कला के दम पर सिर्फ एक पेज के जरिये अच्छी कमाई और उपलब्धि हासिल करने वाले इस युवा से लें प्रेरणा

मुंबई के एक प्रतिभाशाली चित्रकार और एनीमेशन फिल्म निर्माता, प्रियेश त्रिवेदी को आदर्श बालक के उनके चित्रण से अनूठी लोकप्रियता मिली। आदर्श बालक का फेसबुक पेज मई 2014 में अस्तित्व में आया, और उनकी प्रारंभिक रचनाओं में से एक अचानक ही वायरल हो गयी।

प्रियेश का जन्म मुंबई के बोरीवली में हुआ। स्थानांतरण की वजह से वे अपने परिवार के साथ 16 की उम्र तक मुंबई के अलग-अलग हिस्से में शिफ्ट होते रहे। अंत में वे परिवार के साथ बोरीवली में सेटल हो गए और अभी तक वहीं रह रहे हैं। हालांकि, उनके लिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे बोरीवली में रहें या कि फिर दिल्ली में; क्योंकि एक बार वे अपने कमरे में घुस जाते, तो मग्न होने के लिए उनके पास उनकी अपनी एक अलग ही दुनिया होती थी।

सेंट ज़ेवियर स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने ठाकुर कॉलेज से एनीमेशन-फिल्ममेकिंग में बीएससी की डिग्री ली। इस कोर्स में 2-D और 3-D एनीमेशन सिखाया जाता है और फाइनल ईयर के प्रोजेक्ट में एक फिल्म बनाने दिया जाता है। अपना कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने अपने करियर की शुरूआत अँधेरी स्थित माइल-नाइन स्टूडियो में एक गेम आर्टिस्ट के रूप में की। एनीमेशन की पढ़ाई के दौरान वे कांसेप्ट-आर्टिस्ट के रूप में काम भी करने लगे थे। कांसेप्ट-आर्टिस्ट को किसी गेम में इस्तेमाल होने वाले किरदार को और उसके परिवेश को डिज़ाइन करना होता था।

आदर्श बालक का जो पहला स्केच उन्होंने बनाया था, उसे उन्होंने स्कैन करके फेसबुक पर पोस्ट कर दिया था। यह उनके दोस्तों में शेयर हुआ और फिर दोस्तों के दोस्तों में लोकप्रिय होते हुए यह वायरल हो गया। लोग जो उनके म्यूच्यूअल फ्रेंड्स में नहीं थे, वे उनके काम को प्रिंट में मांगने लगे। इस प्रोजेक्ट के पीछे उनका कंसेप्ट यही था कि लोग वह काम करें जो उन्हें अच्छा लगता है, न कि वह जो एक समाज उनसे अपेक्षा रखता है।

प्रियेश के काम से लोगों को 80 और 90 के दशक के अपने राज्य शिक्षा बोर्ड की किताबों की पुरानी तस्वीरें और ड्राइंग्स याद आने लगते थे। लोग उनके स्केच के माध्यम से अपने लुभावने अतीत को फिर से जीने की अपनी हसरत पूरी कर पाते थे। प्रियेश के ड्रॉ करने के तरीकों में बिलकुल भी जटिलता नहीं होती थी। जो उसे जांचता उसे वे उकेर देते। वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके कामों में कोई गहरा मतलब छुपा हो यह जरूरी नहीं, वो तो बस इतना चाहते थे कि उनके काम लोगों को, जो आम है उसे बगावत करने को उकसाते।

वे एक जिज्ञासु पर्यटक थे, माइल- नाइन की नौकरी छोड़ने के बाद वे घूमने के लिये उत्तर-भारत की ओर निकल गए। उसके बाद वे गोरेगांव स्थित माया डिजिटल स्टूडियो में काम करने लगे। वहां पर उन्होंने सही अर्थों में एनीमेशन इंडस्ट्री कैसे काम करता है, यह सीखा। दो महीने के भीतर ही उन्होंने एनीमेशन इंडस्ट्री के सारे गुर सीख लिए। यहाँ की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने एक स्टार्ट-अप वॉलनट लैब्स ज्वाइन कर लिया, यहाँ पर उन्होंने बच्चों के लिए शिक्षाप्रद गेम बनाना सीखा। यहाँ पर भी उनका मन नहीं लगा और नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने दिसम्बर 2013 से बतौर फ्रीलांसर काम करना शुरू किया।

प्रियेश के कामों के पीछे उनका जो मुख्य उद्देश्य है वह लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए शब्दों के पारम्परिक अर्थों को चुनौती देना एक कारगर तरीका हो सकता है। आम तौर पे समाज के नियमों और अनुशासन को मानने वाला आदर्श माना जाता है किन्तु प्रियेश चाहते हैं कि आदर्श बालक वह है जो व्यवस्था पर प्रश्न उठाता है, अपनी खुद की सोच के लिए सीना तन कर खड़ा होता है और वही करता है जो वह करना चाहता है।

प्रियेश ने एक शौक के रूप में जो काम शुरू किया, फेसबुक पर आने के बाद उनके एक लाख फॉलोवर हो गए। उनके फॉलोवर न केवल उनके प्रशंसक हैं बल्कि उनमें आदर्श बालक के ख़रीददार भी हैं। उनके आर्ट को प्रोत्साहित करने के लिए लोग उनके पोस्ट पर ढेर सारे कमैंट्स देते हैं।

इस युवा ने यह सिद्ध कर दिया है कि अलग तरह का करियर अपनाकर भी अच्छा किया जा सकता है। अगर आपके पास लगन है तो आप हर वो चीज़ कर सकते हैं, जिसकी आप चाहत रखते हैं।

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