साइकिल से गस्त लगाने वाले इस IPS से थर-थर काँपते हैं अपराधी, उनकी बेदाग और दबंग छवि है प्रेरणादायक

आज जब पुलिस की बात होती है तो ज्यादातर लोगों के सामने नकारात्मक छवि उभरती है। पुलिस जनता के सेवक हैं पर आज आम जनता ही पुलिस के पास जाने से कतराती है। और इसका कारण है हमारे पुलिसिया तंत्र में फैली भ्रष्टाचार की बीमारी और उनकी ढुलमुल कार्यशैली। लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून और राज्य व्यवस्था के सफल संचालन में पुलिस प्रशासन की एक अहम भूमिका होती है। मगर यह सफलता तभी संभव है जब पुलिस महकमे का सभी व्यक्ति अपने कर्तव्यों तथा अधिकारों को भली-भांति समझकर उनका उचित ढंग से निर्वहन करे। अगर हर पुलिस वाला अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभा जाये तो शायद ही कोई अपराधी कानून के हाथों से बच सकता है। आज हम एक ऐसे ही आईपीएस ऑफिसर की बात करने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी बेदाग और दबंग छवि से एक अलग ही पहचान बनाई है।

इनका नाम है आईपीएस डीसी सागर। डीसी सागर 1992 बैच के आईपीएस ऑफिसर हैं। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जन्में सागर के पिता लखनऊ आर्मी में कार्यरत थे। चूँकि उनके पिता आर्मी में थे और तबादले के कारण उन्हें अलग-अलग राज्यों में जाना पड़ता था। सागर की भी स्कूली शिक्षा अलग-अलग राज्यों में हुई।

उनकी स्कूलिंग तमिलनाडू, दिल्ली और जम्मू के स्कूलों में हुई। आगे की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली के हंसराज कॉलेज से की। वहां उन्होंने इतिहास में ऑनर्स किया और उसके बाद लॉ की पढ़ाई की। उनके पिता फ़ौज में थे, इसलिए उनकी भी चाहत थी कि वे भी किसी तरह देश की सेवा करें। उसके बाद उन्होंने सिविल सर्विसेज के लिए तैयारी की और सफल भी रहे।

अपनी ट्रेनिंग के बाद सागर आईपीएस बन गए और उसके बाद उनकी पहली पोस्टिंग नीमच में बतौर सब डिविज़नल ऑफिसर हुई। उसके बाद सागर मध्य प्रदेश के नक्सली इलाके बालाघाट रेंज के पुलिस महानिरीक्षक पद पर तैनात रहे, जहाँ उनके कामों की खूब चर्चा हुई। अभी वे एडिशनल डायरेक्टर जनरल (टेक्निकल सर्विसेस) पुलिस मुख्यालय के रूप में पदस्थ हैं। क्रिमिनल्स हों या नक्सली इनके नाम भर से कांप उठते हैं। डीसी सागर जब बालाघाट में पदस्त थे तो उनकी छवि फिल्मी दबंग पुलिस वाले जैसी थी। बस अंतर इतना था कि वो नकली था और यह असली। आईजी होने के बावजूद वे ऑफिस में बैठने के बजाय ज्यादातर वक्त फ़ील्ड पर दिखाई देते रहे हैं।

बालाघाट जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में जहाँ पुलिस को आधुनिक हथियारों के साथ-साथ वाहनों की भी जरूरत होती है। हर कदम पर जहां नक्सली हमले का ख़तरा बना रहता है, वहां भी सागर जान खतरे में डालकर साइकिल से गश्त करनें पहुँच जाते थे। कभी वे बंदूक लिये जंगलों में चले जाते थे तो कभी खुद ही चेक पोस्ट पर चेकिंग करने लग जाते थे। उनके इसी अलग निडर और बेबाक अंदाज़ का हर कोई दीवाना था। सागर का मानना था कि साइकिल से गश्त करने से पुलिस वाले इलाके में ज्यादा समय बिता सकते हैं, पतली गलियों में भी आसानी से गश्त कर सकते हैं। इसके साथ ही साइकिल के कारण क्रिमिनल्स पुलिस के आने का अंदेशा नहीं होता क्योंकि पुलिस के गाड़ी की आवाज़ सुनकर भागने का मौका नहीं मिल जाता है।

सागर अपने फिटनेस पर बहुत ध्यान देते हैं। डीसी सागर पुलिस विभाग के सबसे फिट ऑफिसरों में से एक हैं। वे अपने डेली रूटीन में जॉगिंग, रनिंग और एक्सरसाइज करते हैं। साथ ही साथ एक सही डाइट भी फॉलो करते हैं, वे कभी जंक फ़ूड नहीं खाते। अपने पुलिस वालों को साइकिल का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करने के पीछे फिटनेस भी उनका एक मुख्य मकसद था। उनका मानना है कि पुलिस में भर्ती होने के बाद लोग अपनी फिटनेस पर ध्यान नहीं देते और मोटे हो जाते थे। रोज़ाना साइकिल का इस्तेमाल हमें फिटनेस भी बनाती है। इसलिए वे अभी भी ज्यादा से ज्यादा साइकिल का यूज करते हैं। यहाँ तक की कभी कभी साइकिल से ही अपने पुलिस हेडक्वाटर भी जाते हैं। सच में डीसी सागर बाकी पुलिस ऑफिसर के लिए एक मिसाल हैं।

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