इस शख़्स ने एक ऐसे घर का निर्माण किया जो हवा, पानी, भोजन और गैस सारी जरूरतें पूरी करता है

यह पर्यावरण हमारा हैं और इसकी रक्षा करना हमारा ही दायित्व है। अगर प्रत्येक व्यक्ति इस बात को अमल में लाये तो परिवर्तन निश्चित है। कहते हैं बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, हमारा एक छोटा प्रयास प्रकृति को फिर से प्रदूषण मुक्त बना सकता है। आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति के प्रयास से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिन्होंने एक ऐसा मकान बनाया है जो हवा, पानी, भोजन और गैस तक की सारी जरूरतें पूरी करता है।

चेन्नई के किलपॉक न्यू 17 वासु स्ट्रीट में रहने वाले 45 वर्षीय डी सुरेश सफल नौकरी करने के बाद साल 2015 में सेवानिवृत्‍त हुए। आपको बता दें कि सुरेश आईआईटी मद्रास और आईआईएम से स्‍नातक हैं। इन्होंने एमडी और सीईओ सहित अनेक पदों पर टेक्‍सटाइल मार्केटिंग में काम भी किया है। लेकिन अब जान-पहचान वाले उन्हें सोलर सुरेश के नाम से बुलाते हैं।

सुरेश का मानना है कि “सरकार से हर समस्या का समाधान पाने की अपेक्षा करने से बेहतर है कि समाधान खोजकर सरकार और देश की मदद की जाए।”

सुरेश ने प्रतिदिन लगभग 10 किलोग्राम जैविक कचरे का इस्‍तेमाल कर 20 किलोग्राम गैस हर महीने उत्‍पादित करने के लिए एक घरेलू बायो गैस संयंत्र लगाकर अपनी बाहरी गैस की आवश्‍यकताओं का समाधान करने का निर्णय लिया। उनके प्रयासों में उनका परिवार उनकी सहायता तो करता ही हैं साथ ही उन्‍हें प्रोत्‍साहित करने का भी काम करता है।

सुरेश ने बायोगैस का सफल उपयोग करते हुए सिद्ध किया कि बायो गैस संयंत्र में यदि किसी प्रकार की बदबू उत्‍पन्‍न होती है तो उसका कारण है संयंत्र में पका और बिन पका भोजन, खराब भोजन, सब्जियां और फलों के छिलके आदि डालने से। इसलिए इसके बेहतर और बदबू रहित उपयोग के लिए इसमें साइट्रस फल जैसे नीबू, संतरा, और प्‍याज, अंडे के छिलके, हड्डियाँ या साधारण पत्तियां इसमें नहीं डालनी चाहिए।

सुरेश कहते बताते है “मेरे लिए यह सही-सही याद कर पाना मुश्किल है, कि कब मेरे मन में सेल्फ सफीसियन्ट होम “self sufficient home” (स्व निर्भर घर) बनाने का विचार आया लेकिन जहां तक मुझे याद है कि इस सोच को पंख 20 साल पहले मेरी जर्मनी यात्रा के दौरान लग गये थे। जब मैंने जर्मनी में छतों पर लगे सौर ऊर्जा संयंत्र देखे, तो मैंने सोचा कि जर्मनी तो कम धूप वाला देश है और जब यहाँ सौर ऊर्जा संयंत्र लग सकता है, तो भारत में क्‍यों नहीं, जहां सौर ऊर्जा प्रचुरता में है।”

सुरेश के इस विचार ने उन्हें आगे बढ़ने और बिजली बनाने के लिए छत पर एक सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए प्रेरित किया। हालांकि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने वाले उचित विक्रेता की खोज करना और सौर ऊर्जा इन्वर्टर की व्यवस्था करना। वे कहते हैं कि “टाटा बीपी सोलर, सू कैम और कई बड़े नामों ने उनके काम करने में कोई दिलचस्‍पी नहीं दिखाई। फिर खुद ही अपने घर के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र डिज़ाइन करने और बनाने के लिए उन्होंने एक साल तक कड़ी मेहनत की”

और जनवरी 2012 तक सुरेश ने अपना 1 किलोवाट का संयंत्र स्थापित किया और छत पर सौर विद्युत उत्‍पन्‍न करना आधिकारिक तौर पर शुरू कर दिया। संयंत्र लगाने के लिए केवल एक शर्त थी कि छायामुक्‍त जगह चाहिए थी मलतब कि प्रति किलोवॉट के लिए 80 वर्गफुट जिसके लिए छत सबसे बेहतर विकल्प थी और उन्होंने छत पर ही अपने सपनों की उड़ान भरना शुरू कर दिया। उसके बाद कई विशेषज्ञ और तमिलनाडु ऊर्जा विकास प्राधिकरण के चेयरमैन जैसे वरिष्‍ठ सरकारी अधिकारी सुरेश के संयंत्र को काम करता देखने के लिए उनके घर आने-जाने लगे।

