लोग इन्हें पागल कहा करते थे, लेकिन आज इनके पास वो है जो बड़े-बड़े अरबपतियों के पास भी नहीं

बहुत बड़ा बिज़नेस एम्पायर खड़ा करने के बाद और करोड़ों रुपयों का अच्छा खासा बैंक बैलेंस होने के बाद भी लोग आत्मसंतुष्टि के लिए परिवर्तन चाहते हैं। अपने परिवेश को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना अपने आप में एक अवॉर्ड जीतने के अनुभव से कम नहीं होता। हर पल गर्व में डूबे दरिपल्ली रमैया ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने तेलंगाना को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है, ऐसा बदलाव शायद गवर्नमेंट और एनजीओ भी नहीं कर पाते। इस व्यक्ति ने करोड़ों पेड़ रोप कर, लोगों के लिए सदियों तक के लिए शुद्ध पर्यावरण की व्यवस्था कर दी।

दरिपल्ली रमैया तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले के एक छोटे गांव के निवासी हैं। वे विश्वास रखते हैं कि धरती के सभी जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। वह सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह विचार कर सकता है और चिंतन भी। वे कार्य के सही और गलत होने में भेद कर सकते हैं। वे कहते हैं कि प्रकृति ने मनुष्य को पेड़ पौधों के रूप में बहुमूल्य उपहार दिया है इसलिए हम सभी का यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम प्रकृति के इन उपहारों को संजो कर रखें। उनका यह प्रयास सराहनीय है और इसी प्रयास के लिए उन्हें भारत का तीसरा बड़ा सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

रमैया ने अपना पूरा जीवन भारत को हरा-भरा करने में लगा दिया। इस 70 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति ने लगभग एक करोड़ पेड़ लगाया है और अभी और भी पेड़ लगा रहे हैं। उनका प्रचलित नाम चेतला रमैया है जो चेट्टु से आता है जिसका मतलब पेड़ होता है। रमैया जहाँ कहीं भी बंजर भूमि देखते वे किसी भी बहाने पेड़ लगा देते थे। पैसे की कमी रमैया के उद्देश्य की पूर्ति में कभी भी अड़चन नहीं बनी।

“हमने अपनी तीन एकड़ जमीन बेच दी ताकि हम उस पैसे से बीज और पौधे खरीद सकें।” — रमैया

रमैया पेड़ पौधे लगाने वाले एक जुनूनी व्यक्ति भर नहीं हैं बल्कि वे पौधों के बारे में ढेरों किताबें पढ़ते और उसकी जानकारी रखते हैं। वे पौधों के विभिन्न प्रजातियों, उनके उपयोग और लाभ के बारे में विस्तृत जानकारी रखते और इसके लिए वे स्थानीय लाइब्रेरी में जाकर अध्ययन भी करते हैं।

एक समय में लोग उन्हें पागल कहते थे और उनका मज़ाक उड़ाते थे। लेकिन आज उनकी अहमियत पूरी दुनिया ने जाना है और जो लोग उन्हें पागल कहते थे आज वही लोग उनका सम्मान करते नहीं थकते। उनकी पत्नी जन्ममा याद करती हुई बताती हैं कि जब रमैया साईकिल में बीज और पौधे लेकर निकलते थे, तब आसपास के लोग उनकी हँसी उड़ाते थे।

“वे साईकिल चलाकर कई किलोमीटर तक चले जाते थे और जहाँ उन्हें खाली जगह दिखाई पड़ती वहाँ पर वे बीज या पौधे लगा देते। उन्हें यह विश्वास होता कि यह पूरा इलाका कुछ दिनों में हरा-भरा हो जायेगा।” — जन्ममा

किसी की शादी हो, या जन्मदिन, या शादी की सालगिरह, दोनों पति-पत्नी लोगों को पौधे ही उपहार में देते थे।

रमैया अपने गांव में दो कमरे के घर में रहते हैं। उनका घर एक छोटा म्यूजियम लगता है क्योंकि वहाँ बहुत सारी तख्तियां, होर्डिंग्स और बैनर होते थे जिसमें पौधे लगाने के महत्व के स्लोगन लिखे होते थे। वह कहीं भी सफर करते, अपनी गर्दन पर स्कार्फ़ की भाँति एक बोर्ड लगा लेते जिसमें लिखा होता “वृक्षो रक्षति रक्षितः”

“मेरा उद्देश्य पौधे लगा देने भर से पूरा नही होता, मेरा काम तो इनको पौधे से एक बड़ा पेड़ बनाने पर ही समाप्त होता है l” — रमैया

यही उनके जीवन का उद्देश्य है और इससे ही उन्हें संतोष मिलता है। पद्मश्री सम्मान के बाद उनको सही पहचान मिली। अकादमी ऑफ़ यूनिवर्सल ग्लोबल पीस के द्वारा उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिली। रमैया ऐसे महान व्यक्ति हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन ऐसे काम करते हुए बिताया, जिससे आने वाली पीढ़ियों का जीवन सुरक्षित हो सके। रमैया सच में एक सच्चे विजेता हैं और हमारे प्रेरणास्रोत भी।

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