लाखों की नौकरी छोड़ इस IIT इंजीनियर ने गरीब बच्चों के लिए बनाया देशभर में सैकड़ों प्लेग्राउंड

जिंदगी में जब आप एक अच्छे मुक़ाम पर पहुँचने में कामयाबी हासिल कर लेते हो और आर्थिक रूप से सम्पन्न हो जाते तो आपकी जिम्मेदारी बनती है कि समाज में वंचित वर्गों के उत्थान के लिए अपना योगदान दें। लेकिन बहुत कम ही ऐसे शख़्स होते जो कामयाबी हासिल करने के बाद पीछे छूट चुके लोगों की ओर देखते। हमारी आज की कहानी की नायिका ने न सिर्फ एक शानदार उपलब्धि हासिल की, बल्कि अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी को अलविदा कर गरीबी और अभावों से वंचित बच्चों के लिए एक अनोखे पहल की शुरुआत की। उनकी छोटी शुरुआत आज एक बड़े संगठन का रूप ले चुकी है।

लखनऊ की पूजा राय ने भारत में वंचित बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने और उनके उत्थान के लिए कुछ करने का बीड़ा उठाया। अपने मिशन को कामयाब बनाने के लिए सर्वप्रथम उन्होंने वास्तुकार-इंजीनियर के रूप में अपनी उच्च-भुगतान वाली नौकरी छोड़ने का हिम्मती फैसला लिया।

इसकी शुरुआत साल 2015 में हुई, जब पूजा आईआईटी खड़गपुर में आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग के अपने अंतिम वर्ष में थी। अपने खाली समय में वह बच्चों के लिए एक देखभाल केंद्र में स्वेच्छा से काम करती थी और जो कुछ भी हो सकता वह अपने स्तर से योगदान देती थी। एक दिन पूजा ने एक हृदय विदारक दृश्य देखा, बच्चों के पास खेलने के लिए खिलौने नहीं थे तो वे चप्पलों के साथ बैडमिंटन खेलने का प्रयास कर रहे थे। और कुछ सीमेंट के बड़े पाइपों के साथ खेल रहे थे जिन्हें हम अक्सर निर्माण स्थलों के पास देखते हैं।

पूजा ने मंथन किया, “एक तरफ हम विशाल फैंसी इमारतों के निर्माण के लिए डिजाइन का अध्ययन कर रहे हैं, और दूसरी तरफ, यहां वंचित बच्चों के पास खेलने के लिए कुछ नहीं है।”

पूजा ने बच्चों की मदद करने का फैसला किया और खेल के मैदान के निर्माण में मदद के लिए अपने सहपाठियों के साथ विचार-विमर्श किया। चूंकि वे सभी छात्र थे, इसलिए वे केवल अपना समय और प्रयास ही दे सकते थे। सभी दोस्तों ने मिलकर संस्थान के पूर्व छात्रों से संपर्क करने का फैसला किया। उन्होंने खेल के मैदान के निर्माण के लिए सभी सामग्री जुटाने के लिए पर्याप्त धन मुहैया कराए। साथ ही, देखभाल केंद्र वाले भी खेल के मैदान के निर्माण के लिए सहमत हो गए। पूजा ने एक प्रमुख टायर निर्माता, मिशेलिन टायर से संपर्क किया, और उन्हें अपने कल्याणकारी विचारों से अवगत कराया। उनके विचारों से अभिभूत होकर कंपनी ने खेल के मैदान के निर्माण के लिए टायर मुहैया कराए। और इस तरह 1 लाख रुपये की लागत से खेल का मैदान तैयार हो गया।

इसके बाद , पूजा ने खेल के मैदानों के निर्माण पर ज्यादा विचार नहीं किया। कैंपस प्लेसमेंट के दौरान पूजा का चयन बतौर उत्पाद प्रबंधक स्टेज़िला नामक एक स्टार्टअप में हो गया। उन्होंने वहां डेढ़ साल तक काम किया और इस दौरान उन्हें खेल के मैदान बनाने के लिए लगभग 300 अनुरोध प्राप्त हुए। इन अनुरोधों को मद्देनजर रखते हुए पूजा ने खेल के मैदानों के निर्माण को पूर्णकालिक करियर बनाने पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया।