अपनी सफलता से उत्साहित सोलर सुरेश ने अप्रैल 2015 तक अपनी सौर ऊर्जा को 3 किलोवाट तक बढ़ा दिया और अब उस ऊर्जा की बदौलत 11 पंखे, 25 लाइटें, एक फ्रिज, दो कम्‍प्‍यूटर, एक वॉटर पंप, दो टीवी, एक मिक्‍सर-ग्राइंडर, एक वॉशिंग मशीन और एक इंवर्टर एसी का इस्तेमाल किया जाता है। आखिरकार सुरेश की मेहनत रंग लाई उनका सपना साकार हो गया जिस काम को करने में पहले काफी लंबा समय गुजरा, अब उसी काम को करने में सिर्फ एक दिन का समय लगता है।

सोलर सुरेश बताते है कि “एक ऐसे शहर में रहने के बाद भी जो कि बिजली की समस्या के लिए बदनाम है वहाँ पिछले 4 सालों में मैंने अपने यहाँ एक मिनट भी बिजली गुल होते नहीं देखा। मैं हर दिन 12 से 16 यूनिट उत्पादन करके बिजली का खर्चा बचाता हूँ। यह संयंत्र टिकाऊ वहन करने योग्य और व्यवहारिक है जो कि वर्तमान में बैटरी के बदलने सहित 6 प्रतिशत कर- मुक्त मुनाफ़ा दे रही है।”

हम जानते है कि बायोगैस एक सुरक्षित गैस है, जिससे विस्‍फोट या गैस के रिसाव जैसा कोई ख़तरा नहीं होता है। साथ ही यह प्रदूषणकारी भी नहीं है और खनिज ईंधन पर निर्भरता को कम करके यह देश के लिए विदेशी मुद्रा बचाने में भी कारगर है। इस संयंत्र से दो उपयोगी संसाधन उत्‍पन्‍न होते हैं पहला कुकिंग गैस और दूसरा जैविक खाद।

सुरेश ने अपने आसपास में कुछ ऐसे सब्‍जी विक्रेताओं को खोज निकाला है, जिन्‍हें अपने कचरे के निस्‍तारण के लिए धन खर्च करना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता क्योंकि अब वे अपना कचरा सुरेश के बायोगैस संयंत्र पर छोड़ देते हैं। इतना ही नही सुरेश ने 20 वर्ष पहले रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया था।

सुरेश के आविष्कार यही खत्म नहीं होते हैं। उन्होंने मोटे बांस के पेड़ो की बाड़ और लताओं से अपने घर को घेरकर एक जंगल जैसा रूप प्रदान किया है। उनकी छत ऐसी है, जिसे देखकर यह एहसास होता है कि हम किसी जंगल में खड़े हैं जोकि भीड़ भरे शहर की आपाधापी का हिस्‍सा नहीं है। छत पर आने के बाद आसपास की गगनचुंबी इमारतें और ट्रैफिक दिखाई ही नहीं देता है यदि कुछ होता है तो सिर्फ हरियाली।

सुरेश का घरेलू जंगल बेहद प्रशंसनीय और अद्भुत है। इस गार्डन की शुरूआत हुई तो भिण्‍डी और टमाटर की खेती के साथ थी, लेकिन आज की तारीख में यह बहुत बड़ा बाग हो गया है। अब सुरेश इनमें जैविक ढंग से 15 से 20 प्रकार की सब्ज़ियाँ उगाते हैं। घर में होने वाली अधिकांश कुकिंग की आवश्यकताएं उनके किचन गार्डन से ही पूरी हो जाती है। सुरेश अपने इस सफल और क्रांतिकारी प्रयास को शिक्षा और प्रोत्‍साहन के जरिए अधिक से अधिक लोगों, स्थानों और संस्‍थाओं तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है।

अब तक सुरेश ने बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्‍नई में तीन ऑफिसों, चार स्‍कूलों और सात घरों में सौर ऊर्जा सयंत्र लगाये हैं साथ ही हैदराबाद के छ: संस्‍थानों में बायोगैस संयंत्र और चेन्‍नई में छ: स्‍थानों पर किचन गार्डन लगाये हैं और लोगों ने आगे बढ़ कर उनके प्रयासों का स्वागत किया है। वाकई सोलर सुरेश ने जो किया है उससे हमें प्रेरणा लेते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए।

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