गाँव के हिंदी मीडियम स्कूल से निकल कर IAS, IES जैसी कठिन परीक्षा को फतह करने वाली सुरभि

जीवन में हमारी ही सोच हमारे सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। जीवन में कुछ भी नामुमकिन है क्योंकि नामुमकिन शब्द से यदि न हटा दिया जाए तो वो भी मुमकिन बन जाता है। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी ही दृढ निश्चय रखने वाली लड़की की है जिसने अभावों में रहकर भी अपनी मेहनत पर विश्वास रखा और कठिन से कठिन रास्तों को अपनी सकरात्मक सोच के चलते सुगम बना लिया।

हम बात कर रहे हैं आईएएस ऑफिसर सुरभि गौतम की जिन्होंने अपने दृढ निश्चय के दम पर अभावों को दरकिनार करते हुए अपने सपनों को पूरा किया और साथ ही भाषा के बन्धनों को कभी अपनी सफलता के बीच नहीं आने दिया। यूनिवर्सिटी टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट सुरभि ने आईएएस 2016 की परीक्षा में 50वां रैंक हासिल की। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस होनहार छात्रा ने 12वीं तक की शिक्षा गाँव के ही हिंदी मीडियम स्कूल से पूरी की। सुरभि उन लोगों के लिए करारा जवाब है जो हिंदी बोलने में शर्म अनुभव करते हैं और हिंदी भाषा को निम्न समझने की भूल कर देते।

मध्यप्रदेश के सतना जिले में 1000 लोगों की आबादी वाले अमदरा गाँव में एक संयुक्त परिवार में जन्मीं सुरभि के पिता सिविल कोर्ट में वकील हैं और माँ शिक्षिका। बचपन से ही संयुक्त परिवार में पली बढ़ी है जहाँ उन्हें एपब परिवार के अन्य बच्चों के सामान ही अवसर प्राप्त हुआ करते थे। वह पढ़ाई में बहुत ही होशियार छात्रा थी, हर कक्षा में प्रथम आना उनका लक्ष्य था आईएएस बनने का सपना भी उसने 10वीं कक्षा से देखना प्रारम्भ कर दिया और जब 10वीं बोर्ड की परीक्षा में उन्हें 93.4% अंक मिले तो उनके सपने को एक नई उड़ान मिली। 10वीं की सफलता के बाद उन्होंने प्रसाशनिक सेवा में जाने को अपना लक्ष्य बना लिया और कड़ी मेहनत का रास्ता इख़्तियार किया।

12वीं कक्षा तक सुरभि टाट-पट्टी के स्कूल में पढ़ा करती थीं, जहाँ मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव था। यहाँ तक की किताबें भी समय पर नहीं मिल पाती थी। उनके गांव में बिजली पानी की भी उचित व्यवस्था न होने के कारण उन्हें लालटेन जलाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। और 12वीं क्लास तक सुरभि को रिमेटिक फीवर की समस्या से भी आमना-सामना करना पड़ा। जिसके चलते उनके पेरेंट्स को उन्हें हर 15 दिन में गांव से 120 किमी दूर जबलपुर डॉक्टर के पास लेकर जाना पड़ता था।

बारहवीं के बाद उसने स्टेट इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम दिया और हमेशा की तरह उनके काफी अच्छे नंबर आये। जिसके चलते वो शहर के किसी भी सरकारी कॉलेज में दाखिला लेने के योग्य हो गईं। इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की अपने गांव की टॉपर सुरभि जब स्कूल के बाद कॉलेज में आई तो उसके सामने कई बड़ी चुनौतियां तैयार खड़ी थी।

गांव और शहर दोनों जगहों के माहौल में एक बड़ा अंतर था और साथ ही उनके लिए सबसे बड़ी समस्या थी अंग्रेजी सीखना क्योंकि उनकी अंग्रेजी बहुत कमज़ोर थी और उनके कॉलेज में अधिकतर बच्चे अंग्रेजी मीडियम स्कूलों से थे। सुरभि के साथ वही सब हो रहा था, जो हिंदी मीडियम बच्चों के साथ होता है।

