IIM टॉपर ने शुरू किया अनूठा बिज़नेस, 5 लाख रिक्शा चालकों की बदली जिंदगी, हो रहा करोड़ों का बिज़नेस

एक तरफ जहाँ देश में आधुनिकता और तकनीकी विकास बहुत तेजी से फल फूल रहा है, वहीं दूसरी ओर शारीरिक श्रम आज की नई पीढ़ियों द्वारा भी स्‍वीकार्य है। परंतु कुछ दूरदर्शी लोगों ने शारीरिक श्रम के कार्यों और आधुनिक तकनीक में तालमेल बिठाने का बीड़ा उठाया है। ऐसी ही एक कहानी है ‘सम्मान फाउण्डेशन’ के संस्थापक इरफान आलम की।

इरफान, जो भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के छात्र रहे हैं, शुरूआत से ही गरीबों के प्रति संवेदनशीलता उनका स्वभाव रहा। इसी गुण ने उन्‍हें प्रेरित किया कि वह उनकी रोजी रोटी के लिए कोई ऐसा व्‍यवसाय ढूढें जिसमें उन्‍हें निरंतर आमदनी हो। भारत में शहरी क्षेत्रों की नियमित यात्रा में 30 प्रतिशत योगदान रिक्‍शा का है इसलिए उन्होंने रिक्शा चालकों के रोजगार के लिए एक संगठन बनाने की योजना बनाई।

इरफान, जिन्होंने विदेश व्यापार में परास्नातक और अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री ले रखी है, “कभी नहीं, कभी नहीं कहो” (Never say never) में विश्वास रखते हैं। वे काफी तीक्ष्‍णता से देख पाते हैं कि इस व्यवसाय में विकास की कितनी संभावनाएँ हैं और किस प्रकार से वे खुद इन रिक्शा चालकों के लिए घातांकी रुप से रोजगार के लिए सहायक हो सकते हैं। उन्होंने अपने इस उपक्रम को अपने गृहक्षेत्र बिहार से शुरु करने का निश्चय किया।

बिहार की औद्योगिक राजधानी बेगूसराय में जन्मे इरफान ने इस व्यवसाय की शुरुआत राजधानी पटना से 2007 में 300 रिक्शा चालकों की श्रृंखला से, बिल्कुल आरंभिक स्तर से की। रिक्शा चालकों की सहायता के लिए रिक्शे को संगीत, पत्रिका, अखबार, प्राथमिक चिकित्सा सामान, अल्पाहार और विज्ञापनों से सुसज्जित किया गया। इससे आने-जाने वालों के लिए रिक्शे की सवारी आरामदायक और मनोरंजक हो गई। उनकी यह परिकल्पना अपने प्रकार की एकमात्र है और उन्होंने इसका उपनाम दिया है- “बिहार के रिक्शा वाले”। उन्होंने अपनी आधुनिक रुप रेखा से रिक्शा चालकों को समर्थवान बनाया। कई मूल्‍य संवर्धित सेवाओं के साथ-साथ भारत में पहली प्री-पेड रिक्शा की शुरुआत हुई।

यह आइडिया उन्हें तब आया जब वे गर्मी के एक दिन रिक्शा में कहीं जा रहे थे तभी उन्हें जोर की प्यास लगी, उन्होंने रिक्शावाले से पानी माँगा तो उसके पास नहीं था। उनके दिमाग में तभी यह विचार आया कि यदि रिक्शे में पानी और कुछ खाने की चीजें हो तो इससे यात्रियों को भी राहत होगी और रिक्शे वाले को भी अतिरिक्त आय होगी। इरफान के इस प्रयास को दुनिया भर में पहचान मिली। इसकी शुरुआत के लिए उन्हें कोई सहायता कहीं से नहीं मिली। उन्होने पंजाब नेशनल बैंक से लोन लेकर तीन इंजीनियरों के साथ मिलकर रिक्शा का डिजाईन तैयार किया।

लघु स्तर पर शुरु किये गये इस उपक्रम में देश भर के 5 लाख से अधिक रिक्शा चालक इरफान की संस्था “सम्मान फाउण्डेशन” में पंजीकृत हैं। 2010 में उनकी यह उपलब्धि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की नजरों से भी अछूती नहीं रही। इरफान उन गिने चुने लोगों में शामिल थे जिनका चुनाव उसी वर्ष अमेरिका के ‘वाईट हाउस’ में युवा उद्यमियों के शिखर सम्मेलन की बैठक के लिए हुआ था।

सब कुछ बेहतर चल रहा था जबतक की पुलिस ने नवेन्दू के अपहरण के आरोप में इरफान को गिरफ्तार नहीं किया था। यह घटना प्रकाश में तब आई जब एक वेबसाइट निर्माता, जिसने इरफान से वेबसाइट निर्माण के लिए अग्रिम भुगतान ले रखा था, वह लापता पाया गया। नवेन्दू से इरफान का वेबसाईट को लेकर कुछ विवाद हुआ था। इसके तुरंत बाद, अपहृत के पिता शास्त्रीनगर थाना के ASP के साथ इरफान के कार्यालय पहुंचे। वहाँ इरफान और उनके सहकर्मी गोविंद झा, युवराज और रोहित उर्फ राजकुमार को 13 मई 2011 को नवेन्दू के अपहरण के इलज़ाम में गिरफ्तार कर लिया गया।

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के मामले में हस्ताक्षेप करने के बाद उन्हें 14 मई को थाने से रिहा कर दिया गया। इस घटना के बाद इरफान पर राज्य से बाहर चले जाने का लगातार दवाब दिया जाने लगा पर वे दृढ हैं कि वे दोषी को ढूँढ निकालेंगें।

कठिनाइयों को पार करते हुए भी इरफान ने अपने आधार को थाम रखा है। उन्होंने अब तक कई पुरस्कार और सम्मान हासिल किए हैं। उन्हें बिजनेस वर्ल्‍ड का ‘उद्यमिता पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है। इण्डिया टूडे द्वारा उन्हें ‘भारत के 40 यूथ आइकॉन की सूची में चुना गया। टाईम्स ऑफ इण्डिया द्वारा ‘इण्डियास बेस्ट 30 यूथ’ के लिए उन्‍हें चुना गया। इसके अलावा उन्हें गार्जियन पत्रिका, लंदन और द इकोनोमिस्ट में भी प्रधानता दी गई है। टाटा नेन के ‘हॉटेस्ट स्टार्टअप अवार्ड’ के निर्णायक दौर में थे और वर्ल्ड बैंक के इनोवेशन अवार्ड के भी विजेता रहे हैं। इरफान के इस प्रोजेक्‍ट को विश्व भर के कई विश्वविद्यालयों में साझा किया गया है।

विरोधाभासों का सामना करते हुए भी इरफान अपने काम में सफलताएँ सुनिश्चित कर पाते हैं। एक प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ाई पूरी करने के बाद इरफान आलम ने गरीबों की सेवा करने का रास्ता चुना। आज परिस्थितियां चाहे इरफान के मनोबल को तोड़ना चाहती हों लेकिन उनके हौंसले टूटने वाले नहीं हैं।

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