केनफ़ोलिओज़ के साथ विशेष बातचीत में पूजा ने बताया कि, “एक उत्पाद प्रबंधक के रूप में, मैं पहले से ही सालाना 20 लाख रुपये कमा रही थी। एक साधारण जीवन शैली के साथ, मेरे पास ज्यादा खर्च नहीं था, और मैंने यह भी महसूस किया कि सच्ची खुशी वापस देने से आती है और साथ ही यदि आप जो करते हैं उसमें आपकी रुचि नहीं हैं तो आप खुश नहीं रह सकते।

इसलिए साल 2017 में, पूजा ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने पाँच दोस्तों के साथ मिलकर एंथिल क्रिएशंस नामक एक गैर-सरकारी संस्था की आधारशिला रखी, जो पूरे भारत में खेल के मैदान बनाती है। हालाँकि, जब पूजा के माता-पिता को उनके इस काम के बारें में जानकारी मिली तो वो बेहद निराश हुए। उन्हें चिंता थी कि उनकी बेटी ने एक शानदार करियर और अच्छी-ख़ासी नौकरी को छोड़ एक अस्थिर जिंदगी को चुन लिया। लेकिन कुछ क्षणों के संदेह के बाद, उन्होंने अपनी बेटी का पूरे दिल से समर्थन किया। पिछले पांच वर्षों में, एनजीओ ने कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, गुजरात, केरल, उत्तर प्रदेश और असम सहित भारत के 18 राज्यों में 283 खेल के मैदान बना चुके हैं।

चूंकि खेल के मैदान खिलौनों, उपकरणों, टायरों और इसी तरह की स्क्रैप सामग्री से बने होते हैं इसलिए उन्हें बनाने में 4-5 दिनों से अधिक समय नहीं लगता है, और खेल के मैदान के आकार के आधार पर इसकी लागत 1 लाख रुपये से 5 लाख रुपये के बीच हो सकती है। पूजा साझा करती हैं कि एनजीओ स्वतंत्र रूप से काम नहीं करता है और वे उस क्षेत्र में स्थानीय एनजीओ और समुदाय के सदस्यों के साथ काम करते हैं जहां खेल का मैदान बनाया जाएगा।

वह साझा करती हैं, “हम व्यक्तियों, समुदाय के सदस्यों, सरकारों और कॉरपोरेट्स के साथ काम करते हैं, वे खेल के मैदानों के निर्माण के लिए फण्ड के अलावा भी मदद करते हैं। हालांकि खेल के मैदान लगभग DIY प्रोजेक्ट की तरह हैं और इस्तेमाल किए गए टायर और स्क्रैप से बने हैं, वे लगभग 10 वर्षों तक चल सकते हैं। एनजीओ खेल के मैदानों को बनाए रखने के लिए समुदाय के सदस्यों को भी प्रशिक्षित करता है।

पूजा ने शोध किया और पाया कि खाली जगहों का सही उपयोग लोगों के व्यवहार को बदल सकता है। वह साझा करती हैं कि सभी को खेल के मैदानों के विचार का स्वागत करना चाहिए। हर कोई शिक्षा को बहुत महत्व देता है, लेकिन किताबों से दूर समय बच्चों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। खेल के मैदान बच्चों को शारीरिक विकास, सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद करते हैं, और हम खेल के मैदान में अपने पहले दोस्त बनाते हैं।

जिन लोगों के साथ हमें कभी-कभी काम करना पड़ता है, उन्हें इसके महत्व के बारे में आश्वस्त करने के लिए हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं। और जब लोग अंततः इन खेल के मैदानों के सकारात्मक प्रभाव को छात्रों के प्रदर्शन और व्यवहार पर देखते हैं, तो यही वास्तविक उपलब्धि होती है।

पूजा अपनी टीम के साथ मिलकर वाक़ई में एक शानदार पहल की हैं। गरीब और वंचित बच्चों के चहुमुखी विकास के लिए उनके प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।

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