संरचना शुरु हुई दमन से, जहाँ सुवंत के एक मित्र को डेंगू बुखार के कारण अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। मरीज की परिस्थिति की जाँच करते हुए डाॅक्टर ने उनके ब्लड ग्रुप के 6 यूनिट रक्त की आवश्यकता बताई और उनके मित्रजनों को व्यवस्था करने को कहा। सुवंत दमन के लिए नए थे। जब वह ब्लड बैंक गये तो वहाँ उस ग्रुप का खून उपलब्ध नहीं था। उन्होंने अपने सभी मित्रों को काॅल कर यह सूचना दी। काफी मश्क्कत के बाद रक्त मिल पाया और मरीज की जान बचा ली गई। यह घटना 2009 की थी। इस घटना के बाद सुवंत ने सोचा रक्त का निर्माण तो वर्तमान चिकित्सा विज्ञान नहीं कर पाया है तो क्यों न कोई ऐसी व्यवस्था की जाए जहाँ से ऐसी स्थिति में मदद के विकल्प मौजूद हो। एक रोज वह अपने मित्रों के साथ बैठे इसी मसले पर विचार विमर्श कर रहे थे। तब यह विचार बना की सूचीबद्ध तरीके से इच्छुक रक्तदानकर्ताओं का फोन नम्बर और ईमेल आईडी के साथ एक विवरणिका तैयार किया जाए और इसी प्रसंग पर वे काम करने लगे।

पुनः 2014 में डेंगू का मामला सामने आया और इस बार सुवंत के ही दूसरे मित्र थे। परिस्थितियाँ बिल्कुल वैसी ही थी। डाॅक्टर ने खून की जरुरत बताया। उनके मित्र का ब्लड ग्रुप B (-ve) था। परंतु इस बार सुवंत के पास रक्तदानकर्ताओं की सुव्यवस्थित वर्गीकृत सारणी तैयार थी। जिससे उन्हें तुरंत मदद मिल गई। इस घटना के बाद जीवनचक्र अपनी गति से घूम रहा था और सुवंत अपने काम के साथ ही साथ मानविक रुप से ब्लड डोनर्स को अपने स्तर से सूचिबद्ध कर रहे थे। मगर दो घटनाओं ने उन्हें इस कार्य को गंभीरता और सुदृढ़ रुप से करने को प्रेरित किया। एक घटना जब वे अपने बच्चे को न बचा पाए और दूसरी जब उन्हें अपनी पत्नी के एक आॅपरेशन लिए खून की जरुरत पड़ी तो तैयार डेटाबेस से भी मदद न हो पाई और काफी जद्दोजहद के बाद खून का बन्दोबस्त हो पाया। मानविक रुप से तैयार यह सूची सिर्फ दमन क्षेत्र के लिए ही उपयोगी थी।

उन्होंने ऐसी परिस्थिति से निपटने और अधिक लोगों की रक्त की कमी से जान बचाने के लिए भारत के अन्य क्षेत्रों में भी विस्तृत करने का निर्णय लिया और उन्होंने ‘एक लम्हा जिन्दगीं के नाम’ संस्था की आधारशिला रखी और इसे डिजिटल रुप से जोड़ा। elzkn.com एक ऐसा प्लेटफार्म है जहाँ कोई भी व्यक्ति कहीं से भी अपने ब्लड ग्रुप के *वोलेनटियर* रक्तदानकर्ता तक पहुँच सकता है। दानकर्ताओं की सूची वेबसाईट पर उपल्बध है जिसमें इच्छुक दानकर्ता स्वयं पंजिकृत हो सकते हैं।

