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शानदार पैकेज की नौकरी छोड़ यह इंजीनियर गौ पालन से लिख रहा है कामयाबी की कहानी

एक नस्ल के रूप में  यदि मानव जाति को और आगे विकसित होना है तो उसे अपनी आरामदायक जिंदगी को पीछे छोड़ते हुए बुद्धिमत्ता के साथ और आगे बढ़ना होगा। हमें असफलताओं के डर को दरकिनार करते हुए नई अनजानी और चुनौतियों भरी जिम्मेदारियों को लेने के लिए तैयार होना चाहिए। यदि हम असफल हो भी जाते हैं; तो वास्तव में हम इस अनुभव से संपन्न हो जाते हैं कि कौन सी चीज सफलता की ओर ले जाती है और कौन सी उससे दूर।

आज की हमारी कहानी 43 वर्षीय शंकर कोटियन की है, जिन्हें शुरूआत में कई बार असफलताओं का स्वाद चखना पड़ा। परन्तु धीरे-धीरे उन्होंने अपना खुद का एक रास्ता बनाया और उसमें आगे बढ़कर एक नया मुक़ाम हासिल किया। जो लोग अलग सोचने और उसे निभाने की हिम्मत रखते हैं, वही कुछ बड़ा करते हैं। शंकर कोटियन ने रतन टाटा के उस कथन को प्रमाणित किया है जिसमें वे कहते हैं, “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं करता बल्कि निर्णय लेकर उसे सही बनाने का प्रयास करता हूँ।”

शंकर का जन्म कर्नाटक के मूडबिद्री में हुआ था। उन्होंने अपना ग्रेजुएशन 1996 में सूरतकल के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से कम्प्यूटर साइंस में पूरा किया। वे एक अच्छे विद्यार्थी और एक प्रोग्रामर थे। उन्हें जल्द ही इंफ़ोसिस में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी मिल गई। इंफ़ोसिस में अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें बहुत से देशों में घूमने का मौका मिला। सप्ताह के अंत में वे अक्सर आस-पास के खेतों में घूमने चले जाया करते थे और खेती के नए-नए तरीकों और पशु-पालन की बारीकियां देखते थे।   

धीरे-धीरे शंकर को अपनी पेशवर जिंदगी से ऊब होने लगी। वे वहां 10 लोगों की टीम का नेतृत्व करते थे और अच्छी खासी तनख्वाह भी उन्हें मिलती थी। उन्हें अपने काम में मज़ा नहीं आ रहा था। इसलिए उन्होंने 2012 में इंफ़ोसिस की नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और साथ ही डेयरी फार्मिंग के बिज़नेस में हाथ आज़माने का तय किया।

2011 में उन्होंने मूड़ु-कॉनजे गांव के पास आठ एकड़ की जमीन खरीदी थी। वहां उन्होंने ऑफिस के लिए एक घर बनाया। जब घर बन गया तब उन्होंने पास के किसानों से आर्गेनिक खाद ख़रीदा और अपनी जमीन पर घास लगाई। उसके बाद उन्होंने अपनी पहली पांच गायें खरीदी और लगभग तीन साल उन्होंने खेती और पशु-पालन सीखने में लगाए क्योंकि उन्हें पहले से खेती के बारे में कुछ भी नहीं पता था। उनका पहला साल बड़ा ही मुश्किलों भरा था। क्योंकि यह समय उन्होंने डेयरी का निर्माण, पशु-पालन, और खेती के नए-नए तरीके सीखने में लगाए।

उनका यह फार्म ढलान पर था। शंकर ने तय किया कि वे इसका भरपूर उपयोग करेंगे। उन्होंने अपनी डेयरी ढलान के सबसे ऊपरी भाग पर विकसित किया। जिसकी मदद से गोबर की स्लरी और पशुओं का गन्दा पानी डेयरी से एकत्रित कर निचले खेती के हिस्से में पहुँचाना ग्रेविटेशनल फ़ोर्स की वजह से आसान हो गया।

गायों की जरूरत के हिसाब से ढलान के निचले हिस्से में उन्होंने नेपियर घास लगाई। ढलान के अंत में उन्होंने वाटर हार्वेस्टिंग के उद्देश्य से एक तालाब खुदवाया। अपने ईंधन की लागत कम करने के उद्देश्य से और गोबर के सही इस्तेमाल के लिए बायो गैस प्लांट लगवाया। इसे डेयरी के पास लगवाया ताकि अपने परिवार और नौकरों की ईंधन की जरूरत इससे पूरी हो सके। बायोगैस प्लांट में उपयोग के बाद जो गोबर का घोल बचता था उसे वे सुपारी की खेती करने वाले किसानों को बेच देते थे। अब तक वे लगभग तीन लाख लीटर स्लरी बेच चुके हैं। इस विधि के सफल होने के पीछे का कारण यह है कि इसमें खरीददारों को मजदूरी पर कम खर्च लगता है और स्लरी में खाद से ज्यादा पोषक तत्व होते हैं जिसकी वजह से खेती अच्छी होती है।

आज शंकर की डेयरी में खुद की 40 गायें हैं और वे 180 लीटर दूध रोज़ कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोडूसर्स फेडरेशन लिमिटेड ‘नंदनी’ में सप्लाई करते हैं। इसके अलावा उन्होंने  1800 रबर के पेड़ और 1000 सुपारी के पेड़ भी लगाए हैं। उन्होंने इन पेड़ों को खेतों के किनारे-किनारे और खेतों के बीच में लगाए हैं ताकि अधिक हरियाली हो और खेतों में नमीं भी रहे। आज उनके पास 25 एकड़ जमीन है।

शंकर कहते हैं, “चुनौतियाँ तो बहुत है परन्तु हमेशा आपको कुछ नया सीखने को मिलता है और यह सीखने की प्रक्रिया भी मजेदार होती है। टर्न-ओवर के साथ-साथ स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और आप अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बेहतर दुनिया छोड़ कर सकते हैं, है कि नहीं?”

शंकर इंफ़ोसिस की अपनी आलीशान और सुरक्षित नौकरी के साथ खुश रह सकते थे। परन्तु उन्होंने अपनी सीमाओं को चुनौती देने का निश्चय किया और डेयरी फार्मिंग की तरफ रुख किया। इस बिज़नेस के बारे में उनको क्या, उनके पूरे परिवार में भी किसी को भी कुछ भी नहीं पता था।

शंकर ने सभी को यह दिखा दिया है कि अगर आपने मन में ठान लिया है तो कुछ भी कर पाना असम्भव नहीं होता। हाँ, हो सकता है उसे सीखने और लागू करने में कुछ वक्त लगे, परन्तु यह समय, लगन और प्रयास से अवश्य सम्भव हो जायेगा।

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