कहते हैं, “नया आलम बनाने को नए अवसर नहीं आते, यहीं मिट्टी उभरती है यहीं ज़र्रे संवरते हैं“। हर रोज़ न जाने कितने ही युवा अपनी आँखो में हजारों सपने लिए मायानगरी मुम्बई का रुख करते हैं। यह सच है कि रुपहले परदे पर अपनी छाप छोड़ना अपने आप में ही संघर्ष की एक दास्तान होती है, लेकिन अगर व्यक्ति में हौसला और जुनून हो तो वह न केवल मायानगरी में बल्कि जीवन में भी अपने लिए कोई न कोई बेहतर मुकाम हासिल कर ही लेता है।
फ़िल्म ओम शांति ओम का एक डायलॉग है न, “अगर किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो पूरी क़ायनात उसे आपसे मिलाने की कोशिशों में लग जाती हैं।” वास्तव में यह शिद्दत और जुनून ही होता है जिसके दम पर तमाम युवा मायानगरी में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल होते हैं और कामयाबी के शिखर तक का सफ़र तय करते हैं। उन्हीं में से एक है बॉलीवुड में इक़बाल, डोर, ओम शांति ओम, गोलमाल अगेन, हाउसफुल सीरीज समेत कई और फिल्मों में अपनी प्रतिभा और दमदार अभिनय क्षमता के चलते अपनी एक अलग छाप छोड़ने वाले अभिनेता श्रेयस तलपड़े। वे आज बॉलीवुड का एक चर्चित नाम हैं और संघर्षों के रास्ते से निकलकर खुद को मायानगरी में स्थापित करने की चाह रखने वालों के लिए एक मिसाल भी । श्रेयस उन तमाम युवाओं के लिए भी प्रेरणा हैं जो बॉलीवुड में बिना किसी गॉडफादर के होते हुए भी अपने आप को वहां स्थापित करने का सुनहरा सपना लेकर मुम्बई में कदम रखते हैं।
श्रेयस तलपड़े को बॉलीवुड में कभी किसी गॉडफादर का साथ नहीं मिला। उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया वह अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर। केनफ़ोलिओज़ से विशेष बातचीत में श्रेयस ने अपने जीवन के अनुभवों को खुलकर साझा किया

“मेरी परवरिश एक साधारण मराठी परिवार में हुई है। आम बच्चों की तरह मुझे भी नाटक और फिल्में देखने का शौक था। जिसके चलते मैं एक बार एक नाटक देखने गया और उस नाटक ने मुझे इतना प्रभावित किया की मेरे अंदर एक अभिनेता बनने का सपना पलने लगा। उम्र के साथ मेरा सपना भी बड़ा होता गया और मैंने पहले स्कूल की नाट्य प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। फिर मैंने अपनी अभिनय क्षमता को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए थियेटर करना शुरू किया।
जब मैंने अभिनेता बनने के अपने सपने को अपने करीबी लोगों को बताया तो सबने मेरा मज़ाक उड़ाया। उन्हें लगता था कि हीरो बनना कोई काम नहीं है, इससे व्यक्ति को कोई रोज़गार नहीं मिलता। लेकिन मुझे खुद पर भरोसा था और मुझे अपने दम पर कुछ कर दिखाना था इसलिए मैंने अपने जीवन में नकारात्मकता को हमेशा से नजरअंदाज किया। और हर ठोकर के साथ अपनी मंज़िल की तरफ दोगुने जोश के साथ बढ़ता गया।
मेरे जीवन में संघर्षो और चुनौतियों का दौर बहुत लम्बा था, यह वो समय था जब मैं फिल्मों के ऑडिशन देने के लिए स्टूडियो के दिनभर चक्कर लगाया करता था और मुझे ज्यादातर निर्माताओं/निर्देशकों से ‘ना‘ सुनकर लौटना पड़ता था। कई बार तो ऐसा होता था कि किसी रोल के लिए मेरा चयन कर लिया जाता था लेकिन फिर तीन-चार दिन बाद मेरे पास कॉल आता था की फिल्म निर्माताओं को उस रोल के लिए एक जाना पहचाना चेहरा चाहिए और चूँकि आपको दर्शक नहीं पहचानते हैं इसलिए हम आपको यह फिल्म नहीं दे सकते। ऐसा सुनकर एक बार तो मेरी सारी ख़ुशी काफ़ूर हो जाया करती लेकिन दूसरे ही पल मैं इसे अपनी परीक्षा मानकर दोगुने जोश के साथ खुद को तैयार करने में लग जाता।
जब मुझे कहीं से अस्वीकार कर दिया जाता था तो मैं वहां से चुपचाप नहीं निकलता था, बल्कि उन्हें पूछा करता था कि आखिर मेरे में कमी कहाँ रह गयी है? कुछ लोग तो मुझे बिना कुछ बताये नकार देते थे लेकिन कुछ ऎसे भी लोग थे जो मुझे बताते थे कि मेरी कमी क्या रही और मुझे उसे कैसे दूर करना है।
हर बार मैं अपने आप को हिम्मत देते हुए एक और परीक्षा के लिए नए जोश के साथ आगे बढ़ता जाता था।
निर्माताओं और निर्देशकों से बार-बार ‘ना‘ सुनने के बाद जब घर लौटता था तो माँ कहती थी कि कहीं कुछ और काम कर लो, चूँकि वो एक माँ हैं और अपने बेटे को इस तरह नहीं देख सकती थी। लेकिन मेरे मन में भी तब तक यह बात पक्की हो चुकी थी कि मुझे मायानगरी में अपना मुक़ाम हासिल करना ही है और उन लोगों को जवाब भी देना है जो मेरे अभिनय पर हँसकर मुझे नकार दिया करते थे।
फिर एक दिन किस्मत ने अपना रुख बदला और आखिरकार सफलता मेरी झोली में आ गिरी और मुझे धीरे-धीरे सीरियल और फिर फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता को दिखाने का अवसर मिलने लगा। मुझे जब-जब मौके मिले, तब मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और डोर, इकबाल आदि फिल्मों के जरिए अपने सभी आलोचकों को अपनी कला के दम पर अपना प्रशंसक बना लिया।

उसके बाद मैने कई कॉमिक रोल और अलग-अलग तरह के किरदार भी निभाए और आगे भी निभाता रहूँगा। उसके बाद मैंने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। मैं कभी भी विपरीत समय को देखकर घबराता नहीं और रुकता नही बल्कि हर बार नए जोश के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करता हूँ।
मैं अपने आप पर हर परिस्थिति में विश्वास रखता हूँ और अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ करता हूँ, यही मेरी सफलता का मूलमन्त्र है। क्योंकि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है, हाँ लेकिन अगर स्मार्टनेस हो तो सफलता प्राप्ति के अवसर जल्द ही पास आने लगते हैं।
मैं सभी पाठकों से कहना चाहूँगा कि अगर आप अपने आप पर विश्वास करते हुए जीवन में मिल रही असफलताओं एवं नकारात्मकताओं पर ध्यान ना देकर मंजिल की तरफ आगे बढ़ेंगे तो आपको सफलता निश्चित रूप से हासिल होगी। मैं आप सभी को यह सलाह दूँगा कि आप हमेशा कुछ न कुछ सिखते रहें क्योंकि हर दिन एक चुनौती है और जिस दिन आप जीवन में सिखना बंद कर देते हैं , आप वहीं रुक जाते हैं। एक बात हमेशा याद रखें किसी के नाम से मिली पहचान कुछ समय के लिए रहती है लेकिन अपने काम से मिली पहचान उम्र भर के लिए होती है।“
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