सुवंत का जन्म 1 मार्च 1977 को नालंदा, बिहार के बिछाकोल गाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता बजरंगी प्रसाद, अवकाश प्राप्त शिक्षक और माता मालती देवी, कुशल गृहणी रहीं। ग्रामीण स्कूल से पढ़ाई के बाद वे पटना आ गये। डाॅक्टर बनने का सपना संजोए सुवंत परिस्थितिवश उसे पूरा नहीं कर सके। बैंगलोर से बाॅयोटेक्नोलाॅजी की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एक प्रतिष्ठित फार्मा कंपनी में काम करने लगे। 2007 में उनका विवाह शिखा शिवानी के साथ हुआ। सुवंत अपने पत्नि और दो बच्चियों सांभवी और सुरभी के साथ दमन में रहते हैं। वे अभी भी अपने पेशागत जीवन में फार्मा कंपनी के लिए काम करते हैं। परंतु बाकी का वक्त अपने इस सामाजिक कार्य में लगाते हैं। अक्सर खून की जब माँग आती है तो बहुत ही कम समय का अंतराल रहता है वैसी विकट परिस्थियों में भी सुवंत पूरी तत्परता से उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं। भले वे प्रत्यक्ष रुप से चिकित्सक के तौर पर नहीं है परंतु एक जरुरतमंद मरीज की जिन्दगी बचाने में उनका योगदान किसी भी रुप में कम नहीं है।

केनफ़ोलिओ़ज से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा, “खून को कृत्रिम रुप से बनाया नहीं जा सकता, परंतु प्रकृतिक रुप से एक स्वस्थ इंसान एक दूसरे को दे सकता है। ऐसे में यह निश्चित किया जाना चाहिए कि उसकी कमी के कारण किसी की मौत न हो।”

अपने इस कार्य को वह पंचायत स्तर तक जोड़ना चाहते हैं। जिससे समाजिक पायदान पर अंत में खड़े व्यक्ति को भी जरुरत के वक्त आसानी से रक्त की आपूर्ति हो सके। सुवंत के इस प्रयास में आर्थिक बाधाएँ हैं। जिसके कारण पूरी क्षमता से यह संस्था काम नहीं कर पा रही है। उनके इस प्रयास में यदि सरकारी और प्रतिष्ठित संस्थाओं का सहयोग प्राप्त हो तो वह इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा रुप देना चाहते हैं जहाँ से रक्त की उपलब्धता हमेशा निश्चित रहे।

इसके साथ ही साथ ‘एक लम्हा जिन्दगी के नाम’ पर्यावरण के क्षेत्र में भी काम कर रहा है। 6 अगस्त 2017 को उन्होंने अपने गृह क्षेत्र में 21 किलोमीटर क्षेत्र में एक घण्टे में 50000 वृक्ष लगाने का रिकार्ड गिनीज बुक के रेकार्ड के लिए प्रेषित किया है। सितंबर 2017 को ‘एक लम्हा जिन्दगी के नाम’ ने जहानाबाद, बिहार के उदेरा स्थान डैम प्रोजेक्ट के पास मानवहित और सामाजिक सेवा के लिए 10,000 पेड़ लगा कर पर्यावरण के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया। सुवंत के इस प्रयास में उनका साथ अल्केम लैबरोट्रीज के चेयरपर्सन संप्रदा सिंह और सिनियर वाईज प्रेसिडेन्ट सत्येनद्र कुमार ने एक लम्हा जिन्दगी के नाम द्वारा संचालित मुहिम ग्रीन इंडिया के लिए सहयोग दिया।

आज हम सभी शिक्षित और सभ्य समाज के नागरिक हैं जहाँ हमेशा एक-दूसरे के आपसी सहयोग और कल्याण हेतू तत्पर रहते हैं। ऐसे में सुवंत विक्रम राव का रक्त दान को आसान बनाने का कार्य ऐसी प्रेरणा है जो जीवन रक्षक है। इस संबंध में जागरुकता और प्रेरणा की आवश्यता है, जिसे हमारा युवा वर्ग और शिक्षित लोगों के सहयोग से विस्तारित किया जा सकता है और कई अमूल्य जीवन को बचाया जा सकता है।

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