त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान। किसान जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते। गौरतलब है कि हमारे देश की लगभग सत्तर फीसदी आबादी आज भी गांवों में निवास करती है, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। लेकिन सरकार आज भी इस बड़ी आबादी के सहयोग और विकास के लिए कोई मजबुत और पुख्ता कदम उठा पाने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में समाज के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपने स्तर से किसानों को हर संभव सहयोग मुहैया कराये।
और इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाने के लिए नई पीढ़ी के युवा भी बढ़-चढ़ कर आगे आ रहे हैं। ऐसे ही एक युवा हैं प्रतीक बजाज। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक प्रॉपर्टी डीलर के घर पैदा हुए प्रतीक 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद सीए करने का निश्चय लिया। प्रतीक के बड़े भाई डेयरी बिज़नेस शुरू करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ले रहे थे। एक दिन अनायास ही प्रतीक जब विज्ञान केंद्र पहुँचे तो उन्होंने वहां वर्मीकम्पोस्ट बनते हुए देखा। उन्हें इसे लेकर दिलचस्पी हुई और फिर उन्होंने इसे बनाने के गुर सीख लिए। हालांकि इस दौरान उनकी सीए की पढ़ाई जारी ही थी।

सीए की पढ़ाई के अंतिम वर्ष के दौरान जब प्रतीक छुट्टी में घर आए तो उन्होंने देखा कि भाई के डेयरी फार्म से जो गाय और भैंस का गोबर निकलता था वो बेकार चला जाता था, उसका सामान्य तरीके से ही खेतों में इस्तेमाल होता था। उन्हें लगा कि इसको वर्मीकम्पोस्ट में तब्दील कर खाद का अच्छा इस्तेमाल करने के साथ ही पैसे भी बनाये जा सकते हैं। इसी आइडिया के साथ उन्होंने खुद की आमदनी के साथ-साथ किसानों का भी फायदा करने के उद्येश्य से बिज़नेस जगत में कदम रखने का निश्चय किया।
कारोबार शुरू करने से पहले उन्होंने छह महीने तक वर्मीकम्पोस्ट बनाने के भिन्न-भिन्न वैज्ञानिक तरीकों पर गहरी रिसर्च की और फिर सहयोगी बायोटेक नाम से एक कृषि स्टार्टअप की आधारशिला रखी। प्रतीक बताते हैं कि जब मैंने घरवालों को अपने बिज़नेस आइडिया के बारे में बताया तो उन्हें यकीन ही नहीं था कि मैं सफलतापूर्वक बिज़नेस कर सकता हूँ। लेकिन जब मेरी पहली वर्मीकंपोस्ट बिकी, तब उन्हें यकीन हो गया।
शुरूआती सफलता के बाद उन्हें परिवार वालों का भी पूरा साथ मिला और फिर उन्होंने अपने सात बीघे के पैत्रिक जमीन में वर्मी कंपोस्ट तैयार करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने इसके जरिए जैविक खेती भी शुरू कर दी। कचरा प्रबंधन के साथ-साथ उसे खाद में कैसे तब्दील किया जाए, इस पर भी काम शुरू किये। प्रतीक जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को मुफ्त में वर्मीकंपोस्ट बनाने की ट्रेनिंग भी देते हैं। उनके इस प्रयास से पहले जहां किसान हर एकड़ में रासायनिक खाद और कीटनाशक पर 4500 रुपये खर्च करते थे वहीं अब उन्हें सिर्फ 1,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इतना ही नहीं इससे खेत की जमीन के साथ ही फसल को भी कोई नुकसान नहीं होता है।

आज प्रतीक सहयोगी बायोटेक के बैनर तले “ये लो खाद” नामक ब्रांड को नोएडा, गाजियाबाद, शाहजहांपुर, बरेली समेत यूपी के तमाम जिलों में उपलब्ध कराने को लेकर प्रयासरत हैं। आपकी जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि उनका मौजूदा कारोबार सालाना 12 लाख रुपये का टर्नओवर कर रहा है।
प्रतीक की सफलता पर गौर करें तो हमें जुनून के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। यदि हम अपनी जिंदगी में जुनून के साथ आगे बढ़ें तो हमें सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
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