कौन जानता था कि जिस व्यक्ति को कभी अंग्रेजी में बात नहीं करने के लिए उपहास का पात्र होना पड़ा था, वह आने वाले वक़्त में कई करोड़ रुपये के विशाल कारोबारी साम्राज्य की स्थापना करने में सफल होंगे जिनके ग्राहक सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी हैं। बिहार के विकास की कहानी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने सामान्य तरीके से जीवन-यापन के लिए सरकारी नौकरी तो हासिल की लेकिन कभी भी अपनी उद्यमशीलता की महत्वाकांक्षाओं को मरने नहीं दिया।
बिहार के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाले, विकास ने साल 2001 में डीएवी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से बी.कॉम किया। मल्टीमीडिया में स्नातकोत्तर डिप्लोमा की बदौलत उन्हें दिल्ली सरकार में एक स्थिर नौकरी मिली। विकास के मेहनती दृष्टिकोण ने उन्हें आगे बढ़ने में काफी सहायता प्रदान की और वह टीम लीडर बन गए। वह दिल्ली सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘कैल्टुन्ज़’ के टीम प्रमुख भी बनें।
उनकी कठिन मेहनत का ही नतीज़ा था, जो उनकी टीम को आईटी मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा सिल्वर आइकन पुरस्कार से नवाज़ा गया और उन्हें प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। एक युवा व्यक्ति के रूप में सब कुछ हासिल करने के बावजूद, विकास पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। वह धीरे-धीरे अपने सबसे बड़े सपने के पूरा होने के करीब पहुंच रहे थे- वह थी उनकी खुद की एक कंपनी। साल 2008 में उन्होंने अपनी स्थिर नौकरी को अलविदा कहने का साहस दिखाया।
विकास ने अपनी खुद की एक कंपनी स्थापित करने का फैसला किया, जबकि प्रारंभिक शोध अभी भी चल रहा था। आखिरकार, 2009 में, उन्होंने अपनी तैयारी पूरी कर ली और कुछ अन्य लोगों के साथ साझेदारी में अपनी मल्टीमीडिया स्टार्टअप “डिजिटुन्ज़” को लॉन्च किया।
किसी भी अन्य स्टार्टअप की तरह, एक उत्साही शुरुआत ने ऑपरेशंस के पहले वर्ष में डिजिटुन्ज़ के लिए थोड़े-बहुत रेवेन्यू लाया। व्यवसाय के स्केलिंग में संसाधन तेजी से ख़त्म हो रहे थे क्योंकि वे नए ग्राहकों के लिए खुद को तैयार कर रहे थे। डिजिटुन्ज़ बिना लाभ के फल-फूल रहा था क्योंकि स्केलिंग प्राथमिकता थी। इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, विकास को एक बड़ा झटका लगा। उनके तीन साथी दबाव को बरकरार नहीं रख सके और भविष्य की संभावनाओं में उम्मीद खो बैठे। उन्होंने डिजिटुन्ज़ में अपने निवेश की 22 लाख रुपये की पूरी वापसी की मांग की। विकास को कंपनी छोड़ने या पैसे जुटाने (मुश्किल विकल्प) के बीच चयन करना था। मई 2010 में, विकास ने अपने पास मौजूद सभी चीजों को जोखिम में डालने का फैसला किया और अपने सहयोगियों को अगस्त 2010 तक तीन महीनों में पूर्ण वापसी का आश्वासन दिया।
भाग्य वीरों को ही सहारा देता है
विकास ने पहले से ही अपने सहयोगियों को पूर्ण वापसी का वादा करके एक वित्तीय संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे। पूर्ण वापसी के आश्वासन के बावजूद, उनके सहयोगियों का दबाव जारी रहा। विकास ने हर जगह लागत-कटौती शुरू कर दी। यहाँ तक कि वह अपनी कार की बजाय मेट्रो से ही ऑफिस जाने लगे। उन्होंने बुनियादी ढांचे पर भी खर्च कम किया और राजस्व पर ध्यान केंद्रित किया। तीन महीने का संघर्ष समाप्त हो गया जब विकास ने अपने सहयोगियों को वादा की गई समय सीमा से पहले सभी पैसे वापस कर दिए। हालाँकि, इस घटना ने उन्हें एक बेहतर उद्यमी के रूप में और मजबूत बनाया। उन्होंने यह भी तय किया था कि वह अपने जीवन में ऐसी किसी भी स्थिति को फिर से नहीं आने देंगे।
हम सफलता से थोड़ा सीखते हैं, लेकिन असफलता से बहुत कुछ
2010 में उस कड़वे सबक के बाद, विकास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2013 तक, उनके पास पहले से ही कुछ उल्लेखनीय ग्राहक थे और 50 प्रतिभाशाली कर्मचारियों की एक टीम थी। असाधारण ऊर्जा और पर्याप्त अनुभव के साथ, विकास बड़े व्यवसाय के बीज बो रहे थे। सफलता के बुलंद इरादे की बदौलत वे निरंतर आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने अपने संगठन को सुचारु रूप से चलाने के लिए नीतियां बनाईं। वैश्विक ग्राहकों को आकर्षित करने से लेकर महंगे सॉफ्टवेयर का उपयोग करने तक, उन्होंने सब कुछ किया।
आज डिजिटुन्ज़ 400 लोगों की टीम के साथ भारत की अग्रणी 2डी एनीमेशन कंपनियों में से एक है। नॉर्थ ईस्ट इंडिया के प्रतिभाओं को मौका देने के लिए, उन्होंने कोलकाता में भी एक इकाई स्थापित की है जिसमें उनके 120 कर्मचारी कार्यरत हैं। साथ ही, डिजिटुन्ज़ बीबीसी, निकलोडियन और डिजिटल डोमेन जैसे ग्लोबल लीडर्स को सेवाएं दे रहा है। उनके कार्यों को रिक और मोर्टी, निंजा टर्टल और डॉक्टर हू जैसे कार्यक्रमों में देखा जा सकता है। वर्तमान में कंपनी का वैल्यूएशन 325 करोड़ के करीब है।
विकास की कहानी से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है, पहली बात यह कि आपका भविष्य आपके ही हाथों में है और जिंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए आपको जोख़िम तो उठाने ही होंगे। यदि कभी न हार मानने वाले जज़्बे के साथ आगे बढ़ा जाए तो सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
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