सुरभि कहती हैं ” मैं गाँव की स्कूल में पहली बेंच पर बैठा करती थी लेकिन जब शहर गयी तो इंग्लिश न आने के कारण आखिरी बेंच पर बैठना पड़ता था, जो मुझे बहुत बुरा लगताथा मेरे लिए यह सब बहुत ही अजीब था। इसलिए मैंने बहुत मेहनत की और बाकी विषयों के साथ इंग्लिश पर भी अपनी पकड़ बनना शुरू किया और फर्स्ट सेमेस्टर में ही यूनिवर्सिटी टॉप कर ली इसके लिए मुझे चांसलर अवार्ड से सम्मानित किया गया।”

अपनी अंग्रेजी सुधारने के लिए सुरभि ने बहुत मेहनत की वो किताबों से स्पेलिंग ढूंढ कर सीखा करती। प्रतिदिन अंग्रेजी के 5 से 10 शब्दों को लिखकर दीवार पर चिपका देती और फिर उन्हें पढ़-पढ़ कर अभ्यास किया करती। साथ ही कोई भी नया अंग्रेजी का शब्द सुनकर उसे बार-बार बोलते हुए याद कर लेती। इस तरह उसने अंग्रेजी सीखने का किला भी फतह कर लिया। इतना ही नहीं इंजीनियरिंग में भी वह गोल्ड मेडलिस्ट रहीं।

सुरभि बचपन से ही पढ़ाई के प्रति सजग और मेहनती लड़की रही है। उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा उनके माता-पिता रहें जिन्होंने उनका हर परिस्थिति में मार्गदर्शन किया और उनके हर फैसले का सम्मान किया। कॉलेज की पढ़ाई के बाद सुरभि ने भारतीय अटॉमिक रिसर्च सेंटर (BRAC) में एक साल तक बतौर न्यूक्लियर साईंटिस्ट के तौर पर कार्य किया। उन्हें गेट और इसरो जैसी कठिन परीक्षा में अॉल इंडिया स्तर पर दूसरा स्थान मिला।

दिल्ली पुलिस और FCI की परीक्षाएं अच्छे नंबरों से पास करने के बाद साल 2013 में आईईएस (IES) एग्जाम में ऑल इंडिया में पहला स्थान हासिल किया और इतना ही नहीं  इन सबके बाद फिर साल 2016 के आईएएस एग्जाम में उन्हें 50वां स्थान मिला। सुरभि सचमुच विलक्षण प्रतिभा की धनी हैं।

सुरभि ने बताया कि “शुरू से ही मेरा लक्ष्य प्रसाशनिक सेवा में जाने का रहा जिसे लेकर मुझे कभी कोई संदेह नहीं था। इसीलिए मैंने बीई के दौरान ही सब्जेक्ट्स को एग्जाम की तैयारी के हिसाब से पढ़ना शुरू कर दिया था। मेरे माता-पिता ने मुझे हर प्रकार से सहयोग प्रदान किया और समय-समय पर मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया।

सुरभि सिर्फ पढ़ने में ही होशियार नहीं है बल्कि वो पेंटिंग भी बहुत अच्छी बना लेती है और कविताएँ भी लिखती है। स्केचिंग कढ़ाई बुनाई रंगोली में भी उन्हें महारत हासिल है। उनके गाँव के लोग ये शुरू से ही मानते थे कि ये लड़की कुछ बड़ा करेगी और मुश्किल इसका रास्ता रोकने में असमर्थ रहेगा।

हिंदी मीडियम और सुविधाओं के आभाव में भी संघर्षों को पार करते हुए सुरभि ने फर्श से अर्श तक के सफ़र को तय किया है। सुरभि की सफलता से यह प्रेरणा मिलती है कि अगर अपने आप पर और अपनी मेहनत पर भरोसा हो तो बड़े से बड़े सपने भी सच होते हैं।

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