बेकार व पुरानी चीज़ों को दिया अनोखा शक्ल, हर साल हो रही है 10 लाख की कमाई

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे घर से निकला रोज़मर्रा का कूड़ा कचरा, जिसे हम यू ही फेंक देते है, से बेहद उपयोगी व खूबसूरत वस्तुए भी बनाई जा सकती है और तो और उन सुन्दर वस्तुओं को देश से लेकर विदेशों तक लोग बहुत ही उत्सुकता के साथ खरीद भी रहे है। जी हाँ प्रकृति से बेहद प्यार करने वाली वाराणसी की ग्रेजुएट छात्रा शिखा शाह ने यह कर दिखाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया से प्रेरित होकर शिखा ने नगर निगम के कचरे को रिसाइकिल कर काशी के हर घर को सवांरने की बेमिसाल कोशिश की है और इन वस्तुओं को फेसबुक और स्नैपडील के द्वारा बेच भी रही हैं। शिखा कहती है कि प्रधानमंत्री के स्टार्टअप इंडिया विज़न ने भारत मे रहने वाले हर तबके के लोगो की सोच बदल दी है। आज अस्सी प्रतिशत अभिभावक स्टॉर्टअप और मेक इन इंडिया को बखूबी समझने लगे हैं।

हमेशा से ही अपने माता पिता के सपनो को पूरा करने की चाह रखने वाली शिखा ने दिल्ली से एन्वॉयरमेंटल साइंस मे ग्रेजुएशन करने के बाद एक बड़ी कंपनी मे नौकरी की किन्तु नौकरी के दौरान लोगों मे पर्यावरण के प्रति संवेदनहीनता को देखते हुए उन्होंने कुछ ऐसा व्यवसाय करने की सोची जिससे की व्यापार भी हो, गरीबों को नौकरी भी मिले और साथ ही लोगों मे पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़े। इसी कोशिश मे दो साल पहले उन्होंने अपने घर से निकले कचरे को रिसाइकिल कर ऐसा खूबसूरत आकर दिया कि लोगो को विश्वास ही नहीं हुआ की कचरे से भी इतनी उपयोगी और खूबसूरत चीज़े बनाई जा सकती है।

इसी कोशिश को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने स्क्रैपशाला नामक एक कंपनी की शुरुआत कर नगर निगम के बेकार पड़े कचरे को बीस हज़ार रूपए मे खरीद कर अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाते हुए आधा दर्ज़न से अधिक बेरोज़गार हुनरमंद लोगो को रोज़गार दिया और साथ ही समाज मे स्वच्छता का अभूतपूर्व उदहारण प्रस्तुत किया।

मोदी के स्वच्छ भारत अभियान ने जैसे शिखा के हौसलों मे चार चाँद ही लगा दिए हो। अब काशी की तमाम गन्दी दीवारों को शिखा और उनकी टीम जब रंगों से सवारती है तो स्थानीय लोग भी जुड़ जाते है।

शिखा का व्यापार अब बढ़ने लगा है और वह अपनी वर्कशॉप के लिये नई जगह तलाश रही हैं। इसके साथ ही वो शहर के तमाम स्थानों पर अपना आउटलेट खोलना चाहती हैं। शिखा के साथ जुड़े लोग भी बेहद खुश व संतुष्ट हैं, कारीगर प्रदीप और मुरारी कहते हैं कि कमाते तो पहले भी थे लकिन उस कमाई से दोनों समय का खाना भी नहीं हो पाता था किन्तु आज वे इस कचरे को संवार कर अपना और अपने परिवार का जीवन बहुत अच्छे से संवार रहे हैं। जो पहले कुर्सी और चारपाई बीनने का काम करती थी वे अब पुराने टायर को बीन कर उसे कुर्सी की तरह बनाकर अच्छा पैसे कमाने लगी हैं। वह और उनका परिवार इस काम से बेहद खुश है।

शिखा की माँ अपनी बेटी की सफलता से बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि जो काम उनकी बेटी ने उनके सपनो को पूरा करने के लिया किया है, उसे शायद एक बेटा भी पूरा नहीं कर सकता था।

आज शिखा के पीछे कारवां सा बनता जा रहा है। उनकी सालाना आमदनी 10 लाख के पार है। उन्होंने अपनी प्रतिभा, लगन और मेहनत से यह साबित कर दिया है कि अगर मन में कुछ करने की चाह हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है चाहे परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों ना हो।

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