लाखों की नौकरी छोड़ करोड़ों भूखे लोगों की थाली में भोजन परोसने वाले मसीहा

हीरो एक ऐसा मजबूत शब्द है जिसका इस्तेमाल वैसे लोगों के लिए किया जाता है जो औरों से कुछ अलग करते हैं। हालांकि हर लोगों के लिए हीरो के मायने भी अलग-अलग होते लेकिन कायदे दे असली हीरो वही है जो दूसरों की सलामती और समाज सेवा के भाव से कुछ अनूठा काम करने की हिम्मत रखता है।

आज की मतलबी दुनिया में जहाँ लोग अपने माता-पिता तक के त्याग और बलिदान को भूल जाते हैं तो दूसरों के लिए खुद के त्याग की बात करने का कोई औचित्य ही नहीं है। लेकिन आज भी हमारे समाज में ऐसे कुछ लोग हैं जिन्होंने समाज सेवा के भाव से अपना जीवन न्योछावर कर दिया है। 34 वर्षीय नारायण कृष्णन इन्हीं लोगों में एक हैं। पिछले 15 वर्षों से उन्होंने करोड़ों बेघर, अनाथ और भूखे लोगों की थाली में भोजन परोसा है।

दरअसल नारायणन कृष्णन प्रतिष्ठित ताज होटल में बतौर शेफ अपने कैरियर की शुरुआत की थी और फिर उन्हें स्विट्जरलैंड में एक पांच सितारा होटल में काम करने का न्योता मिला। इन सबों के बीच साल 2002 में हुए एक वाकये ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल कर रख दी। यूरोप रवाना होने से पहले, वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए मदुरै गए, वहां उन्होंने देखा कि भूख से व्याकुल एक वृद्ध आदमी अपना मलमूत्र ही खा रहा था।

उस वाकये को याद करते हुए कृष्णन बताते हैं कि यह वाकई मुझे इतना दुख पहुँचाया कि मैं सचमुच कुछ समय के लिए स्तब्ध रह गया। फिर मैंने उस आदमी को खिलाया और फैसला किया कि अब मैं अपने जीवनकाल के बाकी समय जरुरतमंदों की सेवा के लिए ही दूँगा।

इसी विचार के साथ कृष्णन ने विदेश जाने के अपने फैसले को अलविदा कर ‘अक्षय’ नाम से एक सामाजिक संगठन की शुरुआत की। इस संगठन का एकमात्र उद्येश्य था कोई भी गरीब भूखा नहीं सोए।

कृष्णन रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने हाथों से खाना बनाते हैं, फ़िर अपनी टीम के साथ वैन में सवार होकर मदुरै की सड़कों पर करीब 200 किमी का चक्कर लगाते हैं तथा जहाँ कहीं भी उन्हें सड़क किनारे भूखे, नंगे, पागल, बीमार, अपंग, बेसहारा, बेघर लोग दिखते हैं वे उन्हें खाना खिलाते हैं। रोजाना उनकी टीम दिन में दो बार चक्कर लगाती है और करीब 400 लोगों को खाना खिलाती। इतना ही नहीं साथ-साथ वे भिखारियों के बाल काटना और उन्हें नहलाने का काम भी कर डालते हैं।

इस कार्य के लिए कृष्णन को रोजाना 20 हजार रुपए का खर्च उठाना पड़ता है। डोनेशन से मिलने वाला पैसा करीब 22 दिन ही चल पाता है जिसके बाद बाकि के दिनों का खर्च वे स्वयं ही उठाते हैं। वे अपने घर के किराये को भी गरीबों का पेट भरने में इस्तेमाल करते हैं। और खुद ट्रस्ट के किचन में अपने कर्मचारियों के साथ ही सोते हैं।

34 वर्षीय कृष्णन अब तक मदुरई के एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना खिला चुके हैं। वह नि:स्वार्थ भाव से जनसेवा में लगे हुए हैं। ऐसे समाज सेवकों पर देश को गर्व है।

कहानी पर आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं और इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

8000 रुपये की मामूली रकम, पर आइडिया दमदार था आज है करोड़ों का टर्नओवर

Friend’s Suicide Drove Her To Quit Fortune 500 Firm And Build This Unique Platform