अपने आस-पास के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देने से अधिक प्रसन्न करने वाला काम और क्या हो सकता। आप एक ऐसी स्थिति में फंसने की कल्पना करें, जहाँ समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव हो और किसी चिकित्सक से मिलने के आश्वासन के बिना भी आपको मीलों चलकर जाना पड़े। दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह सिर्फ एक कल्पना मात्र नहीं बल्कि हमारे देश के ग्रामीण भागों में अधिकांश भारतीयों की यही दशा है।
हमारी आज की कहानी एक ऐसे युवा उद्यमी के इर्दगिर्द घूम रही है, जिन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में कुछ क्रांतिकारी कार्य करने का बीड़ा उठाया।
जब विश्वजीत पॉल अपनी मां के निधन के बाद सिल्चर वापस लौटे, तो उन्हें अपने जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति ने विचलित कर दिया। मूलभूत सुविधाओं की कमी, डॉक्टरों की अनुपलब्धता, और बुनियादी ढांचे में एक बड़े खालीपन को भाँपते हुए उन्होंने कुछ करने का निश्चय किया। उन्होंने पाया कि इंटरनेट और प्रौद्योगिकी का सही इस्तेमाल कर इस खाई को जल्दी भरा जा सकता है।

फिर क्या, उन्होंने क्विकओबुक ब्रांड के बैनर तले एक ऐसे एप्लिकेशन को डिज़ाइन किया जहाँ आपको चिकित्सा स्वास्थ्य से संबंधित तमाम जानकरियां सिर्फ एक क्लिक में उपलब्ध हैं। इस ऐप के ज़रिए न केवल आप अपॉइंटमेंट बुक कर सकते हैं, बल्कि आप डॉक्टरों की समीक्षाओं की जांच भी कर सकते हैं और घर बैठे ही दवाओं का ऑर्डर भी कर सकते हैं। एप्लिकेशन आपको आपके अपॉइंटमेंट ट्रैक करने की सुविधाएं भी प्रदान करता है ताकि हॉस्पिटल पहुँच कर आपको कतारों में इंतजार करने में समय व्यर्थ न करना पड़े।
क्विकओबुक के ज़रिये लोग अपने आस-पास के दवाई विक्रेता से जुड़ने के अलावा, उपचार परीक्षणों के परिणाम तथा डॉक्टरों से सलाह व उपचार भी घर बैठे ही प्राप्त कर सकते हैं। सबसे ख़ास बात यह है कि क्विकओबुक को बिना स्मार्टफोन के भी लोग चला सकते हैं। कंपनी अलग-अलग इलाकों में बड़े दवाई विक्रेता या जनरल स्टोर के साथ फ्रैंचाइज़ मॉडल के तहत जुड़ती है, और ये स्टोर कम राशि में दवाईयां उपलब्ध कराते हैं। यह तरीका ऐप को अधिक सुलभ बनाता है और उन लोगों के जीवन को भी बचाता है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
विश्वजीत के लिए यह यात्रा उतनी सुगम नहीं रही, जितनी यह प्रतीत होती है। साल 2016 में जब उन्होंने शुरुआत की तो शुरु के आठ महीने तक ऐप से एक भी अपॉइंटमेंट नहीं मिल सके। फिर भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया और अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहे। उनकी मेहनत कामयाब रही, और पिछले तीन महीनों में क्विकओबुक ने कामयाबी के कई अध्याय जोड़े। कंपनी ने शुरुआत के पहले वर्ष में 1000 से भी अधिक सफल अपॉइंटमेंट बुक किए और तब से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है।
केनफ़ोलिओज़ के साथ बातचीत में विश्वजीत ने बताया कि मैं अपनी सफलता का श्रेय सह-संस्थापक ज्वेल सेन और अपनी टीम के बाकी सदस्यों को देता हूँ।
इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत क्विकओबुक एक पंजीकृत स्टार्ट-अप कंपनी है, जिसमें 1,200 से अधिक डॉक्टर शामिल हैं, जो बराक घाटी और आसपास के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय है और अब तक 3.2 लाख से अधिक लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा चुका है। यह आईआईएम-कलकत्ता, आईआईटी-गुवाहाटी, असम स्टार्ट अप नेस्ट, नैसकॉम, कलिंगा यूनिवर्सिटी, बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स और एनआईटी सिलचर में इनक्यूबेट है।

कंपनी की दूरदर्शिता और प्रभाव को देखते हुए असम सरकार ने स्टार्टअप योजना के तहत 50 लाख रुपए की निवेश राशि भी प्रदान की है। वर्तमान में तीन राज्यों और पंद्रह जिलों तक अपनी सेवाओं को फैला चुके विश्वजीत अब इसे पूरे उत्तर पूर्व भारत में विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। हाल ही में उन्हें 1 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश मिला है। कंपनी राजस्व साझाकरण के आधार पर नए शहरों के लिए मॉडल बनाने में भी काम कर रही है।
हमने हमेशा सुना है कि ‘दुख स्वार्थी होता है,’ लेकिन विश्वजीत की कहानी ने इस कहावत को गलत साबित कर दिखाया है। जिन परिस्थितियों में वह सिलचर वापस लौटे थे, उन्हें कोई नहीं जानता था, लेकिन उनके प्रभावशाली कार्य ने उन्हें आज एक आदर्श पुरुष बना दिया है। उनकी कहानी वाकई में युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल है। समाज में मौजूदा खामियों को दरकिनार करने की बजाय उसे खत्म करने की पहल कर एक बेहतर कल का निर्माण करना हम सबकी जिम्मेदारी है।
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