“लोग मुझे मृत्यु के करीब मान कर देखने आने लगे थे और मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं मर रहा हूँ”

मणिपुर की राजधानी इम्फाल के ह्रदय स्थल में एक ऐसा बॉडी-बिल्डर रहता है, जिसने देश का गौरव बढ़ाया। खुंदराकपम प्रदीप कुमार सिंह HIV पॉजिटिव होने के बावजूद न केवल अंतर्राष्ट्रीय बॉडी-बिल्डिंग चैंपियन बनें बल्कि उन्होंने घिसी-पिटी मान्यताओं को झुठलाकर अपनी सकारात्मक सोच से एक नया मानदंड रचा।

उनके इस कठोर शरीर के पीछे एक गर्म-जोश व्यक्ति रहता है जिसने जिंदगी के दिए हर गम पर विजय प्राप्त की। 48 वर्षीय प्रदीप ने केनफ़ोलिओज़ से बाते करते हुए अपने इस यात्रा का खुलासा किया।

प्रदीप के पिता सरकारी ऑफिस में एक क्लर्क थे और उनकी माता एक स्कूल टीचर थी। उनके परिवार में सभी काम करते थे इसलिए प्रदीप को घर पर हमेशा अकेले रहना पड़ता था। घर में सबसे छोटा होने की वजह से उन्हें बहुत दुलार मिला। प्रदीप स्कूल में एक अच्छे विद्यार्थी थे। चीज़ें तब बदल गई जब बहुत ही कम उम्र में वे अपने दोस्तों के साथ धूम्रपान करने लगे। दसवीं कक्षा में पहुंचते-पहुंचते उन्होंने हेरोइन का इंजेक्शन लेना तक शुरू कर दिया। वे अपनी क्लास छोड़ने लगे और उनका ध्यान पढ़ाई से हटने लगा। बुरी संगत से दूर करने के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें उड़ीसा के एक कॉलेज में दाखिला दिला दिया।

प्रदीप बताते हैं -“मैं वहां एक लड़के से मिला और उसके साथ ड्रग्स लेने लगा। शुरूआत में मैं अच्छे मार्क्स लाता था, परन्तु धीरे-धीरे मेरे मार्क्स नीचे होने लगे। उसी समय मैंने महसूस किया कि मेरी याददाश्त भी कम हो रही है।”

1993 में प्रदीप वापस मणिपुर आ गए। उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और नशे के आदी हो गए। वे कफ सिरप लेने लगे क्योंकि यह मणिपुर में सस्ता मिलता था और स्थानीय डिस्पेंसरी से सिरिंज चुरा कर हेरोइन इंजेक्ट भी करने लगे।

कुछ समय के बाद उन्हें दस दिनों तक सर्दी और बुखार ने जकड़ लिया। डॉक्टर ने उन्हें दवाई देकर भेज दिया परन्तु धीरे-धीरे उनका शरीर कमजोर होता गया। उसके बाद डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उन्हें ट्यूबरकुलोसिस हो गया है और उसका भी इलाज चला। परन्तु प्रदीप का पूरा शरीर काला पड़ने लगा और उनके शरीर का पतन शुरू हो गया।

जब उन्होंने डॉक्टर से अपनी बीमारी के बारे में बात किया तब उन्हें पता चला कि वे HIV पॉजिटिव हैं। प्रदीप बताते हैं, “ लोगों ने मुझसे मिलने आना शुरू कर दिया। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं मरने वाला हूँ।”

जब उनकी माँ ने उनसे उनकी अंतिम इच्छा पूछी तब प्रदीप ने उन्हें गुवाहाटी लेकर जाने को कहा। वे जिंदगी को एक अंतिम शॉट देना चाहते थे। हमारे समाज में HIV पॉजिटिव होना खुद का ही दोष माना जाता है। प्रदीप गुवाहाटी के एक हॉस्पिटल में एडमिट हो गए।

“वे मुझे एक बेहद गंदे कमरे में बिना उचित इलाज के ले गए। मेरा ठीक होने का सपना पूरी तरह से बिखर गया।”

एक पागल व्यक्ति को मेरे कमरे में शिफ्ट किया गया जो रात भर चिल्लाता रहा था। प्रदीप हृदय-विदारक आवाज  सुनकर अपनी माँ से घर वापस लेकर जाने को कहने लगे। वे उस घटना को याद करते हुए कहते हैं “जब मैं हॉस्पिटल छोड़ रहा था तब मैंने अपने ही हाथों से ड्रिप का नीडल निकाल दिया था और उससे लगातार खून बहता रहा था। नर्स ने उसे देखने तक की ज़हमत नहीं उठाई।

तीन साल तक (2000-2002) प्रदीप ने घर से एक कदम भी बाहर नहीं निकाला। उनके सभी दोस्तों ने उनसे किनारा कर लिया। चीजें तब बदली जब उनकी बहन उनके घर चंपा प्लांट लेकर आई। उन्होंने यह महसूस किया कि कैसे पौधों में पानी डालने पर सूंदर फूल खिलते हैं। वे समझ गए थे कि जीवन भी इसी तरह का पौधा है। अगर उसकी देखभाल अच्छे से हो तो वह जी सकता है।

प्रदीप अपनी बॉडी बनाना चाहते थे। उनके डॉक्टर ने उन्हें एक्सरसाइज करने को मना किया था परन्तु प्रदीप ने इसे जारी रखा। उन्होंने बिना ट्रेनर के जिम में वेट लिफ्टिंग करनी शुरू कर दी। वे पुस्तकें पढ़कर और वीडियोस देखकर सीखते थे।

2006 में प्रदीप ने मिस्टर मणिपुर कांटेस्ट में भाग लिया और रजत पदक जीता। वे बताते हैं “जब मैंने मेडल को देखा, मैं बहुत रोया। यह मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था क्योंकि मैं वही व्यक्ति था जो कुछ समय पहले तक बेड रिडन था।”

2012 में प्रदीप ने मिस्टर साउथ एशिया टाइटल जीता। उन्होंने बैंकाक में हो रहे मिस्टर वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर कांस्य पदक अपने नाम किया।

उन्होंने HIV से ग्रसित लोगों के लिए आशा की एक किरण फैलाई और कहा कि वे सब कुछ कर सकते हैं। वे कहते हैं कि लोगों को यह समझना पड़ेगा कि हमें भी जीने का हक़ है और हमें लोग अलग दृष्टि से न देखें।

प्रदीप को मणिपुर राज्य सरकार ने एक नौकरी की पेशकश की है। उन्हें मणिपुर राज्य AIDS कण्ट्रोल सोसाइटी ने HIV/AIDS का  ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया है। उन्होंने दिल्ली में पैन-इंडिया HIV जागरूकता अभियान की भी पहल की है।

उनकी इस अद्भुत जीवन यात्रा के ऊपर एक किताब भी लिखी गई है “आई ऍम HIV पॉजिटिव, सो व्हाट?: “अ वर्ल्ड चैंपियंस फाइट अगेंस्ट ड्रग्स, डिज़ीज़ एंड डिस्क्रिमिनेशन।” इसे जयंत कलिता ने लिखा है।

प्रदीप के साहस ने मृत्यु के खिलाफ जंग लड़ी और अपने जीवन को दूसरा मौका दिलवाया। वे एक सच्चे प्रेरक व्यक्तित्व हैं। ऐसे व्यक्ति उन सब के लिए आशा की किरण बनकर उभरे हैं जो आज भी कड़ी मेहनत पर भरोसा करते हैं और कुछ अविश्वसनीय उपलब्धि हासिल करना चाहते हैं।

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