विधवा माँ ने संघर्षों से जिस बेटे को पाला, आज उसकी गिनती ब्रिटेन के सबसे प्रभावशाली उद्यमी में होती है

पंजाब के कपूरथला के एक छोटे से शहर में राजिंदर का जन्म हुआ। उनका बचपन मस्ती में बीता। उनके पिता स्थानीय बिज़नेसमैन थे और माता घर पर बच्चों को संभालती थी। उनका सपना आराम-तलब और संघर्षों से मुक्त जीवन जीने का था। परन्तु जब वे 10 वर्ष के थे तब उनके परिवार में गंभीर संकट के बादल मंडराने लगे। राज के पिता बीमार पड़ गए और उनकी हालत तेजी से बिगड़ती चली गई। डॉक्टर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे और एक दिन उनकी दुःखद मृत्यु हो गई। मात्र 37 वर्ष की उम्र में उनकी माता पुष्पा वती लूम्बा विधवा हो गई। सात बच्चों की देखरेख की सारी जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई।

वह 1953 का समय था जब महिलाओं से केवल घर सँभालने की ही उम्मीद रखी जाती थी। राज के पिता ने यह पूरा बिज़नेस खड़ा किया था और उनकी मृत्यु के बाद उनका यह साम्राज्य ढहना शुरू हो गया। इन परिस्थितियों में राजिंदर पॉल लूम्बा बड़े हुए और तब उन्हें कठोर परिश्रम के पाठ पढ़ने को मिला।

बीमारी के समय राज के पिता अपनी पत्नी से कहते थे कि जीवन की लड़ाई के लिए शिक्षा ही सबसे बड़ा अस्त्र होता है। पुष्पा ने इस बात को गांठ बांध ली और अपने सम्बन्धियों की मदद से अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दिया। उस समय जब केवल कुछ ही लड़कियां पढ़ाई कर पाती थीं तब भी उनकी माता ने अपनी लड़कियों को आगे तक पढ़ाने की हिम्मत दिखाई।

अपने पिता के शब्दों को याद रखते हुए राज ने उच्च शिक्षा लेने का फैसला लिया। और 20 वर्ष की उम्र में वे यूनाइटेड स्टेट चले गए। यह एक साहसिक कदम था, क्योंकि इस लड़के के पास बाहरी दुनिया का कोई अनुभव नहीं था। परन्तु वे अपने जीवन में सफलता चाहते थे और अपने परिवार के लिए अच्छा भविष्य चाहते थे। उन्होंने सुन रखा था कि विदेश में बेहतर जीवन है और उनका यह विश्वास था कि वे एक दिन सफल होंगे।

उनकी दो साल की डिग्री ही हो पाई थी तब उनकी माँ का सारा पैसा खत्म हो गया और उन्होंने वहां एक फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया। लूम्बा का वापस जाने का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने अपनी नौकरी के लिए अपना शत-प्रतिशत दिया और इस मेहनत को उनके एक चाचा ने देखा जो यूके में रहते थे। उन्होंने राज को इंग्लैंड आने का न्योता दिया और उनके जीवन-यापन के लिए एक आइसक्रीम वैन खरीद कर दिया। यह उनके जीवन की एक नई शुरुआत थी।

उनके चाचा का कपड़ों का होलसेल बिज़नेस था और वे अपने इस भतीजे राज से काफी प्रभावित थे। आइसक्रीम बेचने के साथ-साथ वे पूरी लगन से और भी काम निपटा दिया करते थे। उनके चाचा ने स्थानीय बाजार में राज के लिए एक स्टाल की व्यवस्था कर दी। यही वह बिज़नेस था जिसकी कल्पना लूम्बा ने की थी। उन्होंने अपने सारे मानसिक और शारीरिक ताकत लगा दी और बहुत जल्द ही अपना बिज़नेस बढ़ा लिया।

उनका बिज़नेस बढ़ता ही चला गया और कुछ सालों में उनकी सड़क किनारे एक बड़ी दुकान खुल गई। उनकी माता के द्वारा किया संघर्ष और उनके द्वारा उन्हें दिया शिक्षा का अस्त्र ही उन्हें प्रेरणा देता था। उनकी ही प्रेरणा के बल पर उन्होंने महिलाओं के वस्त्रों का एक इंटरनेशनल ब्रांड लूम्बा रिंकू ग्रुप खोला। जिनकी 500 रिटेल आउटलेट फैली हुई है। चीन और भारत में इनके ऑफिस हैं जिनमें 300 कर्मचारी काम कर रहे हैं।

सफलता हासिल करने के बाद भी लूम्बा अपने बचपन का और अपनी विधवा माँ का संघर्ष नहीं भूले हैं। विधवाओं का जीवन बेहतर बनाने के इस अभियान के लिए इन्होने बड़े पैमाने पर काम किया है और करोड़ों रुपये के फण्ड इकट्ठे किये हैं और इसके इवेंट्स के लिए उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को मेहमान के रूप में बुलाया।

भारत  में उनके ट्रस्ट का उद्घाटन देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। लूम्बा के प्रयासों से यूएन ने भी विधवाओं के लिए 23 जून को इंटरनेशनल विडो डे मनाने का फैसला लिया।

सफलता के लिए लूम्बा चार चीजों को जरुरी मानते हैं पहला आपका विज़न, दूसरा आपका साधन, तीसरा आपका प्रयास और चौथा थोड़ी मात्रा में आपके भाग्य का साथ। अगर ये चार फैक्टर आपके पास हों तो आप अपना भाग्य बदल सकते हैं और सारी बाधाओं को पार कर सकते हैं। हम सलाम करते हैं उनके प्रयासों को जिनकी बदौलत वे गरीबी से बाहर आये और अपना सफल साम्राज्य स्थापित किया। वे एक लोक-हितैषी हैं और विधवाओं के लिए काम करने के बाद उनका क़द और भी बड़ा हो जाता है।

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